शायद आप उस वक्त को भी नहीं भूले होंगे जब मैं गढ़वा का विधायक नहीं बना था : सत्येंद्र नाथ
आशुतोष रंजन
गढ़वा
राजनीति को भले सेवा का क्षेत्र कहा जाता है लेकिन वर्तमान गुजरते वक्त में इसकी परिभाषा किस तरह बदल गई है शायद मुझे यह बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप हर रोज़ ही नहीं बल्कि हर क्षण इससे दो चार होते हैं,वो चाहे एक पंचायत का प्रतिनिधि हो या विधायक और सांसद सबके जिम्मे अपने संबंधित क्षेत्र की जनता का सेवा और विकास के साथ साथ उसके सुख दुख में शरीक होना होता है पर लोग पद पर आते ही ख़ुद को इससे जुदा कर लेते हैं और क्षेत्र के हालात बदलने से कहीं ज़्यादा ख़ुद की स्थिति में बदलाव करने में रत हो जाया करते हैं पर एक जनप्रतिनिधि ऐसा भी है जिसके मनोभावना में आज तब भी कोई बदलाव नहीं आया है जब वो पद पर काबिज़ हैं,आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताते हैं कि हम बात किसकी कर रहे हैं।
जब मैं गढ़वा का विधायक नहीं बना था : – जैसा कि आपने शुरुआत में पढ़ा कि पद पर काबिज़ होने के बाद भी क्षेत्र के लोगों के प्रति उनकी मनोभावना में तनिक भी बदलाव नहीं हुआ है,अरे हम तो भूल ही गए कि अब हमको बताना है कि हम बात किसकी कर रहे हैं तो आपको बताऊं कि हम बात यहां गढ़वा विधानसभा क्षेत्र से विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी की कर रहे हैं,उनकी वर्तमान कार्यशैली की बात करने से पहले हम उस वक्त की बात करेंगे जब विधायक बनने की बात कौन करे वो राजनीति में भी नहीं आए थे,एक संवेदक होने के नाते होने वाले उपार्जन का एक हिस्सा वो समाजहित में खर्च किया करते थे,किसी की हारी बीमारी से ले कर ग़रीब असहाय को मदद करना,ग़रीब बेटियों की शादी कराना,हर किसी के सुख दुख में शामिल होना उनके दिनचर्या में शामिल था,जो आज तब भी ज़ारी है जब वो एक जनप्रतिनिधि हैं,उनके उसी समाजसेवा को देखते हुए लोगों ने उन्हें तब अपना विधायक चुना था,और जिस उम्मीद और आशा विश्वास के साथ लोगों ने उन्हें पहली बार अपना विधायक बनाया था वो उनके विश्वास पर खरा भी उतरे और गढ़वा विधानसभा क्षेत्र में विकास की बुनियाद रखी,साथ ही जहां एक ओर उनके द्वारा एक विधायक होने के नाते क्षेत्र में धरातल पर विकास योजनाएं उतारी गई वहीं अपनी कार्यशैली,सुलभ उपलब्धता और व्यवहार कुशलता के कारण वो लोगों के दिल में भी उतरते चले गए जिसका सुपरिणाम हुआ कि लोगों ने उन्हें दूसरी बार भी उन्हें विधायक बनाने का काम किया,अब एक बार फ़िर से वो विधायक बन गए हैं लेकिन उनके मिलनता वाले व्यवहार में तनिक भी बदलाव नहीं आया है,आज भी वो उसी पुराने अंदाज़ में सबसे मिलना बात करना और उनकी बातों को दिली तल्लीनता से सुन और उसका समाधान कर रहे हैं।
मरते दम तक मेरे दिल में पेवस्त रहेगी मानवीय संवेदना : – पूछे जाने पर कि केवल कहा ही नहीं जाता है बल्कि देखने में भी आता है कि राजनीतिक क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति जब बड़े पद पर आसीन हो जाता है तो उसके व्यवहार में बड़ा बदलाव हो जाता है लेकिन आप अब तलक ऐसे कैसे हैं,उनका ज़वाब होता है कि बदलता वो है जिसके दिल में दूब का दर्द महसूस करने की भावना ना हो,क्योंकि एक दूब घांस का दर्द वही समझ सकता है जिसके दिल की धरा नरम हो,मुझमें बदलाव कैसे आयेगा,क्योंकि मैं यहां का यानी इस क्षेत्र का नेता नहीं बल्कि बेटा हूं,और इस बेटे ने यहां का और यहां के लोगों का वो हाल देखा हूं जिसे कहने नहीं बल्कि अकेले में याद भी करता हूं तो भावुक हो जाता हूं,एक छोटी सी ज़रूरत के लिए भी मैने लोगों को रोते बिलखते देखा है,सड़क बिना पगडंडी से गुजरते और टूटे गिरते घरों में जाड़े में ठिठुरते,गर्मी में झुलसते और बरसात में भींग कर रात गुजारते हुए देखा है,राशन के लिए अहले सुबह से देर शाम तक आस जोहते हुए खाली हाथ लौट कर बिना खाए भूखे सोते हुए देखा है,कितना बताऊं,कहते कहते भावुक हो जाने वाले विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी तब कहते हैं कि मैं पढ़ने में काफ़ी अच्छा था तभी तो इंजीनियरिंग किया,लेकिन नौकरी में ना जाने कि एक वजह लोगों की यह विवशता भरी जिंदगी भी रही,मैं सोचा कि यहीं रहूंगा और जो कुछ भी काम करूंगा उससे जितना कमाई होगा उसका एक हिस्सा इनके मदद में लगाऊंगा,और मैने उसकी शुरुआत की,वो कल का समय था और आज का वक्त है,कल जो मानवीय संवेदना मेरे अंदर पेवस्त हुई थी वो आज गुजरते वक्त में ही नहीं बल्कि मरते दम तक मेरे दिल में पेवस्त रहेगी।