कहां से चुनाव लडने की है चाहत,गढ़वा या भवनाथपुर..?
आशुतोष रंजन
गढ़वा
राजनीति में तो पाला बदलने का खेल अनवरत चलता रहता है,आज कोई किसी पार्टी में तो कल किसी दल में होता है,गुज़रे कल में इसकी चर्चा होती भी थी पर वर्तमान गुजरते वक्त में तो लोग जानने के बाद भी बात करना गंवारा नहीं करते क्योंकि यह तो राजनीति का सगल सा बन गया है,और जब चुनाव का दौर आता है तो नेताओं के पाला बदलने की बाढ़ सी आ जाती है,अपना राज्य झारखंड चुनावी दहलीज पर खड़ा है,जो कयास लगाए जा रहे हैं उसके अनुसार इस माह भले ना हो लेकिन अगले माह आचार संहिता लागू हो जाने और अक्टूबर में चुनाव हो जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है,ऐसे में सत्ता में रह चुकने वाले के साथ साथ राजनीतिक पार्टियों में अच्छे पद पर काबिज़ नेताओं का अभी से टिकट पाने की जुगत भिड़ायी जा रही है,कोई रांची तो कोई दिल्ली का दौड़ लगा रहा है,इसकी चर्चा तो है ही लेकिन जो चर्चा सबसे ज़्यादा बलवती हो रही है वो यह है कि एक भाजपा नेत्री की इन दिनों कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ी हैं,कहा भी गया है कि अपने देश लोकतंत्र में क़ायम है ऐसे में अगर कोई राजनीति से सीधे रूप में जुड़ा है तो उसका चुनाव में आना भी कोई गलत नहीं कहा जा सकता,लेकिन चर्चा इसकी नहीं हो रही है न,बात तो यह कही जा रही है कि राज्य के विपक्षी दल से ताल्लुक रखने वाली महिला नेत्री के मन में ख़ुद की पार्टी से ऐसी क्या खटास हो गई की उन्हें सत्ताधारी गठबंधन दल के एक धड़ा यानी कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ानी पड़ी,अब तो स्पष्ट तभी हो पाएगा जब वो अपनी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस का दामन थामेंगी और बताएंगी की आख़िर उनके द्वारा ऐसा क्यों किया गया,ख़ैर यह तो बाद की बात है लेकिन सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार गढ़वा जिले की एक भाजपा नेत्री जो एक अच्छे पद पर काबिज़ भी हैं उनके द्वारा कांग्रेस के बड़े नेता से मुलाक़ात करते हुए राजनीतिक बातें की गई हैं,उनके उसी मुलाक़ात को नज़र करने के बाद ही चर्चा हो रही है कि हो ना हो वो भी चुनाव लडना चाहती हैं लेकिन फ़िलवक्त वो जिस पार्टी में हैं वहां से उन्हें तो टिकट मिलने से रहा,ऐसे में दूसरी पार्टी ही उनके लिए माकूल विकल्प है,लेकिन साथ ही सवाल उठता है कि वो किस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की चाहत दिल में संजोई हैं गढ़वा या भवनाथपुर…?