भाग्य मनाइए की facebook और whats app है

भाग्य मनाइए की facebook और whats app है


आशुतोष रंजन
गढ़वा

कालांतर में राजनीति में सवाल ज़वाब और आरोप प्रत्यारोप के लिए मंच ही एक मात्र ज़रिया हुआ करता था,लेकिन आज तो एक छोटे से कार्यकर्ता से ले कर उनके ओहदेदार राजनेता तक मंच से दूर हो गए हैं यानी उनके द्वारा अपने विरोधियों को ज़वाब देने का सबसे आसान जरिया सोशल मीडिया बन कर रह गया है,तभी तो हमने अपने इस ख़बर का शीर्षक दिया है कि भाग्य मनाइए की fecebook और whats app है

भाग्य मनाइए की facebook और whats app है :- सोशल मीडिया तक सिमट चुकी मंचीय राजनीति की बात हम कहीं और की नहीं बल्कि गढ़वा की कर रहे हैं,जहां की राजनीतिक गलियारे में इस राज्य में सबसे ज़्यादा कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच आरोप प्रत्यारोप हुआ करता है,और जहां एक दूसरे को आरोपित करने के लिए सोशल मीडिया यानी fecebook और whats app ही एक मात्र साधन बन रहा है,शायद मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अगर आप गढ़वा से ताल्लुक रखते हैं और सोशल मीडिया में सक्रिय हैं तो निश्चित रूप से हर रोज़ वाक़िफ होते होंगे कि कैसे सत्तापक्ष और विपक्ष के कार्यकर्ताओं और नेताओं द्वारा एक दूसरे के विपरीत पोस्ट किया जाता है,अपने यहां चुनाव रहे या सामान्य दिन रहे,हर रोज़ एक ना एक पोस्ट रहा ही करता है और आए रोज़ एक दूसरे के पोस्ट के प्रति आरोप प्रत्यारोप का दौर चलने के साथ साथ कभी कभी उसे ले कर दोनों के द्वारा प्रेसवार्ता भी कर दिया जाता है,और उक्त प्रेसवार्ता में उस पोस्ट का ज़िक्र करने के साथ जब प्रेसवार्ता की ख़बरें अखबारों में प्रकाशित और चैनलों में प्रसारित होता है तो उसके बाद अख़बार में छपी ख़बरों की कटिंग पोस्ट करने के साथ साथ उस पर दो चार ऐसे शब्द लिखते हुए facebook पर पोस्ट किया जाता है जो सामने वाले को नश्तर की भांति चुभता है,फ़िर उस पोस्ट पर कमेंट लिखने का दौर शुरू होता है जो लगातार कई रोज़ तक चलता रहता है,उधर वीडियो भी पोस्ट करते हुए प्रतिक्रिया स्वरूप ज़हर बुझा शब्द बाण चलाया जाता है,जो सामने वाले को यानी उनके विरोधियों को सीधे रूप में बेधता है,और आगे उस वीडियो पोस्ट को ले कर भी कई तरह की प्रतिक्रियाएं पढ़ने को मिलती हैं,ऐसे तो कमोवेश राज्य के हर विधानसभा क्षेत्रों में ऐसा देखने मिलता है लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी के लिए सोशल मीडिया का जितना इस्तेमाल गढ़वा में हो रहा है शायद ही कहीं उतना हो रहा है,तभी तो दिल बरबस कहने को विवश हो रहा है कि यहां के कार्यकर्ता और नेता भाग्य मनाएं कि facebook और whats app है नहीं तो जितनी आसानी से वो बयान रूपी भड़ास निकाल लिया करते हैं अगर ऐसा सर्वसुलभ प्लेटफॉर्म नहीं होता तो वो भला कैसे अपनी बात कह पाते…?

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