आख़िर किस खेल संघ को महंगा पड़ेगा आनंद सिन्हा से उलझना..?

आख़िर किस खेल संघ को महंगा पड़ेगा आनंद सिन्हा से उलझना..?

काश आनंद सिन्हा जैसा खेल के प्रति समर्पित होता वो खेल संघ..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

कालांतर में ख़ुद क्रिकेट खिलाड़ी रहे एवं वर्तमान में पिछले 23 सालों से अनवरत स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन समिति के सचिव के हैसियत से सफ़ल संचालन करने वाले एवं साथ ही किसी भी विवाद से दूर रहते हुए निर्विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कर स्कूली बच्चों की खेल प्रतिभा को निखारने का बीड़ा उठाने वाले आनंद सिन्हा इस साल आयोजित हुए प्रतियोगिता के आज 26 वें रोज़ बेहद नाराज़ दिखे,उनकी नाराज़गी का प्रतियोगिता पर भले असरकारी ना हो क्योंकि उससे वो प्राणपन से जुड़े हैं पर उनकी नाराज़गी के जो वज़ह हैं उनके सेहत पर गहरा असर ज़रूर पड़ने वाला है।

आपका दिली जुड़ाव है स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिता से : – इस ख़बर के ज़रिए केवल मैं ही नहीं बता रहा हूं बल्कि अगर आप गढ़वा से ताल्लुक रखते हैं साथ ही एक खिलाड़ी भी हैं तो आनंद सिन्हा और उनका सालाना आयोजन स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिता से भी बख़ूबी वाक़िफ होंगे,जिसकी शुरुआत 23 साल पहले हुई थी,आप में से कई ऐसे होंगे जो इस गुजरे अवधि में इस प्रतियोगिता में बतौर खिलाड़ी खेले भी होंगे इस लिहाज़ से आपका इस प्रतियोगिता से दिली जुड़ाव भी होगा,जो हर साल के आयोजन में मैदान में दर्शक के रूप में आपकी मौजूदगी से परिलक्षित भी होता है,तब तो आप सभी यह भी जानते होंगे कि पूर्व के कई सालों से गोविंद स्कूल के मैदान के साथ साथ कन्या मध्य विद्यालय के मैदान में उक्त प्रतियोगिता के मैच होते रहे हैं,कहने का मतलब की दोनों मैदान में ही यह प्रतियोगिता आगाज़ से अंज़ाम तक पहुंचता आया है,लेकिन दो साल से कन्या मध्य विद्यालय का मैदान आयोजन समिति को मिलना बंद हो गया क्योंकि उसे स्टेडियम का स्वरूप देने का काम शुरू हो गया,भले एक ही मैदान में आयोजन होता रहा लेकिन स्टेडियम निर्माण को ले कर आनंद सिन्हा के साथ साथ आयोजन समिति भी काफ़ी आह्लादित हुई कि चलिए एक अव्यवस्थित मैदान सुव्यवस्थित स्टेडियम में परिणत हो जायेगा तो बच्चों को खेलने में काफ़ी सहूलियत होगी,लेकिन यह क्या स्टेडियम बन कर जब तैयार हो गया तो वो ख़ुशी क्षणभंगुर साबित हुई क्योंकि उक्त कन्या मध्य विद्यालय के मैदान को सभी खेलों के लिए नहीं बल्कि फुटबॉल स्टेडियम का स्वरूप दिया गया,मतलब कि क्रिकेट खेलना उसमें मुनासिब नहीं है,लेकिन उसके बनने और उदघाटन होने के पूर्व से ही यह कहा जाने लगा कि उक्त स्टेडियम को जिस खेल के लिए बनाया गया है वहां तो वही खेल हो पाना मुश्किल है,क्योंकि मानक के अनुसार उक्त स्टेडियम का निर्माण ही नहीं हुआ है,कुल मिला कर कहने का मुख्य मक़सद यही है कि आयोजन समिति स्कूली बच्चों में छुपी खेल प्रतिभा को निखारने की लाख कोशिश करे पर माकूल मैदान के नहीं होने की कसक कालांतर से वर्तमान तक बरकरार है।

आख़िर किस खेल संघ को महंगा पड़ेगा आनंद सिन्हा से उलझना : – अब इधर हर्षित माहौल में रह कर हर साल आयोजन की शुरुआत कर उसे निर्विघ्न संपन्न कराने वाले समिति के सचिव आनंद सिन्हा आख़िर इस साल के आयोजन के 26 वें रोज़ क्यों नाराज़ हो गए इसकी वजह जो मुझे मालूम चल रहा है उसके अनुसार आपको बताएं कि इस वर्ष प्रतियोगिता की शुरुआत हर साल की तरह गोविंद स्कूल के मैदान में हुई,लगातार हर रोज़ मैच होता रहा,इसी बीच उनके द्वारा एक कोशिश की गई कि अंतिम कुछ रोज़ के लिए स्टेडियम भी मिल जाए ताकि उसमें कुछ मैच हो,उद्देश्य मात्र यही था कि स्कूल के बच्चे बच्चियां स्टेडियम में खेलने का अनुभव हासिल कर सकें,शुरुआत में तो उन्हें वहां खेलाने का आदेश मिल गया लेकिन जिस रोज़ उक्त स्टेडियम में मैच होना था यानी आज तो देर रात उन्हें सूचना मिलती है कि जो आदेश आपको मिला था उसे रद्द किया जाता है,आप वहां मैच नहीं करा सकते हैं,आख़िर में गोविंद स्कूल के मैदान में खेल चल रहा है और उसका समापन भी यहीं होगा,लेकिन ऐसा होने को ले कर या यूं कहें कि खेल में हुए राजनीति को ले कर ही वो नाराज़ हैं,और साथ ही सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार उक्त मैदान उपलब्ध नहीं होने देने के पीछे जिले का एक खेल संघ है जो खेल से दूर और राजनीति के बेहद क़रीब है,उक्त संघ के पदाधिकारी द्वारा ही ऐसी कारगुज़ारी की गई है,सवाल उठता है कि ख़ुद खेल से जुड़े होने के बाद भी एक खेल आयोजन में व्यवधान पैदा करना उनके लिए कितना सही है,साथ ही कहा तो यहां तक जा रहा है कि ख़ुद खिलाड़ी रहने के साथ साथ अब स्कूली क्रिकेट प्रतियोगिता और टेबल टेनिस प्रतियोगिता का सफ़ल आयोजन करने वाले आनंद सिन्हा को यहां के कई खेल संघों की कमज़ोरी भी बेहद नज़दीक से मालूम है,ऐसे में उनसे उलझना किस खेल संघ को महंगा पड़ने जा रहा है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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