रंग लगाया या पकवान बनाई कि विपत्ति आई

रंग लगाया या पकवान बनाई कि विपत्ति आई

इसलिए ढाई सौ साल से नहीं मनाई जाती होली


दिवंगत आशुतोष रंजन

आकाश लोहार
गढ़वा

रंगों का त्यौहार यह संदेश देता है कि लाल, हरा व नीला पीला नवल बैंगनी व चटकीला सभी रंग मिलकर हम एक हैं। इसी मान्यता के तहत जाति पांति व ऊंच नीच का भेद भूलाकर पूरे देश में खुलकर होली मनाई जाती है। हर घर में तरह तरह के पकवान बनाए व खाए जाते हैं। लेकिन ऐसी मान्यता व प्रचलन के बावजूद एक गांव ऐसा है जहां कि मान्यता है कि रंग लगाया या पकवान बनाई कि विपत्ति आई। इसी डर के मारे पिछले ढाई सौ वर्षों से एक गांव में होली नहीं मनाई जाती। न तो रंग लगाता और न ही कोई पकवान ही बनाता है। कहां की यह बात है आइए आपको इस खास खबर के जरिए बताते हैं।पूरा देश इस समय होली के रंग में रंग चुका है। होली आने में कुछ ही दिनों का समय शेष है। होली की खुमारी सिर चढ़कर बोल रही है। होली बिहार का भी एक अहम पर्व है। इसे मनाने देश के कोने-कोने में बसे बिहारी घर आ जाते हैं। लेकिन आज हम आपको बिहार के मुंगेर जिला के एक ऐसे गांव की कहानी बताते है जहां दशकों से चली आ रही मान्यता के अनुसार आज भी ग्रामीण होली नहीं खेलते है। उनके घरों में पुआ पकवान भी नहीं बनता। यह कहानी दरअसल 250 साल पुरानी है। असरगंज प्रखण्ड स्थित साजुआ नामक एक गांव है। यहां 250 साल से होली नहीं मनाई जाती। यहां के लोग कहते है कि होली मानने से गांव में भारी विपदा आ जाती है।इसलिए यहां रहने वाले लोग रंगों के त्योहार से एकदम दूर रहते है। दरअसल मुंगेर जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर असरगंज प्रखण्ड के इस गांव में होली अभिशाप मानी जाती है। गांव में करीब 2000 लोग रहते हैं। लेकिन कोई भी होली नहीं मनाता है। यहां मान्यता है कि पूरे फागुन में इस गांव के किसी घर में अगर पुआ या छानने वाला कोई पकवान बनता है या बनाने की कोशिश की जाती है तो उस परिवार पर कोई न कोई विपदा आ जाती है। इस गांव को लोग सती गांव भी कहते हैं।ग्रामीण महेश सिंह बताते हैं कि लगभग 250 साल पहले इसी गांव में सती नाम की एक महिला के पति का होलिका दहन के दिन निधन हो गया। कहा जाता है कि सती अपने पति के साथ जल कर सती होने जाती है। सती अपने पति के साथ जल कर सती होने की जिद करने लगी। लेकिन ग्रामीणों ने उसे इस बात की इजाजत नहीं दी। सती अपनी जिद पर अड़ी रही। लोग उसे एक कमरे में बंद कर उसके पति के शव को श्मशान घाट ले जाने लगे। लेकिन शव बार-बार अर्थी पर से नीचे गिर गिर जाता था। गांव वालों ने जब पत्नी के घर का दरवाजा खोल कर निकाला तो पत्नी दौड़कर पति के अर्थी के पास पहुंचकर कहती है कि मैं भी अपने पति के साथ जल कर सती होना चाहती हूं। यह सुन कर गांव वालों ने गांव में ही चिता तैयार कर दी। तभी अचानक पत्नी के हाथों की उंगली से आग निकलती है। उसी आग में पति-पत्नी साथ-साथ जल जाते हैं। उसके बाद कुछ गांव वालों ने गांव में सती का एक मंदिर बनवा दिया और सती को सती माता मानकर पूजा करने लगे। तब से इस गांव में होली नहीं मनाई जाती है। वही राजीव सिंह ने बताया कि सैकड़ो सालों से यह मान्यता चली आ रही है। जिसे सब मानते हैं। अन्य दिनों की तरह ही लोग होली के दिन भी साधारण भोजन बनाते और खाते है।

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Ashutosh Ranjan

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