अब गैस सिलेंडर भरवाना किसी सपने से कम नहीं

अब गैस सिलेंडर भरवाना किसी सपने से कम नहीं

सिलेंडर तो मिल गया, अब सिलेंडर भरवाने के लिए पैसे कौन देगा

बड़े ताम झाम से हमारी आंखें बचाने की घोषणा की गई थी, अब क्या हुआ



दिवंगत आशुतोष रंजन

प्रियरंजन सिन्हा

वीडियो एडिटर आकाश लोहार
गढ़वा


कहां तो सरकार ने कहा था कि पांच सौ रुपए में देंगे गैस सिलेंडर। और यहां हजार रुपए का फरमान जारी कर दिया गया। कहां क्या कैसे आइए इस खबर के जरिए पूरा मामला आपको भी बताते हैं। रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही है। हाल ही में 50 रुपए प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी के बाद पलामू गढ़वा में घरेलू गैस 910 रुपए में मिलने लगी। पेट्रोल और डीजल पर भी उत्पाद शुल्क बढ़ा है। जिससे आम जन जीवन पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है। हम बात यहां पलामू गढ़वा की कर रहे हैं। जहां सैकड़ों महिलाओं ने झंख मारकर गैस सिलेंडर छोड़कर लकड़ी का उपयोग करना शुरू कर दिया। गैस सिलेंडर सिरवा घर की शोभा बढ़ा रहा है। जब प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू हुई थी तब लगा था कि गांव देहात की महिलाओं को धुएं से राहत मिल गई। मिट्टी के चूल्हे की तपिश से दूर, गैस चूल्हे पर खाना बनाते हुए एक बेहतर जिंदगी की शुरुआत होगी। लेकिन आज पलामू गढ़वा की महिलाएं उस सपने को फिर से पीछे छोड़ चुकी हैं। क्योंकि गैस सिलेंडर भरवाना उनके लिए अब किसी सपने से कम नहीं।

सिलेंडर तो मिल गया, रोज महंगा हो रहे सिलेंडर भरवाने के लिए पैसे कौन देगा :- आज भी पलामू गढ़वा जैसे जिलों में सैकड़ों महिलाएं चूल्हे के धुएं में झुलसती हुई रोटियां सेंक रही हैं। उज्ज्वला योजना की नींव जिन उम्मीदों पर रखी गई थी वह महंगाई की दीवारों से टकराकर अब चरमराने लगी है। सरकार को अब इस योजना को सिर्फ नाम नहीं उपयोगिता के स्तर पर भी मज़बूत बनाना होगा। ताकि आम आदमी भी गैस सिलेंडर को भरवाकर अपने परिवार का पेट भर सके।

बड़े ताम झाम से हमारी आंखें बचाने की घोषणा की गई थी, अब क्या हुआ:- गीली कच्ची लकड़ी व गोबर के धुएं से हमारी आंखें बचाने का क्रेडिट लेते हुए पीएम उज्जवला योजना लाई गई थी। अब क्या हुआ? हमारी आंखें धुआं प्रूफ हो गईं क्या? महंगी गैस की मारी बेचारी मोकामा बीबी, सुनयना देवी आदि ने कहा कि उज्जवला का ढोल तो बहाना था। असली मकसद तो सिलेंडर मुफ्त देकर यार की महंगी गैस बिकवाना था।

पलामू की पूनम कुंवर ने कहा :- जब पहली बार उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर लेकर आई, तो आंखों में चमक थी। लेकिन वो कहती है गैस सिलेंडर तो मिल गई, पर हर बार सिलेंडर भरवाने के लिए पैसे नहीं होते। अब तो विधवा पेंशन से साल में दो बार ही गैस सिलेंडर भरवा पाती हूं। बाकी समय तो गोंइंठा लकड़ी जला कर के ही खाना बनाती हूं।

सुनीता देवी ने कहा :- घर में बच्चे हैं। राशन खरीदना है। दवा खरीदनी है। तो गैस के लिए पैसा कहां से लाएं। कई बार महीनों गैस सिलेंडर को भरवा नहीं पाती हूं। तब हमारा पुराना चूल्हा ही सहारा होता है। वो सरकार से मांग करती है कि गैस पर 50% सब्सिडी दी जाए ताकि गरीब परिवार सही मायने में गैस सिलेंडर का लाभ उठा सके।

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Ashutosh Ranjan

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