आशुतोष रंजन
गढ़वा
झारखंड में चुनाव तारीख की घोषणा होने में अभी भले देर हो पर प्रत्याशियों में कितनी जल्दबाजी है अगर उसे सदृश्य देखना हो तो आप सीधे गढ़वा चले आइए जहां सत्तापक्ष के प्रत्याशी के साथ साथ विपक्ष और निर्दलीय प्रत्याशी सभी क्षेत्र में ऐसे दौड़ लगा रहे हैं जैसे वो चुनाव में दौरा किया करते हैं,करें भी क्यों ना जहां एक ओर सत्तापक्ष के प्रत्याशी एक बार फ़िर से गढ़वा का विधायक बनने का सपना संजोए हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष यानी भाजपा के सबसे प्रबल और सत्तापक्ष को मात देने का माद्दा रखने वाले एकमात्र उम्मीदवार सत्येंद्र नाथ तिवारी भी पांच साल के बाद उस गढ़वा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के दिली ख़्वाब को जनता के ज़रिए हक़ीक़त में बदलने में जुटे हुए हैं जिस गढ़वा में उनके द्वारा अपने कार्यकाल के दरम्यान विकास के आयाम गढ़े गए थे तो इधर पूर्व में एक लंबे वक्त तक प्रतिनिधित्व करने के बाद विगत पंद्रह सालों से सत्ता से बाहर रहने के बाद एक बार फ़िर से अभी तक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में क्षेत्र में पहुंच अपने पुराने दिली संपर्क में नयापन लाने में जुटे हैं ताकि वापसी हो सके,लेकिन अब गढ़वा की जनता क्या सोच रही है उसे समझ पाना वर्तमान गुजरते वक्त में बेहद मुश्किल है क्योंकि ख़ुद को सबसे बेहतर साबित करने के लिए प्रत्याशियों द्वारा सारे पत्ते भले खोल दिए जाते हों पर जनता जिसे अपना प्रतिनिधि चुनना है उसके वोट के एक रोज़ पहले तक भी ज़ाहिर नहीं होने दिया जाता है कि इस बार वो किसे अपना प्रतिनिधि चुनने जा रहे हैं,ऐसे में आइए आज हम आपको सबसे सशक्त प्रत्याशी और उनकी उस यात्रा के बारे में बताते हैं जिसे पतवार बना वो चुनावी नैया को पार लगाने की जुगत में जुटे हुए हैं।
यात्रा पोल खोलने की : – अपने दस साला कार्यकाल में विकास के आयाम गढ़ने के साथ साथ अपनी सहृदयता,मर्यादित व्यवहार एवं वाकपटुता के ज़रिए क्षेत्र के लोगों के दिलों में घर बना लेने वाले सत्येंद्र नाथ तिवारी जिन्हें हम आप वर्तमान गुजरते वक्त में पूर्व विधायक कहा करते हैं,अब आप यहां पूछिएगा की जब उनके द्वारा विकास किया गया था और साथ ही सबके दिलों में वो बसते भी हैं तो फिर लोगों ने उन्हें अपने दिलों से निकलते हुए हरा क्यों दिया,आपका पूछना लाज़िमी है,लेकिन उसका कारण आपको बताऊं की वो हारे नहीं बल्कि उन्हें उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा ही हराया गया था,हां सत्ता पर काबिज़ प्रतिनिधियों द्वारा कुछ ना कुछ गलती होती ही है सो इनसे भी ज्यादा नहीं बल्कि कुछ ही हुई,मुझे शायद यहां बताने की ज़रूरत नहीं अगर आप गढ़वा से ताल्लुक रखते हैं और यहां की राजनीति में भी दिलचस्पी रखते हैं तो निश्चित रूप से वाकिफ होंगे की इनके पूरे कार्यकाल के दौरान जो इनके बेहद क़रीब था वही चुनाव में जहां एक ओर दूर रहा तो वहीं दूसरी ओर प्रतिद्वंदी के साथ अंदरूनी रूप से मिल कर इनका विरोध किया तो उधर इनकी पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा भी विरोध किया गया जिसका नतीज़ा हुआ की पिछले जीते हुए चुनावी मत से ज्यादा वोट प्रतिशत लाने के बाद भी इन्हें हार का सामना करना पड़ा,लेकिन जीवटता के प्रतिमूर्ति सत्येंद्र नाथ तनिक भी विचलित नहीं हुए और लगातार सक्रिय रहते हुए सत्तापक्ष का विरोध करते रहे,उधर दूसरी ओर पूरे विधानसभा क्षेत्र में भी घूमते हुए लोगों से संपर्क करना एवं उनकी परेशानी को दूर करना भी उनकी ओर से जारी रहा,अब इधर कुछ माह से उन्होंने पोल खोल यात्रा की शुरुआत की है,जिसके ज़रिए वो गांव गांव पहुंच राज्य सरकार और स्थानीय विधायक सह मंत्री द्वारा पूरा नहीं किए गए चुनावी वायदों की पोल खोल रहे हैं,उनके द्वारा लोगों से सीधे रूप में कहा जा रहा है की आप मेरे कार्यकाल को ही नहीं बल्कि उससे पहले के दिनों को याद कीजिए की किस तरह मैं आप लोगों के हर सुख दुख में शामिल होने के साथ साथ आपकी हर परेशानी को दूर किया करता था,उसे ही तवज्जो देते हुए आपने मुझे अपना प्रतिनिधि चुना,उसके बाद अन्य नेताओं की तरह सत्तासूख लेने के बजाए क्षेत्र की बदहाली दूर करने में जुट गया,आप अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिए की किस तरह अनगिनत विकासीय कार्य को धरातल पर कार्यान्वित करा कर हमने क्षेत्र की बदहाली को दूर करने का काम किया,कहते हैं की मैं हार गया इसे ले कर आपके प्रति मेरे दिल में तनिक भी शिकवा शिकायत नहीं है क्योंकि इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में आप सर्वोपरि हैं,मेरे द्वारा ज़रूर कोई खता की गई होगी तभी आपने मुझे हार के रूप में सज़ा देने का काम किया,मैं उसे कैसे भूल जाऊं की आपने ही मुझे लगातार दूसरी बार जिताने का भी काम किया था,साथ ही वो कहते हैं की आज सरकार और उनके नुमाइंदों के साथ साथ आपके विधायक द्वारा कहा जाता है की गढ़वा पूरी तरह बदल गया है और सबके चेहरों पर खुशी है लेकिन जिस भी गांव में मै जाता हूं वहां लोगों के चेहरे मुरझाए हुए ही नजर आते हैं,जो इस बात की तस्दीक करते हैं की वो ठगे गए यानी उनका हक़ और वाज़िब अधिकार उन्हें नहीं मिला,जिस विकास की वो कल्पना किए थे वो साकार नहीं हुआ,तभी तो आज लोग उन्मुक्त कंठ से दस साल के मेरे कार्यकाल को सराहने के साथ साथ कह रहे हैं की जिस विकास की परिकल्पना आपके जेहन में है उसके बारे में अन्य प्रतिनिधि सोच भी नहीं सकते,बस इसीलिए लोगों ने अपना मन बना लिया है की इस बार वो बदलाव करेंगे ताकि उनके गांव के साथ साथ उनके हालात में भी बदलाव हो सके।
बस ऐसे ही हैं सत्येंद्र नाथ : – ऐसे भी कहा जाता है की पैसा और पावर पास में आने के बाद आम व्यक्ति का क़दम भी भटक जाया करता है,लेकिन बात राजनीतिक क्षेत्र की करें तो यहां का क्या कहना,यहां तो सबकुछ पास में होता है,पावर,पैसा और रसूख,इन तीनों के पास में होने से राजनेताओं के क़दम से पहले उनकी इंद्रियां भटक जाया करती हैं,राज्य से ले कर देश स्तर पर नेताओं के कई काले कारनामे जगजाहिर हो चुके हैं,लेकिन उन नेताओं की फेहरिस्त में एक नाम ऐसा भी है जो कहीं से भी शुमार नहीं होता है,वही नाम तो सत्येंद्र नाथ तिवारी का है,तभी तो हमने शीर्षक ही लिखा है की जिसकी इंद्रियां रहती हैं सत्य और मर्यादा के साथ,ऐसे हैं सत्येंद्र नाथ,यह कोई केवल एक जुमला मात्र नहीं बल्कि वो सच्चाई है जो सालों से नुमाया हो रही है,वो एक जनप्रतिनिधि होने के पूर्व से भी पैसा वाले हैं,इसके बाद उनके हिस्से पावर आया लेकिन पावर आने के बाद कौन कहे पूर्व से भी जहां एक ओर उनकी इंद्रियां उनके बस में रहीं वहीं दूसरी ओर वो प्रतिनिधि बनने के बाद भी सत्य और मर्यादा के साथ रहे,राजनीति में रसूख रखने के बाद भी उनके क़दम ना तो ख़ुद डिगा और ना ही कोई डिगा पाया,ऐसे में क्या यह कहना वाजिब नहीं होगा की जो व्यक्ति अपने दस साल के कार्यकाल में क्षेत्र में विकास के कई आयाम गढ़े तो साथ ही जिनकी इंद्रियां काबू में रहने के साथ साथ सत्य की उंगली पकड़े हुए मर्यादित पथ पर चलते रहे,आप समझ ही रहे हैं की मैं क्या कहना चाह रहा हूं,ज्यादा सोचने और विचारने की नहीं बल्कि वही करने की ज़रूरत है जिसका मन आप बना चुके हैं।