संदर्भ : गढ़वा की राजनीति
आशुतोष रंजन
गढ़वा
राजनीति अच्छी भी है साथ ही यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मौक़ा भी है,तभी तो राजनीति में आ कर राजनेता से छोटा नहीं बल्कि बड़ा लाभ लेने वाले जो कल अपने नेता के साथ उनकी परछाईं के रूप में साथ रहा करते थे आज जब चुनाव का वक्त आया है तो उस महत्वपूर्ण कार्यकर्ता का साया भी साथ नज़र नहीं आ रहा है, आख़िर ऐसा क्यों यह वो ज्वलंत सवाल है जिसका जवाब केवल दो लोग ही दे सकते हैं या तो वो राजनेता या वो कार्यकर्ता।
आज नहीं दिख रहा साया भी…आख़िर ऐसा क्यों : – कल को शुरुआत से आज पांच साल गुजरने से कुछ पहले तक अपने नेता के साथ उनकी परछाईं बन साथ रहने वाले उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यकर्ता का आज साथ में साया भी साथ नज़र नहीं आ रहा है,आख़िर ऐसा क्यों है इसका ज़वाब तो नेता और वो कार्यकर्ता द्वारा ही दिया जा सकता है,लेकिन चुनाव गुज़र भी जायेगा पर ज़वाब शायद अनुत्तर ही रह जायेगा क्योंकि ना तो नेता चाहेंगे कि हमारा वो कार्यकर्ता जनता के बीच गलत साबित हो और ना ही वो कार्यकर्ता ही चाहेगा कि हमारे नेता हमारे कारण रुसवा हो,लेकिन फ़िर भी सवाल तो सवाल है जो लोगों के जेहन में तीव्रता से कौंध रहा है,आपको शायद मुझे ज़्यादा बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जब आपके जेहन में सवाल कौंध रहा है तो आप भी बख़ूबी वाक़िफ हैं कि उस महत्वपूर्ण कार्यकर्ता द्वारा अपने राजनेता के ज़रिए इतना हद तक उपार्जन किया गया जिसकी कल्पना कर पाना मुश्किल है,उसकी नज़दीकी का अंदाज़ा आप इस लिहाज़ से लगा सकते हैं कि नेता की मौजूदगी में वो कार्यकर्ता उनकी परछाईं के रूप में उनके साथ हर वक्त मौजूद रहता था,लेकिन जिस नेता द्वारा अपने उस कार्यकर्ता को ख़ाक से लाख नहीं बल्कि करोड़ों का मालिक बनाए जाने के बाद भी ऐसा क्या हुआ कि आज जब चुनाव का वक्त आ गया है,जब नेता को अपने छोटे से बड़े कार्यकर्ता की ज़रूरत है तो वो परछाईं बनने वाले करोड़पति कार्यकर्ता का साया भी क्यों नज़र नहीं आ रहा है,यहां पर उक्त कार्यकर्ता को भी दिली संजीदगी से सोचना होगा कि जिस नेता द्वारा मुझे इतना संपन्न बनाया गया तो हर गिले शिकवे को भूल उसे हम चुनाव के वक्त मदद करें,साथ ही उस नेता के द्वारा भी सोचना लाज़िमी होगा कि अपने जिस महत्वपूर्ण कार्यकर्ता की कुछ गलती को देख ख़ुद से किनारे किया गया क्योंकि उसके रहते ख़ुद का वोट ख़राब हो सकता है,ऐसा चुनाव के वक्त नहीं बल्कि बहुत पहले सोचना चाहिए था ताकि कुछ बिगड़ने से पहले बहुत कुछ सुधरा रह जाए।