प्रत्याशियों के मन में छिड़ा है द्वंद,आख़िर हम में से कौन जीतेगा जंग..?
आशुतोष रंजन
गढ़वा
भले सामने होने पर प्रत्याशियों को कह दें कि मैं तो आपके साथ ही हूं लेकिन यह सर्वविदित है कि वर्तमान गुजरते वक्त में जनता किसे अपना बहुमूल्य मत देगी उसे ज़ाहिर नहीं होने देती,तभी तो गढ़वा विधानसभा क्षेत्र से तीनों प्रमुख प्रत्याशी क्रमशः जेएमएम से मिथिलेश ठाकुर,भाजपा से सत्येंद्र नाथ तिवारी और समाजवादी पार्टी के गिरिनाथ सिंह के मन में यह द्वंद छिड़ा है कि हम तीनों में से आख़िर कौन गढ़वा का जंग जीतेगा,क्योंकि जनता पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है,आइए इसी विषयक कुछ लिखते हैं।
ना जाने क्या सोच रही गढ़वा की जनता : – क्या शहर मुख्यालय और क्या गांव और साथ ही क्या टोला और प्रत्येक घर भी कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि तीनों प्रत्याशियों द्वारा क्षेत्र की जनता को अपने पाले में किए जाने को ले कर मशक्कत की जा रही है,कौन कितना कामयाब हुआ यह तो 23 को आने वाला परिणाम बताएगा,लेकिन अभी तो फ़िलहाल 13 तारीख़ है,आप तो इस तारीख़ से वाक़िफ ही हैं क्योंकि इसी रोज़ आपको अपना विधायक चुनने को ले कर मतदान करना है,लेकिन मेरा कहना तो यही है न कि आप बेशक मतदान कीजियेगा लेकिन किसके पक्ष में कीजियेगा,सत्येंद्र,मिथिलेश या गिरिनाथ कौन आपके जेहन में हैं इसका ही खुलासा तो नहीं हो पा रहा है,और चर्चा भी इसी बात को ले कर है कि मतदान की तारीख़ क़रीब आते आते तक जनता द्वारा पत्ता खोल दिया जाता था पर इस बार की चुप्पी एकदम समझ से परे है,यह बात अलग है कि जब आपके पास प्रत्याशी पहुंच रहे हैं तो आप उनका इस क़दर आदर सत्कार कर रहे हैं और उनका इस रूप में जिंदाबाद कर रहे हैं कि उन्हें अंदाज़ा हो जा रहा है कि आप एकदम से उन्हीं के हैं,लेकिन शायद ही ऐसा हो पाता है कि प्रत्याशियों की मौजूदगी में जुटने वाली भीड़ वोट में बदल पाती है,तभी तो उस भीड़ से लौटने के बाद प्रत्याशियों के मन में यही द्वंद छिड़ रहा है कि मेरे पहुंचने के बाद जिस तरह से इस चुनाव के वक्त में भी लोगों ने मेरा सत्कार किया,मुझे हाथों हाथ लिया,क्या ये सच में मेरे ही साथ हैं,क्योंकि गांव में अमूमन यही होता है कि एक ही भीड़ हर प्रत्याशियों के पास जुटती है,और अपने पास आने के बाद सबका सत्कार करती है,सो इस चुनाव में भी उसे ही दुहराया जा रहा है,तभी तो प्रत्याशी समझ नहीं पा रहे हैं,क्योंकि गुजरे वक्त में जनता खुले मन से बोलती थी,लेकिन इस बार की खामोशी किसी बड़े तूफ़ान का संकेत दे रही है,ऐसे में अब यह समझना मुश्किल है कि आने वाला तूफ़ान तीनों में से किस एक को इस चुनावी मझधार से किनारे पर ले आता है और किन दो को बहा ले जाता है…?