ले कर बिरसा मंडप में शपथ,मंत्री क्यों नहीं चलते विकास के पथ.?

ले कर बिरसा मंडप में शपथ,मंत्री क्यों नहीं चलते विकास के पथ.?

और कितना वक्त लगेगा दिन बहुरने में..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

एक बार फिर से झारखंड में पांच दिसंबर को राजभवन के बिरसा मंडप में नई सरकार के मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह हो रहा है,जहां राज्य के मंत्री अपने क्षेत्र सहित राज्य को विकसित करने का संकल्प लेंगे,लेकिन वो अपने शपथ के अनुरूप नेक नियति के साथ उस पर कितना कायम रह पाते हैं इसकी बानगी आपको तब देखने को मिल जाएगी जब आप शहर मुख्यालय से दूर सुदूर देहात में पहुंचेंगे,जहां लोगों के लिए विकास का पहला पायदान कहा जाने वाला एक अदद बेहतर सड़क मयस्सर नहीं है,खेत रहते हुए लोग भूमिहीन का जीवन जीते हैं,क्योंकि सिंचाई की माकूल सुविधा मौजूद नहीं है,पढ़ कर डिग्री हासिल करने के बाद भी युवा बेरोजगारों के पास बाहर प्रदेशों का ख़ाक छानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं है,जहां दो रोटी के लिए जाने के बाद भी उनके हिस्से में रोटी कम मौत ज़्यादा आती है,जिनके बहुमूल्य मतों के बदौलत जनप्रतिनिधि एक मंत्री के रूप में शपथ लिया करते हैं,विडंबना तो इस बात का है कि वो सभी उस महान विभूति के नाम पर बने स्थल पर खड़े हो कर शपथ लिया करते हैं जो कभी इसी राज्य को अक्षुण्ण और अखंड रखने ख़ातिर अपनी आहुति दे दी,लेकिन बेहद अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वहां खड़े हो कर भी राजनेता सच्ची नहीं बल्कि झूठी नीयत के साथ शपथ लिया करते हैं,हम किसी एक सरकार और उनके नुमाइंदों को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं,बल्कि राज्य गठन के बाद से इस झारखंड में जितनी भी सरकारें सत्तासीन हुईं और जितने भी जनप्रतिनिधि इस जिले से निर्वाचित हुए कमोवेश वो शपथ के अनुसार नहीं बल्कि ख़ुद की इच्छा के अनुरूप पथ पर चलना मुनासिब समझे,क्या गढ़वा क्या भवनाथपुर और क्या विश्रामपुर इन तीनों क्षेत्र से निर्वाचित होने वाले कई विधायक मंत्री बने पर इन क्षेत्रों में कई ऐसे सुदूर गांव हैं जहां अब तलक बेहतर सड़क के साथ साथ सिंचाई और कई अन्य ज़रूरी विकासीय सुविधाएं मौजूद नहीं है,सड़क के मामले में हम पत्रकारों को वो चाहे अख़बार से जुड़े हों या किसी खबरिया चैनल के जहां के भयावह हालात देख यह सोच कर रोना आ जाता है कि आख़िर बहुत कुछ कहते और दुहराते हुए शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधि आख़िर शपथ के साथ साथ चुनाव के दरम्यान बोले गए अपने वायदा – ए – अल्फ़ाज़ को कैसे भूल जाया करते हैं,और इधर वोट दे कर दिन बहुरने का आस जोहने वाली अबोध जनता राह ताकते रह जाती है,आख़िर ऐसा कब तलक चलता रहेगा,कब तक जनता अपने गांव को पूर्ण रूप से विकसित होते देख पाएगी और प्रतिनिधियों का शपथ लेना सार्थक हो पायेगा यह तो अब तलक भविष्य के गर्त में ही है।

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