किससे क्या कहे कोई..?
आशुतोष रंजन
गढ़वा
अंधेरे में भले रहे आलय,पर देखिये दिन में भी रौशनी से रौशन रहता है समाहरणालय,जी हां झारखंड का गढ़वा जिला दशकों से बिजली की समस्या से जूझ रहा है,यहां यूपी और बिहार से मिलने वाली उधार की बिजली का लोग नक़द भुगतान करने के बाद भी पर्याप्त बिजली से महरूम रहते हैं, भरपूर उजाले की जगह स्याह अंधेरे में रहना लोगों की नियति बन गयी है,लेकिन सबका आलय यानी घर घुप अंधेरे में भले रहे लेकिन गढ़वा का समाहरणालय रौशनी से रौशन रहता है।
पर क्या कहे कोई:- समस्या से हो कर हलकान,आंखें हैं जिनकी पल पल रोइ,पर ज़बान है चुप,क्योंकि क्या कहे कोई", जी हां आज पानी व्यर्थ बर्बाद नहीं करने को ले कर जिस तरह पानी बचाने की बात कही जाती है ठीक उसी तरह अनायास बिजली नहीं जलाने की बात कहते हुए बिजली बचाने को ले कर लोगों को जागरूक किया जाता है पर जब बिजली का छोटा बल्ब नहीं बल्कि बड़ा वैपर लाइट वहां जलता हो जहां मौजूद रहने वाले कंधों पर लोगों को इस बावत जागरूक करने की जिम्मेवारी है,ऐसे हालात से दो चार होने के बाद भी लोग चुप हो जाया करते हैं कि आख़िर वो किससे क्या कहें ?
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