काश ऐसा हर मामले में होता.?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति से किसी से डर लगने की बात तो नहीं है पर कभी कभी किसी के मोबाइल में कोई हॉरर रिंगटोन सुन कर ज़रूर डर जाता हूं,मेरे कहने का मतलब है की जिस तरह किसी के मोबाइल में बजने वाला रिंगटोन आपके शांत शरीर को एकाएक सिहरा देता है ठीक उसी तरह किसी पावर के मद्द में मदमस्त व्यक्ति को जब ख़ुद से ज्यादा पावर वाले व्यक्ति का फोन आ जाता है तो उसके बोली वाला टोन एकाएक बदल जाता है,कुछ ऐसा ही गढ़वा में सामने आने की बात कही जा रही है,वो भले पत्रकारिता के सूत्र का मज़ाक बनावें पर उसी सूत्र से जानकारी मिल रही है की देश से नहीं बल्कि विदेश से एक फोन आया और यहां कुछ लोगों के शारीरिक हाव भाव के साथ साथ बोली का पूरा टोन ही बदल गया,अब वो किसका फोन था,और विदेश में कहां से आया यह तो अज्ञात ही रखिए,लेकिन पत्रकारों का सूत्र कभी गलत नहीं होता,उसे गलत वही ठहराता है जो अपने आप में गलत होता है,कल तलक अपने मनमाफिक टोन में बोलने वाले वो लोग भी अब या तो बोल नहीं रहे और बोल भी रहे हैं तो उनकी बोली का पूरा टोन ही बदला हुआ है,अब आप सोचिए वो विदेश वाले फोन कॉल में कितना पावर है जो सात समंदर पार से भी अपने वजूद का इस तरह से अहसास करा दिया जैसे की वो रंका मोड़ चौक से शहर में किसी को फोन कर रहा हो,ख़ैर बात कुछ भी हो हम और आप क्या हर किसी की चाहत बस यही है की गुजरे पांच रोज़ से ज़ारी डॉक्टरों की हड़ताल ख़त्म हो और लाईलाज रह कर बिस्तर पर कराह रहे मरीजों को इलाज़ मयस्सर हो।