क्यों ढोए जाते हैं जनप्रतिनिधियों के नाम


आशुतोष रंजन
गढ़वा

हो सकता है यह जनप्रतिनिधियों का विशेषाधिकार होता होगा,अगर सच में ऐसा होता होगा तो यह कहीं से भी किसी मायने में सही दिखता प्रतीत नहीं होता है,क्योंकि अमुक जनप्रतिनिधि उस स्थल की बात कौन करे क्षेत्र और जिला तक से बाहर हो लेकिन अगर उसके क्षेत्र में अवस्थित नगर निकाय द्वारा किसी योजना की आधारशिला रखी जाए या पूर्ण हो चुके किसी योजना का उदघाटन किया जाए तो उक्त शिलापट्ट पर निकाय प्रतिनिधि के साथ साथ क्षेत्रीय विधायक और सांसद का नाम भी लिखा जाए,ऐसी बात नहीं है की केवल मैं ही ऐसा महसूस करता हूं बल्कि आप लोग भी ऐसा सोचते होंगें लेकिन अंतर यही है की आप बोल नहीं रहे और मैं बोल रहा हूं,मुझे बढ़िया से याद है जब मैं पलामू में था तो तब वहां नगर परिषद द्वारा एक शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित किया गया था,जहां शिलापट्ट पर विधायक और सांसद का नाम देख और उनकी मौजूदगी को ना देखते हुए मैं पूछा था की क्या वो आज नहीं आए या बराबर नहीं आते,केवल उनका नाम आता है,तो परिषद से जुड़े लोगों ने कहा था की मेरा नाम मत लिखिएगा बता रहा हूं की वो लोग कभी नहीं आते बस शिलापट्ट पर उनका नाम आता है,क्या कीजिएगा लिखना पड़ता है,अब वही गढ़वा में भी नुमाया हो रहा है,अक्सर देखने में आता है की नगर परिषद द्वारा कई योजनाओं का शिलान्यास और उदघाटन किया जाता है,जहां कार्यक्रम में परिषद के अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,कार्यपालक पदाधिकारी और वार्ड पार्षदों की मौजूदगी सशरीर रहती है,लेकिन अगर उक्त कार्यक्रम में आपको वो लोग नज़र नहीं आयेंगे,जिनकी गरिमामई उपस्थिति शिलापट्ट पर दर्शाई जाती है,लगातार देखने के बाद आज बरबस लिखने की इच्छा हुई की आख़िर ऐसी क्या मज़बूरी है की जिनकी उपस्थिति नहीं है तो उनके नाम की मौजूदगी क्यों.?