नहीं छोडूंगा कुछ भी अधूरा,क्योंकि कर रहा हूं मैं ख़्वाब पूरा


आशुतोष रंजन
गढ़वा

मैं जो ख़बर आपको पढ़ाने जा रहा हूं वो मात्र एक ख़बर नहीं है, क्योंकि मैं वो सच्चाई लिखने जा रहा हूं जो आज उनके नज़रों के सामने सदृश्य नुमाया हो रहा है जिसे देखने के लिए एक ओर जहां कालांतर में कई पीढ़ियां गुजर गईं तो वहीं दूसरी ओर वर्तमान की पीढ़ी अपने यहां आने वाले हर जनप्रतिनिधि की ओर कातर निगाहों से देखती थी,लेकिन लोगों की वो स्याह नज़रें आज खुशी से दमक रही हैं,लोगों की नज़रें क्यों स्याह थीं और आख़िर उनमें आज चमक कैसे आई,आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताते हैं।

वो आज सड़कों पर चलते हैं: – मेरे इस ख़बर के शीर्षक को आपने पढ़ा होगा,मैं लिखा हूं की जो कल पगडंडी से गुजरते थे,वो आज सड़कों पर चलते हैं,मैं कहूं क्या आप बेशक जान रहे हैं की गढ़वा के सुदूर देहात के साथ साथ मुख्यालय पास के भी कई गांव ऐसे थे जहां के लोग दशकों से एक अदद सड़क की बाट जोहते हुए पगडंडी के सहारे गुजरने को विवश थे,उनकी वो असहनीय पीड़ा हर चुनाव में नेताओं के लिए मुद्दा बनता था,नेता उसी मुद्दे के सहारे अपनी चुनावी नैया पार कर लेते थे पर अफ़सोस लोगों की ज़िंदगी मझधार में ही फंसी रहती थी,बात ऐसी नहीं की लोग चुनाव के बाद अपने जनप्रतिनिधि से कहते नहीं थे,पर मुद्दा को जीवित रखने वाले उनके जनप्रतिनिधि लोगों की इच्छाओं को बेमौत मारते रहे,नतीज़ा हुआ की जहां लोगों की चाहत मरी तो वहीं सड़क की आस जोहते जोहते उनकी आंखें पथरा गई,पर उनकी चाहत तब पूरी हुई और उनकी बुझी आंखों में तब एक चमक आई जब उन्होंने अंतिम आस के साथ ग्यारह साल से अपने बीच हर सुख दुख में मौजूद रह कर संघर्ष कर रहे मिथिलेश ठाकुर को अपना जनप्रतिनिधि चुना,जिनके द्वारा चुनाव से पूर्व दिए गए सहृदय सहयोग को देखते हुए लोगों ने उन्हें अपना विधायक चुना,उनके ज़रिए ही लोगों की दुर्दीनता दूर होना लिखा था सो वो विधायक बनने के साथ साथ राज्य के मंत्री भी बन गए,और फ़िर शुरू हुआ वो विकासीय काम जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी,क्या शहर मुख्यालय और क्या गांव हर जगह वो सभी काम होने लगे जिसकी लोग आस लगाए हुए थे,चुनाव से पहले गांव में जाने पर ख़ुद से हालात नज़र करने के साथ जब लोग उन्हें बताते थे तो तब के मिथिलेश ठाकुर बेहद आहत हो जाते थे और बस यही कहा करते थे की आपके आशीर्वाद और सहयोग से अगर मेरे हाथ में अधिकार आया तो मैं दशकों के इस धुंधली तस्वीर को साफ़ नहीं करूंगा बल्कि एक नई तस्वीर ही स्थापित करूंगा,उनके द्वारा जो कहा गया था,आज उसे वो अक्षरशः पूरा कर रहे हैं,सबसे पहले आज के मंत्री मिथिलेश ठाकुर द्वारा विकास का पहला पायदान यानी सड़क का नहीं बल्कि सड़कों का निर्माण शुरू किया गया,हम सड़कों इसलिए लिखे की कोई एक दो गांव में नहीं बल्कि एक साथ दर्जनों गांव में सड़क का निर्माण शुरू हुआ,यह तो निर्वाचित होने के बाद की बात है,आज तो आलम यह है की सड़कों का जाल सा बिछ गया है,तभी हमने ख़बर का शीर्षक लिखा की जो कल पगडंडी से गुजरते थे,वो आज सड़कों पर चलते हैं,साथ ही कहूं की विकास के उसी पायदान यानी सड़क से हो कर अन्य योजनाएं भी पहुंच कर कार्यान्वित हो रही हैं,तभी तो आज राज्य में गढ़वा विधानसभा क्षेत्र को सबसे अव्वल विधानसभा कहा जा रहा है।

क्योंकि कर रहा हूं मैं ख़्वाब पूरा: – दशकों की पगडंडी को सड़क में बदलने वाले मंत्री मिथिलेश ठाकुर से एक पत्रकार होने के नाते जब भी विकास के बावत सवाल करता हूं तो उनका एकमात्र ज़वाब होता है की अरे मैं विकास की बात बनाने और उसे गिनाने वालों में से नहीं बल्कि सही मायने में सरजमीन पर विकास करने वाला जनप्रतिनिधि हूं,वो कहते हैं की वादा पूरा कर रहा हूं ऐसा कहने वाला भी मैं नहीं हूं,क्योंकि मैं चुनावी वादा नहीं बल्कि निर्वाचित होने वाले चुनाव से पहले ग्यारह साल तक गांव गांव घूमते हुए मैं जो संघर्ष किया था उस वक्त जिस तरह लोगों की असहनीय पीड़ा सुन व्यथित होता था तो एक ख़्वाब भी देखता था की कभी अगर अपने हाथ में अधिकार आया तो केवल विकास ही नहीं बल्कि विकासीय कार्य को इस रूप में कार्यान्वित कराऊंगा की जहां एक तरफ़ लोगों की दशकों पूर्व की पीड़ा दूर होगी तो वहीं दूसरी ओर वो विकास राजनीति करने वालों के लिए एक सीख भी होगी,और आज मैं ख़ुद नहीं बल्कि गढ़वा के साथ साथ यहां से गुजरते वक्त उस काम को देखने के बाद लोग स्वतः बोल पड़ रहे हैं की नेक नियति और ईमानदार प्रयास से किया जा रहा विकास देखना हो तो गढ़वा को देखिए,लेकिन इतना सबकुछ के बाद भी मैं ना तो संतुष्ट हूं और ना ही कभी ऐसा भी कहूंगा की मैने जितना कहा था उसे पूरा कर दिया,क्योंकि मैं तो वादों की नहीं ख़्वाबों की बात कर रहा हूं,और मेरा ख़्वाब अभी पूरा नहीं हुआ है।