अंग्रेजियत तो थोपी गई है हम हिन्दी लोगों पर


आशुतोष रंजन
गढ़वा

मैं किसी और के बारे में नहीं,बात अपनी करूंगा,दो चार रोज़ पहले मेरे जीवन से जुड़ा एक लेख आपको पढ़ने को मिला होगा जो पुरस्कार प्राप्त व्यंग्य लेखक राजीव भारद्वाज द्वारा लिखा गया था,उसमें इस बात का साफ़ तौर पर उल्लेख है की मेरे पिता जी जिस रूप में मुझे पढ़ाना चाहते थे मैं नहीं पढ़ सका,हां कुछ हद तक ज़रूर पढ़ा,अब साथ में यहां यह भी बता दूं की मैं अंग्रेजी और गणित में शुरुआत से ही बेहद कमज़ोर रहा,आलम हुआ की इन दो विषयों से मैं पूरी तरह अनभिज्ञ ही रहा,हां पिता जी की लेखनी के साथ साथ गढ़वा पलामू और बाहर के बड़े नामवर पत्रकारों की लेखनी को शुरुआत से पढ़ने के कारण पूरा तो नहीं कुछ कुछ हिन्दी बोलना और लिखना ज़रूर जान गया,अनवरत कोशिश भी जारी है,मैं फ़िर से अपनी कहानी नहीं दुहरा रहा,बल्कि कुछ बात ऐसी हुई है जिस कारण किसी और के बारे में ना कहते हुए मैं ख़ुद के बारे में ही कहना ज़्यादा मुनासिब समझ रहा हूं,आख़िर वो कौन सी बात है,आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताऊं।

हम सभी हिन्दी देश के हिन्दी मीडिया हैं भाई: – कल झारखंड के राज्यपाल गढ़वा में थे,जिले के रमकंडा प्रखंड कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में वो शामिल हुए,कार्यक्रम के उपरांत वो मीडिया से मुखातिब हुए,जैसा की आपको मालूम है की वो हिन्दी नहीं बोल पाते हैं सो पत्रकारों के सवालों का ज़वाब वो अंग्रेजी में ही दे रहे थे,लेकिन बात देर शाम ऐसी हुई की सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा की गढ़वा के पत्रकारों द्वारा नाक कटा दिया गया,वो ऐसे की राज्यपाल से पत्रकारों द्वारा अंग्रेजी में सवाल नहीं पूछा गया,लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है की हम हिन्दी देश के हिन्दी मीडिया हैं,अगर हम किसी अंग्रेजी मीडिया में होते तो निश्चित रूप से अगर अंग्रेजी आती तभी हमारा उक्त संस्थान में चयन होता,जहां तक मुझे याद है की जब मैं अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत किया तो उस वक्त भी हमसे यह नहीं पूछा गया की आपको अंग्रेजी आती है या नहीं साथ ही जब न्यूज़ चैनल में भी चयन हुआ तो उस वक्त भी ऐसी बात नहीं पूछी गई,और आज गुज़रे तेईस सालों से पत्रकारिता भी करते आ रहा हूं,इस दरम्यान ऐसे मौक़े एक बार नहीं बल्कि कई दर्जन बार आए लेकिन मैं हिन्दी में ही सवाल किया और सामने से ज़वाब भी मुझे अंग्रेजी में नहीं बल्कि हिन्दी में ही मिला,आज भी अक्सर हम आप यही सुनते हैं की अंग्रेजियत तो हम सबों पर जबरन थोपी गई है,हम आप हिन्दी भाषी देश में जीवन बसर करते हैं, हिन्दी ही हमारी भाषा है इस पर गर्व करने के बजाए अंग्रेजी बोलना गौरव समझते हैं,हिन्दी दिवस की बधाई अगर कोई देता है तो शुक्रिया या धन्यवाद कहने के बजाए थैंक्स कहना उचित समझते हैं,जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए,आज यही मानसिकता ही मन में अंग्रेजी को काबिज़ करा रहा है,हां इस बात से भी मैं इनकार नहीं कर सकता की मैं अंग्रेजी नहीं बोल पाता यह मेरी कमज़ोरी है मैं इसे स्वीकार कर रहा हूं,मुझे अंग्रेजी जानना चाहिए,लेकिन अंत में फ़िर से यही कहूंगा की मैं हिन्दी देश का निवासी हूं और हिन्दी मीडिया में हूं इसलिए जब भी सवाल करूंगा तो हिन्दी में ही करूंगा।