कारगर नहीं है निजी क्लीनिक में मिलने वाला टीका: सिविल सर्जन


आशुतोष रंजन
गढ़वा

कई तरह की बीमारियों से बचाव के लिए सरकार बच्चों को मुफ्त में आठ टीके लगाती है,लेकिन निजी क्लिनिक में उससे भी अधिक दर्जनों तरह के टीके लगाए जा रहे हैं,हालांकि परेशानी टीकों से नहीं है,क्योंकि इनसे बच्चों को अन्य बीमारियों से भी बचाव में मदद मिलती है,दिक्कत इनके नाम पर हो रही मुनाफाखोरी से है।

ज्यादा पैसा ले कर लगाए जा रहे टीके: – निजी क्लीनिक में तीन से पांच गुना कीमत ले कर ये टीके लगाये जा रहे हैं,वो सीधे कंपनियों से खरीद कर क्लिनिक में रख रहे हैं,जबकि कानूनी तौर पर उन्हें दवा बेचने का अधिकार ही नहीं है,मुनाफाखोरी के कारण बच्चों का टीकाकरण निजी क्लिनिक में 15 से 20 हजार रुपए तक जा पहुंचा है,बाजार में इनकी कीमत इतनी नहीं है।

सालाना करोड़ का निजी टीकाकरण: – निजी वैक्सीनेशन पर नियंत्रण नहीं होने से कहीं 100 रुपए की वैक्सीन के 800, तो 500 की वैक्सीन के 2000 तक वसूले जा रहे हैं,दवा व्यापारियों के अनुसार सरकारी टीकाकरण के बावजूद निजी क्लिनिक में वैक्सीनेशन पर सालाना करोड़ से ज्यादा खर्च हो रहे हैं।

पेनलेस वैक्सीनेशन के नाम पर भी मुनाफाखोरी: – जानकार चिकित्सक बताते हैं कि 700 रुपए की पेंटा वैक्सीन पेनलेस हो तो 2500 से 3000 में पड़ती है,इसमें दर्द,बुखार नहीं होता, कहते हैं कि सामान्य वैक्सीनेशन 15 से 20 हजार का होता है, पेनलेस 30000 में पड़ता है।

टीका लगाने का चार्ज नहीं लेता: – नाम नहीं छापने के शर्त पर निजी क्लीनिक वाले डॉक्टर कहते हैं की एमआरपी पर टीके देते हैं,लगाने का चार्ज नहीं लेते,जिले में शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के क्लिनिक में मालूम करने पर ज्यादातर एमआरपी पर ही टीकाकरण मिला,जब डॉक्टर्स से होलसेल रेट पर खरीदकर एमआरपी पर टीके लगाने पर सवाल किया तो अधिकतर ने कहा कि हम टीका लगाने का चार्ज नहीं ले रहे हैं,सीधे कंपनी से खरीदने पर सवाल उठाया तो उनका जवाब था- स्टोर पर कोल्ड चेन मेंटेन नहीं हो पाती,इसलिए हम ही टिका रखते हैं। 

दवा बेचने का अधिकार ही नहीं:– ड्रग एंड केमिस्ट एक्ट 1940 के प्रावधान के तहत दवा बेचने के लिए लाइसेंस लेना जरूरी है,डॉक्टर भी सिर्फ आपात स्थितियों के लिए जीवन रक्षक दवाएं रख सकते हैं,उन्हें मेडिसिन बेचने,उसका बिल आदि देने का अधिकार नहीं है।

 

अंतर है सरकारी और निजी टीका में: – सरकारी और निजी डॉक्टरों के टीकाकरण में काफी अंतर है,सरकार बजट,कॉमन बीमारी आदि देखती है,डॉक्टर अनकॉमन बीमारी के टीके भी बता दिया करते हैं,सभी टीके जरूरी हैं अगर वो सरकारी टीकाकरण केंद्र में लिए जाएं तब,उधर कुछ विदेश जाने वालों के लिए भी जरूरी हैं।

कारगर नहीं है निजी क्लीनिक में लिया जाने वाला टीका: – इस संबंध में सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल कुमार सिंह ने कहा कि सरकारी अस्पताल के टीकाकरण के मुकाबले में निजी क्लीनिक में मिल रहे टीका उतना कारगर नहीं है,जितना कि सरकारी अस्पताल का टीका कारगर है,उन्होंने कहा कि टीका रखने का जो कोल्ड स्टोर चैन है,उसे सरकारी अस्पताल ही मेंटेन करता है,उसके रखरखाव आदि पर सरकारी अस्पताल एक अलग से व्यवस्था करती है,कहा कि सरकारी अस्पतालों में सभी तरह के टीका उपलब्ध है,बावजूद कुछ लोग निजी क्लीनिक में जाकर टीका को महंगी कीमतों में खरीद कर लगवाते हैं,उन्होंने अपील किया है कि बच्चों को सरकारी अस्पताल का ही टिका लगवाएं।