वाणी पर संयम रखना चाहिए
आशुतोष रंजन
गढ़वा
जब लक्ष्य पवित्र नहीं होता है तब वरदान भी श्राप बन जाता है, अपने साधन और सामर्थ्य को समाज हित में लगाएं दूसरे के अहित के प्रयोजन से उपर्युक्त सहयोगी साधन भी विपरीत परिणाम देने लगते हैं,नकारात्मक विचार और कुकृत्य से समाज में व्यक्ति को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं होता है,इसलिए नकारात्मक भाव मन में अंकुरित भी नहीं होने दें,श्री जीयर स्वामी ने कहा कि व्यक्ति को ईश्वर द्वारा प्राप्त शरीर और संसाधनों का कभी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए,ऐसा करने से शक्ति और साधन क्षीण होते हैं और समाज उक्त व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखता है,प्रहलाद अपने पिता हिरण्यकश्यपु द्वारा लाख समझाने एवं प्रताड़ित करने के बावजूद भगवान से अलग नहीं हो रहे थे,हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को पहाड़ से गिरवाया,हाथी से कुचलवाया और विष पिलवाया लेकिन वे ईश्वर-कृपा से सुरक्षित रहे,हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका ने तपस्या से एक ऐसी चादर प्राप्त की थी,जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि का प्रभाव नहीं होता था,हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को जलाने के लिए होलिका का सहारा लिया,होलिका जब प्रज्जवलित अग्नि में प्रह्लाद को लेकर बैठी तो प्रभुकृपा से ऐसी आंधी आयी की चादर होलिका के शरीर से उड़कर प्रह्लाद के शरीर को ढक लिया,होलिक जल गयी और प्रहलाद बच गए, होलिका का उद्देश्य पवित्र नहीं था,इसलिए सहयोगी साधन भी विपरीत परिणाम दे दिया,भौतिक एवं अभौतिक साधनों को दूसरों के अहित में नहीं लगाना चाहिए,कहा कि वाणी पर संयम रखना चाहिए,बिना सोचे-विचारे कुछ नहीं कहना चाहिए,इसीलिए नीति कहती है कि शास्त्रपूतं वदेत् वाचम् यानी शास्त्र के अनुकूल वाणी बोलनी चाहिए,मन से सोचकर वाणी बोलनी चाहिए,जो शिक्षा,भगवान,संत और शास्त्र के विरोधी हो उस शिक्षा को ग्रहण नहीं करना चाहिए,उन्होंने कहा कि गलत आहार,गलत व्यवहार एवं शास्त्र-विरूद्ध विवाह के कारण जीवन में शांति नहीं मिलती,बल्कि जीवन संकटमय हो जाता है,हमारे बोलने और देखने की शैली अच्छी नहीं हो तो जीवन निराशपूर्ण हो जाता है।