बच्चों की मानसिकता क्यों विकृत हो रही है..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

एक वक्त था जब दादा दादी का प्यार पा कर बच्चे निहाल हो जाया करते थे,वो लाख अपनी मां पास रहें लेकिन दादा दादी का गोद उन्हें कुछ ज्यादा ही सुकून दिया करता था,तब के बच्चे इस ताक में रहते थे की उनसे दादा दादी कुछ काम करने को बोलें ताकि उसे करने के साथ साथ उन्हें उनका दुलार और प्यार मिल सके,पर यह बात गुज़रे ज़माने की हो गई,क्योंकि वर्तमान गुजरते वक्त ने एकदम से सभी परिभाषाओं को बदल कर रख दिया है,मोबाइल और टीवी से चिपके रहने वाले बच्चों को अब ना तो दादा दादी का गोद सुहाता है और ना तो उनका कहा हुआ काम ही करने को जी करता है,बल्कि यूं कहें तो बच्चों को नागवार गुजरता है तभी तो उस लड़की को भी नागवार गुजरा और उसने गलत क़दम उठा लिया,आपको बताएं की गढ़वा जिला के रंका अनुमंडल अंतर्गत लुकुमबार गांव में एक 14 वर्षीया लड़की द्वारा इसलिए जान दे दी गई की उससे उसकी दादी द्वारा घर के बाहर झाड़ू से सफ़ाई करने को बोला गया था,जब उसकी दादी खेत से काम कर के लौटी तो देखा की अभी तक सफाई नहीं हुआ है,इसी बात को ले कर उसे थोड़ी खरी खोटी सुनाई गई,बस क्या था,दादी की प्यार भरी डांट पोती को इतना बुरा लगा,ऐसा नागवार गुज़रा की उसने अन्य बच्चों की तरह गुस्सा हो कर खाना नहीं खाने और किसी से बात नहीं करने की जगह जान दे देना ही मुनासिब समझा और घर से कुछ दूर पर अवस्थित जंगल में पहुंच ना जाने उसके द्वारा क्या खा लिया गया की बेहोशी की हालत में इलाज़ वास्ते उसे अस्पताल ले जाया गया,जहां उसकी मौत हो गई।

सवाल उठता है की दादी का काम करने के लिए कहना,और ना करने की सूरत में डांटने के कारण उसका जान दे देना वर्तमान गुजरते वक्त में बच्चों की किस मानसिकता को दर्शा रहा है।