क्या गढ़वा में आज भी हो रहा है बालू का अवैध उठाव..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

आज पूजा के रोज़ चर्चा तो करना नहीं चाह रहा था,पर एक तस्वीर जो कुछ रोज़ पहले मैं लिया था,और जब भी मोबाइल की गैलरी खोलता हूं तो उस तस्वीर पर नज़र बरबस चली जाती है और दिल से यही आवाज़ आती है की एक पत्रकार होने के नाते खबरिया नज़र से देखते हुए ही इस तस्वीर को आपने कैद किया था,जब कुछ लिखना ही नहीं था तो आख़िर क्यों गैलरी का बोझ बढ़ा रहे हैं,उक्त तस्वीर पर आधारित ख़बर लिखने के लिए कई रोज़ मोबाइल को उठाया पर हर बार कोई और ख़बर सामने आ जाने के कारण इसे नहीं लिख सका,पर आज सोचा कि लिख ही डालूं तो आइए आपको बताऊं की आख़िर वो कौन सी तस्वीर और ख़बर है.?

आपकी बात: यह वर्तमान गुजरते वक्त की नहीं बल्कि दशकों से एक बात कही जा रही है की एक तस्वीर ही है जो कभी झूठ नहीं बोलता,तस्वीर की चर्चा इसलिए कह रहा हूं की आज की मेरी ख़बर एक तस्वीर पर ही आधारित है,आपको बताऊं की एक रोज़ मैं गढ़वा के शहर थाना में खड़ा था की एकाएक एक ट्रैक्टर पर नज़र गई,जो थाना के अंदर से बाहर जा रहा था,आप सोचिएगा की यह कौन सी बड़ी बात हो गई,किसी मामले में वो अंदर गया होगा,रिलीज होने के बाद बाहर जा रहा होगा,लेकिन बात ख़ाली गाड़ी की नहीं बल्कि बालू लदे ट्रैक्टर की है,मेरी नज़र केवल ट्रैक्टर पर गई थी लेकिन जब उसके ट्रॉली पर ध्यान गया तो नज़रें एकदम से उसी पर स्थिर हो गई,क्योंकि एक बालू लदा ट्रैक्टर थाना के अंदर से बाहर जा रहा था,मोबाइल हाथ में था सो दो तीन तस्वीर फ़ौरन क्लिक कर लिया,और सोचने लगा कि गढ़वा झारखंड का वो जिला है जहां से सबसे ज्यादा बालू का अवैध उठाव होता है,हर बार रोक लगाए जाने की बात आती है पर शायद रोक नहीं लग पाया है क्योंकि अगर रोक लगा होता तो थाना में बालू लदा ट्रैक्टर नहीं आया होता,यह एक तस्वीर कई प्रमाण को परिलक्षित कर रहा है,एक तरफ़ जहां इससे यह मालूम चलता है की गढ़वा में बड़ी गाड़ियों से ना सही लेकिन ट्रैक्टर से ही सही अवैध रूप से बालू का उठाव हो रहा है,साथ ही यह भी कह दूं की गाहे ब गाहे बात आती है की छोटी गाड़ियों से बालू का उठाव नहीं होगा तो पीएम आवास सहित अन्य सरकारी योजनाएं कैसे कार्यान्वित होंगी,ऐसा कहना बिल्कुल सही है पर इस सवाल के साथ जुड़ा हुआ एक और सवाल खड़ा होता है की अगर वो वैध था तो फ़िर उसे थाना क्यों जाना पड़ा.?

पर हम इसे कैसे मान लें:- लोग चर्चा तो करते हैं की हर अवैध काम सांठ गांठ से होता है,ऐसा अक्सर प्रमाणित भी होता है,लेकिन मुझे इसे सीधे रूप में स्वीकारने में थोड़ा अजीब लगता है,सोचता हूं की क्या लोग जो कहते हैं वैसा सच में होता है,क्या गढ़वा में बालू का जो उठाव होता है वो सच में सांठ गांठ से होता है,जिन पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मियों को मैं हर रोज़ शहर और गांव को महफूज़ रखने में जद्दोजहद करते और मामले के अनुसंधान में अहले सुबह से देर रात तक जूझते देखता हूं,उसी बीच वरीय अधिकारियों के साथ न्यायालय भी आते जाते देखता हूं,अब भला इतनी व्यस्तता के बाद वो कैसे ऐसा अवैध काम करते होंगें,यह कतई विश्वास करने वाली बात नहीं है,लेकिन फ़िर सोचता हूं की आवाम की बातों को भी एक सिरे से गलत कैसे कह दूं,क्योंकि आवाम की नज़रों को जो दिखता है उनका ज़ुबान वही बोलता है,क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों से उनकी कोई दुश्मनी थोड़े है,साथ ही लेखनी के अंतिम में एक बार फिर से ध्यान उस बालू लदे ट्रैक्टर पर जा रहा है जो थाना से बाहर निकल रहा था।