इन सभी परिवारों को आवास आदि मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित होंगी
दिवंगत आशुतोष रंजन
प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज, गढ़वा
गढ़वा : समाचारों में गेरुआसोती के आदिम जनजाति परिवारों के बारे में छप रही खबरों पर संज्ञान लेकर गुरुवार को सदर एसडीएम संजय कुमार मेराल प्रखंड के गेरुआसोती गांव के बाहर जंगली इलाके में रह रहे परहिया जनजाति के इन परिवारों के बीच पहुंचे और उनसे न्यूनतम आवश्यकताओं संबंधी जानकारियां लीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त सभी लोग मेराल प्रखंड के बहेरवा गांव के निवासी हैं। बहेरवा में इन सभी की रैयती जमीन है और लंबे समय से निवास कर रहे थे, किंतु पिछले कुछ वर्षों से लगातार हाथियों के द्वारा हमले किए जाने के बाद डरकर ये लोग गेरुआसोती के बाहरी इलाके में जंगल झाड़ी क्षेत्र में झोपड़ियां डालकर बस गए। यहां न केवल उनकी रहन-सहन की स्थिति दयनीय है बल्कि सुरक्षा एवं बच्चों की शिक्षा को लेकर भी ये परिवार चिंतित हैं। एसडीएम संजय कुमार ने मौके पर ही मेराल प्रखंड के बीडीओ सह सीओ यशवंत नायक को बुलाकर इन परिवारों के न्यूनतम रहन-सहन की व्यवस्था सुनिश्चित करवाने का निर्देश दिया। अंचल अधिकारी ने उन्हें बताया कि इन सभी परिवारों का पीएम जन-मन योजना के तहत आवास उनके पुश्तैनी गांव बहेरवा में स्वीकृत हो चुका है। प्रथम किस्त की राशि भी भेजी जा चुकी है। इस पर राजकुमारी परहिया, चिंता देवी परहिया व गीता देवी परहिया ने भी स्वीकार किया कि उन्हें आवास मिल चुका है किंतु वहां रोड ना होने के चलते बरसात में ईंट, बालू आदि समान नहीं जा पा रहा है इसलिए अभी घर बनाने की स्थिति में नहीं है। इस पर अंचल अधिकारी को निर्देश दिया गया कि इन परिवारों के घर बनवाने में परिवहन आदि आवश्यक मदद करें। एसडीएम ने इन परिवारों को स्पष्ट किया कि एक माह के अंदर उनके मूल पुश्तैनी गांव में ही उनके लिए घर निर्माण का काम शुरू हो जाएगा, रही बात हाथी द्वारा हमले किए जाने की तो इस संबंध में वन विभाग के संबंधित पदाधिकारियों को यहां के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर आवश्यक सुरक्षात्मक कार्रवाई को कहा जाएगा।
गेरुआसोती में अस्थाई रूप से रह रहे इन परिवारों के बच्चे यदि पढ़ने के लिए विद्यालय जाना चाहें तो उनको गेरुआसोती के ही विद्यालय में टैग करवाने का प्रयास किया जाएगा। संजय कुमार ने बताया कि बहेरवा गांव की आबादी 2011 जनगणना के अनुसार 47 थी, जो कि वर्तमान में लगभग 70 बताई जा रही है। ज्ञात हुआ कि उक्त गांव के ज्यादातर परिवार हाथियों के भय से गांव छोड़कर गेरुआसोती इलाके में आ बसे हैं।

