5 नदियों के संगम पर बसे विलक्षण गांव सुंडीपुर का अस्तित्व संकट में

5 नदियों के संगम पर बसे विलक्षण गांव सुंडीपुर का अस्तित्व संकट में

इसे निगलती जा रहीं दो तरफ से दो नदियां

पहले आम चुनाव से ही लोगों को दिखाया जाता रहा है तटबंध का सब्जबाग

पहले ही सत्र में विधायक नरेश सिंह ने भी की सोन कोयल में तटबंध की मांग



दिवंगत आशुतोष रंजन

प्रियरंजन सिन्हा


गढ़वा : जिलांतर्गत पांच नदियों के संगम पर बसे कांडी प्रखंड के विलक्षण गांव सुंडीपुर का वजूद दांव पर लगा है। इस गांव के दो तरफ से दो नदियां इसे निगलने के लिए आतुर हैं। इस गांव की पूरब तरफ से कोयल एवं उत्तर तरफ से सोन नदी बहती है। विडंबना यह है कि सोन नदी में बाढ़ आने पर सुंडीपुर की धरती का कटाव होता है। लेकिन कोयल तो बिना बाढ़ आए ही सालों भर सुंडीपुर सहित गाड़ा, कसनप आदि गांवों को निगलती रहती है। सुंडीपुर सहित कई गांवों की जमीन में धरातल से कुछ नीचे बालू की एक परत ऐसी है कि वहां तक पानी पहुंचते ही कटाव होने लगता है। नतीजतन बिना बाढ़ आए ही बड़े पैमाने पर बेहद उपजाऊ जमीन कोयल में समा जाती है। मालूम हो कि इस इलाके में पंजाब, हरियाणा, भोजपुर, रोहतास एवं मगह से भी काफी उपजाऊ जमीन पाई जाती है। लेकिन सदैव इस जमीन को नदियों में समाते देखना यहां के किसानों की नियति बन चुकी है। हालात इतने भयावह हैं कि जमीन कटती रही लोग पीछे हटते रहे। आज जहां सुंडीपुर गांव अवस्थित है वह कभी आधा किलोमीटर पूरब बसा हुआ था। आज वहां कोयल की मुख्य धारा बहती है। नवनिर्मित कोयल पुल के पाया संख्या 29 के निकट कभी यह गांव बसता था। यहीं पर अक्षय वर पांडेय सहित पूरे गांव के लोगों का मकान था। अब तो गांव सहित सैकड़ो एकड़ जमीन नदी निगल चुकी है। लाचार लोगों ने इस विलीन होते जा रहे गांव से पलायन करना शुरू कर दिया है। अब तक दर्जनों लोगों ने पड़ोस के गांव गाड़ा खुर्द में ऊंची जमीन खरीद कर वहां घर बना लिया है। कई लोग तो दूसरे जगह भी जा रहे हैं। कोयल तटीय गांव में भंडरिया से सोहगाड़ा, राणाडीह, मोखापी, कोरगाईं, जयनगरा, खरौंधा कसनप, गाड़ा खुर्द होते सुंडीपुर तक पक्का तटबंध निर्माण की सख्त जरूरत है।

गैरों तो नहीं सुना पर अपने मुल्क में भी आवाज लगाकर थक चुके हैं लोग :- सुंडीपुर का वजूद बचाने की व्यथा बहुत पुरानी है। यहां के किसानों ने अंग्रेजी राज में भी तटबंध निर्माण के लिए साहेब बहादुर की चिरौरी की थी। उन्होंने नहीं सुननी थी नहीं सुनी। लेकिन आजाद भारत के अपने राज में भी पक्का तटबंध निर्माण कराकर उन्हें बचा लेने की गुहार लगा लगाकर थक चुके हैं लोग। यहां गैर विदेशियों की कौन कहे अपने देसी नेता ने भी उनकी फरियाद नहीं सुनी। नतीजा सदियों से वे नदी में बदस्तूर डूब उतरा रहे हैं। क्योंकि उन्हें उनके हाल पर जीने मरने के लिए छोड़ दिया गया है। गाड़ा खुर्द पंचायत की मुखिया आरती सिंह ने भी कई बार तटबंध निर्माण की मांग की है।

इच्छा मृत्यु तक मांग चुके हैं यहां के लोग? :- कुछ साल पहले अपनी बेहद भयावह स्थिति से आजीज आकर सैकड़ो लोगों ने एक साथ जुट कर सरकार से इच्छा मृत्यु तक की गुहार लगाई थी। इनमें सत्येंद्र नाथ तिवारी, नवल किशोर तिवारी, विभूति नारायण दुबे, कमलेश मेहता सहित काफी संख्या में लोगों ने कहा कि नदी उन्हें जीने नहीं दे रही तो सरकार कम से मरने तो दे। जब उनके जीने का संसाधन विकसित नहीं किया जा सकता तो मरने की इजाजत ही दे दी जाए। कहा कि इस व्यवस्था से अब कोई उम्मीद शेष नहीं बची। इच्छा मृत्यु की गुहार लगाने वाले में सुंडीपुर, बनकट, कसनप, गाड़ा खुर्द आदि गांव के लोग शामिल थे। लोगों ने कहा कि ना तो उन्हें नदी में विलीन होने से बचाने की जुगत लगाई जा रही और ना ही सामूहिक इच्छा मृत्यु का फरमान ही सुनाया जा रहा है। पहले आम चुनाव से ही वोटर के दिमाग में तटबंध की तस्वीर पैबस्त करते रहे हैं नेता। पिछले 73 वर्षों से चुनावी वादों में यह तटबंध का निर्माण होता रहा है। लेकिन यह तटबंध वादों से उतरकर नेता के इरादों में कभी शामिल नहीं हो सका। वर्ष 1952 के प्रथम आम चुनाव से ही चुनाव दर चुनाव तटबंध निर्माण का सब्ज बाग दिखाया जाता रहा है। एक बार हद तो तब हो गई जब वर्ष 2003 की बाढ़ में चुनाव जीते एक तत्कालीन नेता ने तटबंध निर्माण का फंड जिला तक पहुंच जाने की बात कह डाली थी। लेकिन वह फंड ना तो कहीं से चला था और नहीं आज तक पहुंच सका।

विधायक ने भी उठाया सवाल :- मामले की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय विधायक नरेश प्रसाद सिंह ने विधानसभा में सोन एवं कोयल नदी में तटबंध निर्माण की पुरजोर मांग की है। उन्होंने भी सुंडीपुर सहित अन्य गावों के नदियों में विलीन होते जाने का हवाला देकर शीघ्र तटबंध निर्माण पर जोर दिया है।

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Ashutosh Ranjan

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