अमेरिकन प्रजाति का पौधा तैयार कर रहीं पलामू की नीलम दीदी!

अमेरिकन प्रजाति का पौधा तैयार कर रहीं पलामू की नीलम दीदी!

एक प्रगतिशील किसान की सक्सेस स्टोरी



दिवंगत आशुतोष रंजन

प्रियरंजन सिन्हा


मौसम और माहौल कैसा भी हो, अच्छी देखभाल से अच्छी किस्म की उपज होती है। इसी को नर्सरी कहा जाता है। इसी नर्सरी के कमाल से आज झारखंड की धरती पर अमेरिकन प्रजाति का पौधा उगाया जा रहा है। ये कारनामा करके दिखाया है पलामू की रहने वाली नीलम दीदी ने।

अमेरिकन प्रजाति और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला है महोगनी का पौधा: इसे पलामू और लातेहार के सीमावर्ती इलाके में तैयार किया जा रहा है। महोगनी एक इमारती पेड़ है जो अपनी लकड़ी के लिए चर्चित है। इस पौधे को इस धरती पर उगाने का जिम्मा पलामू की नीलम देवी ने लिया और उसे अच्छी देखभाल के साथ इस संकल्प को पूरा भी किया।


पलामू में उगाए जा रहे महोगनी के पौधे: दरअसल, झारखंड का इलाका शीशम, सागवान, गम्हार, सखुआ, साल जैसे इमारती पेड के लिए चर्चित है। महोगनी को इस इलाके में लगाना एक बड़ी चुनौती है। लातेहार के बरवाडीह के केचकी की रहने वाली नीलम देवी ने 2021 में दीदी नर्सरी योजना की शुरुआत की थी। दीदी नर्सरी के माध्यम से नीलम देवी शुरुआत में शीशम, सागवान जैसे इमारती पेड़ों के पौधों को तैयार करती थीं। मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में नीलम देवी इमारती पौधे देती थीं। इसी दौरान उन्हें महोगनी के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद नीलम देवी ने महोगनी के पौधों को तैयार करना शुरू किया।

झारखंड के सिर्फ केचकी में तैयार हो रहा है महोगानी का पौधा: पूरे झारखंड में सिर्फ केचकी में नीलम देवी महोगनी के पौधों को तैयार कर रही हैं। नीलम देवी और उनके पति प्रमोद सिंह मिलकर नर्सरी का संचालन करते हैं। प्रत्येक वर्ष 15 से 20 हजार पौधों को दोनों मिलकर तैयार करते हैं। इस बार शिव शिष्य परिवार की तरफ से नीलम देवी को एक लाख से भी अधिक पौधों को तैयार करने का ऑफर आया है। पौधों को तैयार करने के लिए रांची और दिल्ली से वे बीज मंगवाते हैं। बीज को वैज्ञानिक तरीके से रखा जाता है और पौधों को तैयार किया जाता है।

‘महोगनी के पौधों को तैयार करना एक बड़ी चुनौती रही है। कोविड-19 के बाद उन्होंने नर्सरी की शुरूआत की। झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के माध्यम से उन्हें ऋण मिला था जिससे दीदी नर्सरी शुरू की। बाद में उन्होंने महोगनी के पौधों को तैयार करना शुरू किया। बाजार में महोगनी के साथ-साथ फलदार पौधों की मांग बढ़ी है। आज नर्सरी के माध्यम से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। पर्यावरण को बचाना भी एक बड़ी बात है। पर्यावरण को ध्यान में रखकर पौधों को तैयार कर रही है’. -नीलम देवी, दीदी नर्सरी, केचकी

‘महोगनी के पौधे को बड़े ही सावधानी से तैयार किया जाता है। वह इसके लिए वैज्ञानिक विधि को अपनाते हैं। महोगनी से कई प्रकार की सामग्री का निर्माण होता है। महोगनी को लेकर कई योजनाएं तैयार की गई हैं। बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है’. -प्रमोद सिंह, पति, नीलम देवी।

कितनी मजबूत होती है महोगनी की लकड़ी: महोगनी की लकड़ी काफी मजबूत मानी जाती है। इसकी लकड़ी का इस्तेमाल मजबूत और भारी-भरकम चीजें बनाने में किया जाता है। इनमें से हथियार के बट के साथ-साथ पानी के जहाज में इसकी लकड़ी का प्रयोग होता है। महोगनी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाता है और इसके कई प्रजातियां भी हैं। यह अमेजन के जंगलों के अलावा भारत के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में भी पाया जाता है। भारत में पाया जाने वाला महोगानी दक्षिण अमेरिका की प्रजाति का है।

महोगनी की खासियत: महोगनी को लेकर प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि दक्षिण अमेरिकी राज्यों से इस पेड़ को लगाने की शुरुआत हुई थी। जिसके बाद बाकी देशों में इसका विस्तार हुआ। अब भारत में भी इसे तैयार किया जा रहा है। महोगनी का टिंबर वैल्यू काफी अच्छा है। सागवान और अन्य प्रकार की इमारती लकड़ियों की छांव से फसलों को नुकसान होता है। लेकिन महोगनी से फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इस कारण भी इसकी बाजार में काफी मांग है।

नीलम दीदी ने अपनी सेवा और अच्छी देखभाल से महोगनी जैसे पौधे को लगाया। इसके साथ ही वैज्ञानिक विधि से उसका पौधा तैयार करके अन्य किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है। उन्होंने लोगों को ये बताने का प्रयास किया है कि नर्सरी के माध्यम से सिर्फ पौधा लगाना ही नहीं बल्कि उसकी अच्छी देखभाल से वो विषम परिस्थितियों में भी एक अच्छी पैदावार दे सकती है।

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Ashutosh Ranjan

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