दिवंगत आशुतोष रंजन
प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज, गढ़वा
बढ़निया गांव की रहने वाली मैरी सुरीन पत्थर बांध बनाकर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहीं हैं। उन्हें इसके लिए सम्मानित किया जा चुका है। झारखंड के लातेहार जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली मैरी सुरीन पर्यावरण बचाने के लिए एक मुहिम चला रही हैं। उनकी इस मुहिम के कारण कई बार जंगलों को आग से बचाया गया। साथ ही वन्य जीवों की प्यास भी बुझाई गई। यह मुहिम ग्रामीणों को एकजुट कर चलाया तो जा रहा है। लेकिन इसमें मुख्य भूमिका मैरी सुरीन की एक जुगाड़ टेक्नोलॉजी का है।
लातेहार जिले के बरवाडीह में एक छोटा सा गांव है – बढ़निया। यह इलाका बेतला नेशनल फॉरेस्ट के पलामू टाइगर रिजर्व एरिया के अंतर्गत आता है। यह इलाका घने जंगलों वाला तो है ही। साथ ही पहाड़ों से भी घिरा हुआ है। इलाके में बाघ, तेंदुआ, हाथी, हिरण, बंदर समेत कई वन्य जीव हैं। इसी बढ़निया गांव में रहती हैं मैरी सुरीन।
मैरी सुरीन पर्यावरण बचाने की मुहिम चला रही हैं। वह कभी जंगलों को आग से बचाने की कोशिश करती हैं तो कभी पानी बचाने के लिए ग्रामीणों को एकजुट करती हैं। उनके पास एक जुगाड़ टेक्नोलॉजी है जिसे अपनाकर वह पर्यावरण बचा रही हैं। यह जुगाड़ टेक्नोलॉजी कुछ और नहीं बल्कि पत्थर से बना बांध है। जिसे पत्थर बांध कहा जाता है। मैरी सुरीन ने ग्रामीणों को एकजुट कर पत्थर बांध बनाया है। इस पत्थर बांध से पानी का संरक्षण हो रहा है और जंगल में मिट्टी और बालू का कटाव रुक रहा है।
दरअसल, मैरी सुरीन आठवीं तक पढ़ी हैं। अपने घरेलू जीवन के साथ-साथ मैरी सुरीन ने पर्यावरण बचाने की मुहिम शुरू की है। फिर उन्होंने पूरे इलाके को इस मुहिम से जोड़ा। 2024 में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी मैरी सुरीन को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया है। मैरी सुरीन ने जंगल को आग से बचाने की मुहिम भी चलाई थी।
पानी बचाने के लिए 2024 से शुरू हुआ पत्थर बांध बनाना: मैरी सुरीन जिस इलाके में रहती हैं, वह घने जंगल और पहाड़ों से घिरा हुआ है। इलाके में बाघ, तेंदुआ, हाथी, हिरण, बंदर समेत कई जंगली जानवर हैं। गर्मी में जंगली जानवरों के साथ-साथ गांव के मवेशियों को भी जल संकट का सामना करना पड़ता है। इस संकट को देखते हुए मैरी सुरीन ने अपने गांव के ग्रामीणों के साथ बैठक कर एक योजना तैयार की। इस योजना के तहत जंगल में मौजूद नालों पर पत्थर बांध बनाने का निर्णय लिया गया।
2024 की शुरुआत में बढ़निया गांव में मौजूद एक नाले में सात पत्थर बांध बनाए गए। पत्थर बांध बनाने के लिए नाले के आसपास मौजूद पत्थर और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। इस काम के लिए ग्रामीण बैठक करते हैं और तय समय पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाता है। चार से पांच घंटे में पत्थर बांध बनकर तैयार हो जाता है। मैरी सुरीन के नेतृत्व में अब तक 35 से अधिक पत्थर बांध बनाए जा चुके हैं।


मैरी सुरीन का बयान:- “पीटीआर अधिकारी से बातचीत और मार्गदर्शन में पत्थर बांध बनाने का काम शुरू किया गया। पत्थर बांध बनाने में मिट्टी का भी इस्तेमाल होता है। सबसे बड़ा लक्ष्य पत्थर बांध के जरिए मिट्टी और बालू के कटाव को रोकना है। पत्थर बांध में पानी जमा किया जाता है, जिससे वन्य जीवों और मवेशियों की प्यास बुझती है। इस पानी का इस्तेमाल कई इलाकों में सिंचाई के लिए भी किया जाता है। जंगल को आग से बचाने के लिए भी प्रयास किए गए हैं। पत्थर बांध के कई फायदे हैं.” – मैरी सुरीन, ग्रामीण, बढ़निया।
इलियास टोपनो का बयान:- “बांध बनाने के लिए ग्रामीणों से सलाह ली गई। सभी एकजुट हुए। बांध बनने से पानी की बचत हो रही है और इसके कई फायदे भी हैं। मेरी पत्नी पर्यावरण को बचाने के लिए कदम उठा रही हैं। पत्थर बांध जंगल के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है.” – इलियास टोपनो, मैरी सुरीन के पति।
कैसा है इलाका जहां पत्थर बांध किया गया है तैयार: जिस इलाके में पत्थर बांध का निर्माण किया गया है, वह इलाका बेहद घने जंगल और पहाड़ से घिरा हुआ है। बरसात के दिनों में इलाके का पानी नालों के जरिए 22 किलोमीटर दूर मंडल डैम के पास कोयल नदी में चला जाता है। बारिश के पानी से ग्रामीणों को कोई फायदा नहीं होता। बल्कि खेतों की मिट्टी और इलाके की रेत पानी के तेज बहाव में बह जाती है। पत्थर बांध बनने से पानी धीमी गति से नदी की ओर बहता है और बारिश का पानी उस जगह पर रुकता है जहां पत्थर बांध बना है।
इस पूरे मामले पर पीटीआर के उपनिदेशक प्रजेशकांत जेना कहते हैं कि यह एक तरह से पर्यावरण को बचाने की पहल है और इको डेवलपमेंट कमेटी इसी के लिए काम कर रही है। पत्थरों को जमा करके एक बांध बनाया गया है ताकि पानी को संरक्षित किया जा सके। पीटीआर के उपनिदेशक प्रजेशकांत जेना का बयान
2009 में चर्चा में आया था मैरी सुरीन का गांव बढ़नियां: दरअसल, जिस इलाके में जुगाड़ टेक्नोलॉजी से पत्थर बांध बनाया गया है, वह बढ़नियां इलाका 2009 में अचानक चर्चा में आ गया था। चुनाव के दौरान हुए विस्फोट में सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद छह ग्रामीणों को मार गिराया गया था। इस घटना के विरोध में माओवादियों ने एक ट्रेन को भी हाईजैक कर लिया था। पूरा इलाका घोर नक्सल प्रभावित माना जाता रहा है और यह इलाका माओवादियों के बूढ़ा पहाड़ कॉरिडोर में आता है।