तभी तो एक ही मैदान में 19 टीमों ने कुछ घंटों में ही खेल लिया 70 – 70 मिनटों का मैच
हाल सुब्रतो कप फुटबॉल टुर्नामेंट का
दिवंगत आशुतोष रंजन
प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज़, गढ़वा
खेल विभाग अब खेल नहीं कराता और शिक्षा विभाग अब पढ़ाई नहीं कराती। इस वाक्य को पढ़कर आप चौंकिएगा नहीं। क्योंकि वास्तविकता के धरातल की यही खुरदरी सच्चाई है कि जिस विभाग को जिसकी विशेषज्ञता प्राप्त है उसे उस स्पेशलाइजेशन से अलग कर दिया गया है। आपने दैनिक भास्कर के शनिवार के ही अंक में पढ़ा है कि शिक्षा विभाग ने सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट जैसी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता में एक ही दिन के कुछ घंटों में 21 टीमों को मैच खेला दिया गया। यह मामला गढ़वा जिला के ही कांडी प्रखंड का है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे संभव हुआ। यह इसलिए संभव हुआ कि खेल के नाम पर अब खिलवाड़ किया जा रहा है। इसी खिलवाड़ के तहत 21 टीमों ने मात्र कुछ घंटे में एक-एक घंटा का खेल एवं प्रत्येक में 10 मिनट का मध्यांतर के साथ नॉकआउट से लेकर फाइनल मुकाबले तक का खेल पूरा हो गया। तारीफ की बात तो यह है कि इस दौरान सभी मैच प्लस टू उच्च विद्यालय कांडी के एक ही मैदान मैं खेले गए हैं। मतलब कि 5 – 5, 10 – 10 मिनट में सबको निपटा दिया गया। यह कैसे एवं क्यों कर संभव हुआ इसकी पड़ताल में जब दैनिक भास्कर गया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। उल्लेखनीय है कि सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट जैसी प्रतिष्ठित खेल प्रतियोगिता का आयोजन खेल विभाग नहीं शिक्षा विभाग करता है। खबर की शुरुआत में मैंने यही कहा है कि जिसको जिस चीज की विशेषज्ञता हासिल है उसे उससे अलग कर दिया गया है। और तारीफ की बात यह है कि यह केवल यहीं का मामला नहीं है। बल्कि टॉप टू बॉटम यही स्थिति है। विभागीय सूत्रों के अनुसार सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट के आयोजन से 2 साल पहले ही खेल विभाग को अलग कर दिया गया है। अब इसका आयोजन शिक्षा विभाग खुद करता है। जबकि प्रारंभ से 23 सालों तक इस प्रतियोगिता का खेल विभाग बखूबी आयोजन करता आया था। लेकिन मामला यह है कि खेल अब केवल खेल नहीं रहा। पहले की अपेक्षा खेल में बहुत ज्यादा ग्लैमर आ गया है। तो फिर जब शिक्षा विभाग के ही बच्चे इस प्रतियोगिता में खेलते हैं तो इस चकाचौंध को दूसरे के हिस्से में क्यों छोड़ दिया जाए। इसलिए शिक्षा विभाग ने खेल विभाग से इसे खींचकर अपने पाले में ले लाया और खेल क्या हो रहा है वह 21 टीमों के कुछ ही घंटे में खेला देने से स्वत: स्पष्ट हो जाता है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक विश्वस्त सूत्र ने दैनिक भास्कर को बताया कि कम से कम 21 टीमों के खेल में फुटबॉल शामिल तो था। यहां तो खेल के नाम पर ऐसा भी खिलवाड़ हुआ है कि प्रतियोगिता की तिथि को आयोजक के पास फुटबॉल था ही नहीं। इसकी जगह टीमों के बीच टॉस करा कर विजेता के नाम की घोषणा कर दी गई। खेल के साथ ऐसा खिलवाड़ किया जा रहा है। यह खिलवाड़ ही नहीं धोनी, दीपिका, सलीमा टेटे, सौरभ तिवारी आदि के राज्य में खेलों के भविष्य को खेल से ही अलग करने की गंभीर साजिश की जा रही है। मालूम हो कि सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट प्रखंड स्तर से शुरू होता है। इसके बाद जिला, प्रमंडल एवं राज्य स्तर से होते इसके चयनित खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुकाबला भी खेलते हैं। इसमें अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों की भी भागीदारी होती है। जबकि नेहरू कप भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता है। वहीं एसजीएफआई यानी स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के मुकाबले भी प्रखंड स्तर से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के होते हैं। इसमें वर्ल्ड स्कूल गेम्स तक खेला जाता है। इस प्रकार यह मामला यहीं तक सीमित नहीं है। बल्कि सुब्रतो कप के साथ-साथ नेहरू कप व एसजीएफआई कप आदि का आयोजन भी खेल विभाग से वापस लेकर शिक्षा विभाग के द्वारा कराया जाने लगा है। ऐसी स्थिति में यहां लाख टके का सवाल उठता है कि आखिर खेल विभाग का गठन किस लिए किया गया है। जब खेल विभाग को खेल कराना ही नहीं है और खेल के नाम पर खिलवाड़ ही किया जाना है तो खेल विभाग के अस्तित्व का कोई मतलब नहीं रह जाता।
क्या कहते हैं खेल पदाधिकारी :- इस संबंध में गढ़वा जिला खेल पदाधिकारी दिलीप कुमार ने कहा कि जब उन्होंने खेल का आयोजन ही नहीं किया है। वे इस प्रतियोगिता से अलग हैं तो इस विषय में कोई प्रतिक्रिया देना उचित नहीं होगा।


