साथ ही चरित्र भी बेदाग़ है
आशुतोष रंजन
गढ़वा
भले गढ़वा की राजनीति में अनवरत चलायमान रहने वाले आरोप प्रत्यारोप के ज़रिए स्थानीय विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी को यहां के विपक्ष द्वारा सीधे रूप में गुंडा कह दिया गया,लेकिन जिस सेवा कार्य को दिल में केवल आत्मसात करते हुए नहीं बल्कि उसे शुरुआत वक्त में विधायक बनने से अब तलक सफलीभूत करने वाला व्यक्ति कभी गुंडा नहीं हो सकता,इसे उनके व्यवहार से भी बख़ूबी समझा जा सकता है।
गुंडा नहीं हो सकते हैं सत्येंद्र तिवारी : – हम याद तो दिलाना नहीं चाहते थे,लेकिन चलिए एक बार फ़िर से याद को ताज़ा कर देते हैं,पहले हम आपको लिए चलते हैं आज से बीस साल से भी कुछ पहले जब सत्येंद्र तिवारी द्वारा समाज में पिछले पायदान पर रह कर किसी प्रकार मुफलिसी में जीवन बसर करने वालों के मदद करने के ज़रिए समाजसेवा की शुरुआत की गई,उन्हें निवाला उपलब्ध कराने से ले कर उनके तन को वस्त्र से ढंकने के साथ साथ उनकी बेटियों की शादी तक सहयोग की जाने लगी,और यह सब किया जा रहा था निस्वार्थ और उस संकल्प के तहत जो उन्होंने उस वक्त लिया था जब वो पढ़ाई कर रहे थे,उस वक्त उन्होंने लोगों की दुर्दिनता बड़े क़रीब से देखा था और उसी वक्त यह सोचते हुए संकल्प लिया था कि मैं पढ़ाई पूरी कर के किसी नौकरी में ना जा कर बल्कि समाज की सेवा करूंगा और गरीब,असहाय और पीड़ितों की सेवा करने के साथ साथ उनकी दुर्दिनता दूर करूंगा,उनके द्वारा जैसा सोचा और संकल्प लिया गया था उसे वो पढ़ाई पूरी करने के बाद पूरा करने में भी जुट गए,सिलसिला अनवरत चलता रहा,इसी बीच वो संवेदक बने और छोटे से ले कर बड़े कार्य कार्यान्वित करने लगे,और उससे जो भी आमदनी होने लगी उसका ज़्यादा हिस्सा वो समाज की सेवा में लगाने लगे,जिसका आलम हुआ कि जो लोग मदद की आस जोहा करते थे उन तक कोई पहुंचता नहीं था,उन तक जैसे जैसे सत्येंद्र तिवारी की पहुंच होती रही और उन्हें मदद मिलती रही तो लोगों का उनसे और उनका लोगों से दिली जुड़ाव होता रहा,इसी बीच साल आता है 2008 जब लोगों ने ख़ुद से यह सोचते हुए एक बड़ा निर्णय लिया कि जो सहयोग और मदद एक जनप्रतिनिधि को करना चाहिए,हम तक पहुंच उनकी होनी चाहिए वो काम एक सामान्य व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है,अगर हाथ में बिना कोई अधिकार और बड़ा सामर्थ्य के बिना जिस व्यक्ति द्वारा समाज की इतनी सेवा दिली शिद्दत से की जा रही है अगर इनके हाथ में अधिकार दे दिया जाए तो हमारे दिन निश्चित रूप से बहुर जायेंगे,अपनी इस सोच से लोगों ने सत्येंद्र तिवारी को अवगत कराया,पहले तो उनके द्वारा ऐसा सुन हंसा गया और कहा गया कि मेरी सेवा भाव में आपको कहां कमी नज़र आई कि आपको ऐसा सोचना पड़ रहा है तो लोगों ने कहा कि कहीं से भी कोई कमी नहीं है लेकिन बड़े स्तर पर बड़ा काम करने के लिए हाथ में बड़े अधिकार का होना निहायत ज़रूरी है,उधर सत्येंद्र तिवारी द्वारा भी सोचा गया कि यह बात तो बिल्कुल सही है कि बदहाल क्षेत्र के हालात को बदलने और लोगों की परेशानी रूपी दिली कसक को दूर करने के लिए हाथ में बड़े अधिकार का होना बेहद ज़रूरी है और फ़िर वो राजनीति में आए,उनकी सामाजिक लोकप्रियता और सबसे सहृदय व्यवहार का आलम देखिए कि पहली बार में ही लोगों ने उन्हें गढ़वा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुन लिया,इधर लोगों ने उन्हें अपना विधायक बनाया तो उधर वो अपने संकल्प को पूरा करने में जुट गए,उनकी कार्यदक्षता और कर्त्तव्यपरायणता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि लोगों ने उन्हें लगातार दूसरी बार यानि 2009 के बाद 2014 में भी अपना विधायक चुन लिया,उनकी सामाजिकता,सेवा भाव,संकल्प के प्रति दृढ़संकल्पित होना,काम के निमित वफादारी के साथ साथ सहृदय व्यवहार वाला व्यक्ति जिससे आप सभी इतने लंबे सालों से हर रोज़ दो चार हो रहे हैं,क्या कभी आपको उनके व्यवहार में कठोरता नज़र आई साथ ही उनकी एक और खासियत तो हम बताना ही भूल गए कि जो व्यक्ति कठोर होता है,जिसमें सकारात्मक से ज़्यादा नकारात्मक भाव समाहित होता है वो किसी से बात करने में उसे रउआ नहीं कहता है,और आप सभी तो इतने सालों से मुलाक़ात होने पर उनके मुंह से यही सुनते आ रहे हैं कि रउआ बताऊं का हालचाल बा तो फ़िर आप ही फ़ैसला कीजिए कि जो व्यक्ति आज तक किसी को तुम नहीं कहा,भला वो गुंडा कैसे हो सकता है..?