एक पुलिस पदाधिकारी ऐसे भी…

एक पुलिस पदाधिकारी ऐसे भी…

जिला में अमन चैन लाना ही है प्राथमिकता : दीपक


आशुतोष रंजन
गढ़वा

वो चाहे किसी प्रखंड के सिविल प्रशासन के अधिकारी हों,थाना के थानेदार या जिले के दोनों विभागों के वरीय पदाधिकारी सभी अमूमन अपने कार्यालय में ही आम जनों से मिलते एवं उनकी परेशानी को सुनते और उसके निदान का प्रयास करते हैं लेकिन शायद ही कभी आपने देखा होगा कि कोई पदाधिकारी यूं ही राह चलते लोगों से मिलता और उनकी बातों को सुनता हो,लेकिन आज हम आपको एक ऐसे पदाधिकारी के बारे में बताएंगे जो अपने कार्यालय ही नहीं बल्कि कहीं बाहर क्षेत्र में निकलने के दरम्यान भी लोगों से उनकी समस्या को सुनते और उसका समाधान किया करते हैं,तो आइए आपको बताते हैं आख़िर कौन है वो पदाधिकारी।

एक पुलिस पदाधिकारी ऐसे भी : – अरे देखो न साहेब आ रहे हैं चलो न अपनी परेशानी कहते हैं,इतना सुनते ही दूसरा बोलता है पागल हो साहेब लोग अपने कार्यालय में बात करते हैं,यहां नहीं सुनेंगे,तब तक साहेब की गाड़ी वहां पहुंचती है और उनकी गाड़ी देख सभी लोग एक किनारे खड़े हो जाते हैं लेकिन उन्हें देख उक्त गाड़ी वहां रुक जाती है और साहेब गाड़ी से उतर उनके पास पहुंचते हैं,हम बात यहां किसी और की नहीं बल्कि गढ़वा के कुशल नेतृत्व क्षमता और कार्यदक्षता वाले पुलिस कप्तान यानी एसपी दीपक कुमार पांडेय की कर रहे हैं,वो लोगों के पास पहुंच उनका हाल पूछने लगते हैं,कुछ देर पहले तक उनसे कुछ कहने को आतुर लोग जब अपने क़रीब उन्हें पाते हैं तो अपनी परेशानी बताना शुरू कर देते हैं,लोग कहते हैं कि हम सभी आपकी गाड़ी को आता देख आपसे कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन आप यहां राह चलते हमारी बात नहीं सुनेंगे यही सोच कर खामोश हो गए थे,तो एसपी तपाक से बोलते हैं कि ऐसी बात कैसे सोच लिया आपलोगों ने,आख़िर हम हैं किसके लिए,आपकी बात सुनने,आपकी परेशानी से अवगत होने और उसका समाधान करना ही तो हमारी डयूटी है,वो चाहे कार्यालय में रह कर करें या ऐसे आप तक पहुंच,कुछ लोग भीड़ से निकल कर कुर्सी लाने जाने लगते हैं तो एसपी उनसे कहते हैं कि जैसे आप खड़े हो कर अपनी बात कह रहे हैं तो मैं भी आपके साथ खड़े हो कर ही उसे सुनूंगा,और कुछ देर उसी तरह खड़े हो कर सबकी बातों और समस्या को सुनने और जिसका समाधान त्वरित होना था उसे करने के साथ साथ जटिल परेशानी के बावत अधीनस्थ अधिकारी को निर्देशित भी करते हैं,साथ ही सभी से एक ओर यह कहते हुए कि आपको अब इस जिला में निर्भीक हो कर जीवन बसर करना है तो वहीं दूसरी ओर उनसे इसी तरह पुलिस प्रशासन के साथ सहयोगात्मक व्यवहार बनाए रखने की अपील करते हुए आगे बढ़ जाते हैं,यह तो किसी एक रोज़ की बात हो गई,जबकि आपको बताएं कि ऐसे तो हर रोज़ उनके द्वारा अपने कार्यालय में लोगों से मिलना और लोगों से उनकी परेशानी जानना होता ही है,साथ ही कार्यालय से वो जैसे ही बाहर निकलते हैं तो कार्यालय से बाहर खड़े लोगों से एवं समाहरणालय से बाहर अगर कोई व्यक्ति उनसे ही मिलने के लिए आया था और उसे आने में देर हो गई वो नहीं मिल पाया तो उससे वो वहीं मिलते और उसकी बातों को सुनते हैं,चाहे वो जब भी जिला मुख्यालय से कहीं बाहर क्षेत्र में निकला करते हैं तो ठीक इसी तरह सहृदयता के साथ लोगों से मिलते और उनकी बातों को सुनते हैं,उधर एक पुलिस अधिकारी को इस तरह अपने क़रीब पा कर जहां एक तरफ़ लोग भी काफ़ी आह्लादित हो रहे हैं वहीं समस्या का निदान पा कर उनकी उन्मुक्त कंठ से सराहना करते हुए कह रहे हैं कि अधिकारी हो तो ऐसा।

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