सूत्र से मिली जानकारी,और एक लाइन की ख़बर से कितने पत्रकार स्टार बन गए


आशुतोष रंजन
गढ़वा

अपने पत्रकार साथी अमिताभ ओझा द्वारा अपने फेसबुक वॉल पर जो बात लिखी गई है उसे अपने फेसबुक वॉल पर पोस्ट करते हुए राज्य के वरिष्ठ पत्रकार अजय लाल द्वारा हम सभी पत्रकारों के लिए बहुत ज़रूरी बात लिखी गई है,उनके द्वारा क्या लिखा गया,आइए बताते हैं।

सूत्र के साथ बलात्कार ना करें: मीडिया के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है,खासकर नेताओं के यहां चल रही छापेमारी को लेकर,इसके जिम्मेदार मीडिया भी है,ब्रेकिंग के चक्कर मे जवाबदेही और नैतिकता दोनों लोग भूल गए है,जिसके कारण खबरों की दुनिया का सबसे बड़ा हथियार “सूत्र ” आज मज़ाक बन गया है,छापेमारी और इन्वेस्टीगेटिव खबर मे “सूत्र ” की बड़ी भूमिका होती है,सूत्र कोई तकिया कलाम नहीं है,एक पत्रकार को “अपना सूत्र ” बनाने मे वर्षो लग जाते है,वो भी इन जांच एजेंसियो के बीच,लेकिन अब “सूत्र” को मज़ाक बना दिया गया है,”सूत्र” तो पूरी स्क्रिप्ट की जान होती है,सूत्र द्वारा बताए गए एक लाइन की खबर ने कितने पत्रकारों को रातो रात स्टार बना दिया,लेकिन आज कल डिजिटल और सोशल मीडिया के ज़माने मे “सूत्र” का इस्तेमाल कर लोग अपनी भड़ास अपनी कुंठा निकालने मे लगे हैं,मैं तो यही जानता था और जानता हु की “सूत्र” जानने का अधिकार तो हमारे संपादक तक को नहीं होता है,क्राइम रिपोर्टर रहा हूं 25 वर्ष हो गए है,अखबार से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक “सूत्र” की बड़ी भूमिका रही है,हमारे लिए सूत्र तो उस वृक्ष के सामान है जिसे आप जितना सिंचित करें वह उतना ही फल देगा,चाहे पुलिस महकमा हो या जांच एजेंसी,वहां के सूत्र ही सबसे बड़े आधार होते हैं,सी बी आई,ईडी और इनकम टैक्स जैसे विभाग देखने वालो के लिए तो “सूत्र” एक अज्ञात शक्ति होती है,जिससे उनकी पहचान बनती है,एक बार मेरे एक मित्र ने पूछा आपको इतनी खबर मिलती कहां से है.?,मैंने कहा सूत्र से,उन्होंने कहा कभी मुझे उस सूत्र से मिलाइयेगा जरूर,मैंने भी कहा जरूर लेकिन आज ऐसी कमरे मे बैठकर रिपोर्टिंग करने वाले हों या फिर सोशल मीडिया के लोग उनके लिए आज ये “सूत्र ” बेमानी हो कर रह गए हैं।