अभी भी चेत जाएं बाक़ी निजी अस्पताल


आशुतोष रंजन
गढ़वा

गढ़वा जिले में सालों से बिना किसी रोक के संचालित हो रहे निजी अस्पतालों पर अगर किसी की नज़र गई तो वो हैं जिला उपायुक्त रमेश घोलप,जिनके द्वारा महसूस किया गया की बिना किसी अहर्ता और प्रशिक्षित चिकित्सक के बिना गांव के भोले मरीजों के जान से खिलवाड़ किया जा रहा है,यहां मुझे शायद यह बताने की जरूरत नहीं है की इधर गुजरे सालों में उक्त अस्पतालों द्वारा कितने मरीजों की जान ली गई,मामला सामने आता था पर अवैध धंधों को प्रश्रय देने वाले स्वास्थ्य महकमा और राजनीतिक नुमाइंदों के आपसी सांठ गांठ के कारण उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती थी,पर वो गुज़रे वक्त की बात हो गई,अब मामला सामने आने के बाद सीधे रूप में कार्रवाई हो रही है,कुछ कार्रवाई को एक बानगी के रूप में आपको बता रहा हूं।

ऐसे हुई कार्रवाई: कार्रवाई बताने से पहले आपको एक लाईन में बताऊं की उपायुक्त द्वारा कंक्रीट कार्रवाई शुरू करने से पूर्व गढ़वा जिला मुख्यालय में इतने निजी अस्पताल संचालित हो रहे थे जिसकी गिनती करने में शायद आप भूल जा रहे होंगें,खैर उसमें बहुत कमी आई है,वो कमी कैसे आई वो हम आपको अगले पाराग्राफ में बताएंगे,अब पहली कार्रवाई के बावत आपको बताऊं की लोगों से मिल कर केवल उनकी समस्या सुन आश्वासन देने वाले नहीं बल्कि उस पर त्वरित पहल करने वाले उपायुक्त से एक मरीज़ के परिजन द्वारा मुलाकात करते हुए यह दरख्वास्त की जाती है की मुख्यालय में संचालित गढ़देवी नर्सिंग होम द्वारा गलत इलाज़ किया गया जिससे नवजात की मौत हो गई,अब आपको बताऊं की उनकी बात सुन कर पहल करने की आधिकारिक भाषा बोलने के बजाए उपायुक्त अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ उक्त अस्पताल में पहुंचते हैं और जांच शुरू करते हैं,जांच में जो बात सामने आई उसे जान कर आप दंग रह जायेंगें,उक्त अस्पताल जो एक तरफ़ जहां पूरी तरह अवैध था तो वहीं दूसरी ओर उसका संचालक एक इंजिनियर था जिसके द्वारा मरीजों का इलाज़ ही नहीं बल्कि ऑपरेशन भी किया जा रहा था,यानी की एक इंजिनियर इलाज़ कर रहा था,इससे आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं की उस अस्पताल में इलाज़ कराने जाने वाले मरीजों का क्या हाल होता होगा,जांच में सभी तथ्य सामने आने और प्रमाणित होने के बाद पूरी तरह बिफरे उपायुक्त द्वारा जहां अस्पताल को सील करने का निर्देश दिया गया वहीं संचालक को गिरफ्तार करने का भी आदेश दिया गया,उस रोज़ से आज तलक संचालक जेल में बंद है,उधर आज हुई एक और कार्रवाई के विषयक आपको बताऊं की केवल जिला मुख्यालय में ही नहीं बल्कि सुदूर देहात में भी निजी अस्पताल का बेखौफ संचालन होता है,आपको बताऊं की उपायुक्त की नज़र केवल मुख्यालय के अस्पतालों पर ही नहीं बल्कि प्रखंड मुख्यालय और गांव में संचालित होने वाले अस्पतालों पर भी है तभी तो कांडी के प्रगति अस्पताल और खरौंधी के कादरी अस्पताल के संचालक और कर्मियों के विरुद्ध 304/34 धारा के तहत मामला दर्ज़ किया गया है,यहां पर एक जानकारी से आपको अवगत करा दूं की अवैध रूप से संचालित हो रहे निजी अस्पतालों के विरुद्ध उपायुक्त द्वारा की जा रही कार्रवाई का परिणाम यह है की जिले के 117 निजी अस्पताल में से 39 अस्पताल संचालकों द्वारा अपना कागज़ात सरेंडर कर दिया गया,अब आप सोचिए की ऊपर के पाराग्राफ में क्या हमने गलत लिखा की इस कार्रवाई से पहले गढ़वा में इतने निजी अस्पताल संचालित हो रहे थे जिसकी गिनती भूल जाना लाज़िमी था,पर अब उपायुक्त द्वारा की जा रही त्वरित कार्रवाई का ही डर है की निजी अस्पताल संचालकों में वो भय व्याप्त है जो बहुत पहले उनके मन में जगाना चाहिए था जिसकी कोशिश नहीं की गई।





चेत जाएं बाक़ी निजी अस्पताल: कार्रवाई के जद में आ जायेंगें वो भी,होगा उनका भी वही हाल,है अभी भी वक्त,चेत जाएं बाक़ी अस्पताल”,जी हां बिना किसी प्रशिक्षित चिकित्सक के बिना अवैध रूप से संचालित हो रहे निजी अस्पतालों में पहुंच जिंदगी की जगह मौत पाने वाले मरीज़ के परिजनों द्वारा जहां एक ओर बड़ी राहत की सांस ली जा रही है तो वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा उपायुक्त के कार्यों की उन्मुक्त कंठ से सराहना की जा रही है,कई पीड़ित परिजनों ने कहा की उपायुक्त हो तो ऐसा हो,उधर यहां बाक़ी बचे निजी अस्पताल संचालकों के लिए एक नसीहत है की उन्हें अगर अपने अस्पताल का संचालन करना है तो वो अपने अस्पताल का जहां एक ओर कागज़ी तौर पर मज़बूत कर लें तो वहीं दूसरी ओर आने वाले मरीजों का इलाज़ प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा ही कराएं,अन्यथा अगली कार्रवाई के लिए तैयार रहें।