गढ़वा जिला बनने के साक्षी रहे लोगों ने सुनाए संस्मरण
जिले के प्रबुद्ध लोगों ने ‘सपनों का गढ़वा’ विषय पर रखे सुझाव
दिवंगत आशुतोष रंजन
प्रियरंजन सिन्हा
सदर अनुमंडल कार्यालय के सभा कक्ष में गढ़वा जिला के स्थापना दिवस के अवसर पर ‘सपनों का गढ़वा’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिले के प्रबुद्ध लोगों ने गढ़वा जिला के बनने के संस्मरण एवं अब तक के परिवर्तन को लेकर अपने विचार रखे। साथ ही उनकी नजर में गढ़वा में अभी क्या-क्या किया जाना बाकी है। इस विषय को लेकर उनके क्या सपने हैं, इस पर भी विचार रखे गए। संगोष्ठी की अध्यक्षता अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार ने की।
संगोष्ठी में डॉ मुरली श्याम गुप्ता ने कहा कि वे ढिबरी युग में पैदा हुए थे। तब लैंपपोस्ट होते थे। पर ब्लॉक, सबडिवीजन और बाद में जिला बनने पर उत्तरोत्तर विकास हुआ। इस दौरान लोगों ने बहुत बदलाव देखा है। लेकिन आज भी गढ़वा जिला को ट्रैफिक जिला न बनाए जाने को लेकर पीड़ा है। समाज सेवी डॉक्टर यासीन अंसारी ने अपने संस्मरण को साझा करते हुए कहा कि जब गढ़वा जिला बना तब वे सत्ताधारी पार्टी के जिला अध्यक्ष हुआ करते थे, जिला बनने से पूर्व गढ़वा में 90% से अधिक खपरैल के मकान होते थे। आज 2% से भी कम कच्चे मकान बचे हैं। गढ़वा तरक्की कर रहा है, यह तरक्की जारी रहे, यही कामना है।
लायन सुशील केसरी ने कहा कि गढ़वा ने काफी विकास किया है। लेकिन जलस्तर के मामले में काफी नुकसान हुआ है। बालू उठाव रोकने तथा वृक्षारोपण की दिशा में सोचने की आवश्यकता है। झारखंड के सबसे अंतिम कोने में स्थित होने के कारण यहां कोई भी परिवर्तन आने में थोड़ा सा विलंब होता है। किंतु इसका एक फायदा भी है कि यह जिला तीन राज्यों से सीमा बनाता है। इससे सांस्कृतिक विकास हुआ है।
शिक्षक अरुण दुबे ने कहा कि सभी संसाधनों में सर्वोच्च मानव संसाधन होता है। जिसके लिए हमें शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि उनकी छात्रा नम्रता कुमारी गढ़वा की धरती से ही भारतीय प्रशासनिक सेवा तक पहुंची हैं। शिक्षा ही वह चीज है जिसके बढ़ाने से जिले में अपराधीकरण पर भी लगाम लग सकती है।
समाजसेवी दयाशंकर गुप्ता ने कहा कि जिला बनने के वे भी साक्षी रहे हैं। गढ़वा जिला बनने के उपरांत कई सपने पूरे हुए। किंतु कुछ सपने अधूरे रह गए। उन सपनों को पूरा करने के लिए शासन प्रशासन के साथ यहां के सभी वर्गों को एकजुटता दिखानी होगी। उन्होंने गोवावल क्षेत्र को ब्लॉक बनाने की मांग रखी। वरिष्ठ पत्रकार नित्यानंद दुबे ने कहा कि जब 1 अप्रैल 1991 को गढ़वा जिला जन्म ले रहा था तब यह घोर उग्रवाद से ग्रस्त था। उन्हें याद है जब 1989 में करकोमा में बड़ा कांड हुआ था। गढ़वा अनुमंडल से जिला बन रहा था। बहुत अरमान थे जिसमें से ज्यादातर अरमान पूरे भी हुए। बिजली की बहुत अच्छी स्थिति हुई। आज हर गांव तक बिजली पहुंच गई है। किंतु सिंचाई के क्षेत्र में जिस अनुपात में विकास होना चाहिए था वैसा नहीं हो सका। पर वे आशान्वित हैं कि नदियों को बचाने की दिशा में शासन प्रशासन और नागरिकों के समर्पित प्रयास से कुछ बेहतर होगा। उन्होंने कहा कि तब से अब तक साक्षरता का प्रतिशत लगभग दो गुना हो गया है।
द्वारिका प्रसाद पांडेय ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह याद है उस समय पूरे क्षेत्र में सिर्फ आठ गाड़ियां चला करती थी। किंतु अब परिवहन की दिशा में गढवा में कोई दिक्कत नहीं है।
प्रमोद सोनी ने कहा कि गढ़वा ने कला और संस्कृति क्षेत्र में भी बहुत विकास किया है। उन्होंने संगोष्ठी के दौरान अपना बनाया हुआ गीत ‘मेरा गढ़वा महान’ सुनाया।
नीरज श्रीधर ने कहा कि गढ़वा जिले में संसाधन बढ़े हैं। किंतु साहित्यिक दिशा में अभी बहुत काम किया जाना बचा हुआ है। उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर कोई साहित्यिक मंच नहीं है। जो सभी साहित्यकारों को लेकर चले।
अधिवक्ता अशोक पटवा ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में अभी उत्तरोत्तर प्रगति की जरूरत है। इसके लिए अभिभावकों को चिंतन मनन करने की जरूरत है।
इम्तियाज अंसारी ने कहा कि गढ़वा में आपसी एकता बनी रही है। इसे आगे बनाये रखना भी सबका दायित्व है। डॉ लालमोहन मिश्रा ने कहा कि पहले रिक्शा भी मुश्किल हुआ करता था। अब फोरलेन बन रहा है। उन्होंने गढ़वा जिला की तरक्की की कामना की। उन्होंने कहा कि गढ़वा ने सदैव धैर्य रखा है। धैर्यपूर्वक की गयी लंबी प्रतीक्षा का परिणाम था कि गढ़वा जिला बना।
बृजेश पांडेय ने कहा कि गढ़वा धार्मिक रूप से बहुत संपन्न है। उन्होंने कहा कि भौगोलिक रूप से दूर होने के चलते कई बार यहां चीजें देर से पहुंचती हैं। बावजूद इसके गढ़वा में बहुत बदलाव हुआ है।
समाजसेवी शौकत खान ने कहा कि गढ़वा समाज सेवियों का गढ़ है। यहां के लोग किसी छोटी-मोटी समस्या के लिए प्रशासन की बजाय समाज के बीच पहले अपनी बात रखते हैं। और यहां के समाजसेवी प्रशासन से भी एक कदम आगे बढ़कर लोगों के दुख दर्द में साथ देते हैं। गढ़वा की तरक्की में यहां के सभी समाज सेवी सदैव साथ हैं। इसके अलावा आत्माराम पांडेय, इम्तियाज अंसारी, पूनम श्री आदि ने भी अपने विचार रखें।