मेरा यह दिली ख़्वाब था…

मेरा यह दिली ख़्वाब था…

अब राजमाता अहिल्या बाई होलकर के नाम से जाना जाएगा चिनिया मोड़ चौक


आशुतोष रंजन
गढ़वा

झारखंड का गढ़वा समाजसेवियों के जिले के रूप में पहचानीत होता है,जहां समाजसेवी समाजहित में आगे बढ़ कर हिस्सा लिया करते हैं,लेकिन आज हम एक ऐसे समाजसेवी की बात करने जा रहे हैं जो समाजसेवा में एक बड़ा नाम है,छोटा कार्यक्रम हो या बड़ा आयोजन,या कोई व्यक्तिगत रूप से किसी परेशानी में हो,जहां एक ओर बिना इनके सहयोग के वो कार्यक्रम ना तो आगाज़ से अंजाम तक पहुंचता है और ना ही किसी के समस्या का निदान होता है,ऐसे तो अगर आप गढ़वा से ताल्लुक रखते हैं तो उनसे आप नावाकिफ नहीं होंगे,लेकिन फिर भी आइए इस ख़बर के ज़रिए आपको बताते हैं की कैसे उनके द्वारा ख़ुद का एक बड़ा ख़्वाब पूरा किया गया है जो गढ़वा के लिए एक पहचान बनेगा।

मेरा यह दिली ख़्वाब था : – कहा जाता है की आज के गुजरते दौर में बिना किसी स्वार्थ के कोई किसी की मदद नहीं किया करता है,लेकिन हम जिनकी बात कर रहे हैं वो स्वार्थ से परे हो कर जहां एक ओर बस सेवाभाव के निमित समाजसेवा किया करते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपने सेवा के अपने सपने को पूरा करते हैं,अब बिना देर किए बताते हैं की बात हम बड़े व्यवसाई राकेश पाल की कर रहे हैं,जिनके द्वारा अपने बचपन में जो देखा गया था वो उनके दिल में घर कर गया,हुआ यह था की एक परिवार बेहद कठिन हालात से जीवन बसर कर रहा था,एक तरफ़ जहां उस परिवार का मुखिया बेहद बीमार था जिसका माकूल इलाज़ नहीं हो पा रहा था तो दूसरी ओर बेटी की शादी में भी दुर्दिन हालात आड़े आ रहा था,उस परिवार के विषम हालात को उस बचपन में देख भावुक हो जाने वाले राकेश पाल द्वारा घर में मां से सारी बातें बताई गईं,उनकी बातों को सुन कर मां आह्लादित हुईं और उस परिवार को मदद किया गया जिससे एक ओर परिवार के मुखिया का इलाज़ हुआ और बेटी की शादी के साथ साथ जीवन बसर करने हेतु पूरा सहयोग किया गया,उसी वक्त से मदद की भावना उनके यानी राकेश पाल के दिल में घर कर गई जो आगे चलकर युवावस्था में और बलवती हुई,जिसे हम आप वर्तमान गुजरते वक्त में नुमाया होते देख रहे हैं,आज गढ़वा का कोई छोटा कार्यक्रम हो या कोई बड़ा आयोजन बिना उनके सहयोग के वो आगाज़ से अंजाम तक नहीं पहुंचता है,साथ ही कोई व्यक्तिगत रूप से किसी परेशानी से परेशान भी होता है तो उसे उनकी ही याद आती है और वो दिल से सहयोग किया करते हैं,उनकी मानें तो बचपन में उस हालात को देखने के बाद उनके द्वारा संकल्प लिया गया था की वो आजीवन आगे बढ़ कर मदद किया करेंगे,और मदद का यह सहृदय भाव उनके लिए एक हसीन सपने जैसा है क्योंकि मदद करने के बाद जहां उन्हें सपना पूरा होने का अहसास दिलाता है वहीं उन्हें सुकून भी मिलता है,इस सपना के साथ अभी हाल में उनके द्वारा जिस एक बड़े ख़्वाब को पूरा किया गया है उसके बावत बताएं की सालों से उनके द्वारा अपने दिल में एक सपना संजोया गया था की राजमाता अहिल्या बाई होलकर की एक प्रतिमा अपने गढ़वा शहर में स्थापित हो,इसे ले कर उनके द्वारा दिली शिद्दत से प्रयास शुरू किया गया जो हाल में ही तब सफलीभूत हुआ जब जिला मुख्यालय के मध्य में अवस्थित टाउन हॉल के समीप उक्त प्रतिमा को एक भव्य समारोह के ज़रिए मंत्री मिथिलेश ठाकुर द्वारा स्थापित किया गया,जिस रोज़ प्रतिमा स्थापित किया जा रहा था उसके निमित आयोजन से ले कर प्रतिमा के अनावरण तक और उसके बाद भी उनके चेहरे जो भाव थे वो परिलक्षित कर रहे थे की उनका एक बड़ा ख़्वाब पूरा हुआ है,उनकी खुशी देखते बन रही थी,साथ ही आपको बताएं की इस ख़्वाब के पूरा करने के साथ साथ उनके द्वारा और एक बड़ी सोच को भी इस रूप में साकार किया गया की अब जिस चौक को हम आप चिनिया मोड़ के नाम से जानते आ रहे हैं कुछ ही दिनों में अब वह राजमाता अहिल्या बाई होलकर चौक के नाम से जाना और पहचाना जाएगा,इसके साथ ही साथ राकेश पाल कहते हैं की जीवन के भागदौड़ में हम आप हर कोई उलझा हुआ है,अपनी कार्यदक्षता के अनुसार कोई थोड़ा तो कोई ज्यादा उपार्जन किया करता है लेकिन हमारे समाज में ऐसे लोग भी हैं जो घोर अभाव के बीच किसी तरह जीवन की गाड़ी को खींचा करते हैं ऐसे में हमारा दिली कर्तव्य होना चाहिए की मदद के ज़रिए उनके जीवन के उस गाड़ी का एक मज़बूत पहिया बनें जिससे उनकी गाड़ी धीरे नहीं बल्कि तेज़ी से चलायमान हो,कहने का मतलब की जब भी किसी अभावग्रस्त लोगों की मदद करने का अवसर मिले तो बिना किसी हिचक के मदद करें,साथ ही समाजहित में भी लोगों को आपकी ज़रूरत महसूस हो तो दिल खोल कर आगे बढ़ते हुए सहभागी बनें,ऐसे में राकेश पाल के इस सहृदयता भरी समाजसेवा को देखते हुए बरबस दिल से यही निकलता है की वो काम करते हैं आप की लोग याद आपको किया करते हैं,और जब लेते हैं नाम आपका तो बड़े अदब से लिया करते हैं..!

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