काश अधिकारी और नेताओं की सफेदी भी दाग़दार होती..?
आशुतोष रंजन
गढ़वा
सुनने में तो दशकों से यही आ रहा है की अधिकारी और नेता सबों की पुकार सुनते हैं,सबकी परेशानी दूर करते हैं,लेकिन मेरी परेशानी उनकी नज़रों से क्यों ओझल है,हमारी ओर उनकी नज़र क्यों नहीं जाती,हमारी परेशानी उन्हें क्यों नहीं दिखती,यह करुण पीड़ा झारखंड के गढ़वा जिला अंतर्गत खरसोता चौक की है जो आज कई दशकों से बदहाल है,उसके साथ साथ वहां रहने वाले लोग किस विषम हालात में जीवन बसर कर रहे हैं आइए आपको केवल बताते नहीं बल्कि सचित्र दिखाते भी हैं।
मैं गढ़वा का बदहाल खरसोता चौक हूं : – घुटने तक भरे इस कीचड़ युक्त पानी को आप ज़रा गौर से देखिए यह कोई खेत या तालाब नहीं बल्कि गढ़वा जिला मुख्यालय से कांडी जाने के मध्य में अवस्थित खरसोता गांव का मुख्य सड़क है,यह बदहाल हालात कोई एक दो रोज़ का नहीं बल्कि दशकों का है,और इसी विषम हालात से हर पल दो चार होते हुए यहां के लोग जीवन गुजारने को विवश हैं,क्योंकि वो गरीब और लाचार हैं,और आवाज और पुकार तो सम्पन्न लोगों की सुनी जाती है आम की आवाज़ को कौन सुनता है,अगर इनकी परेशानी अधिकारी और नेताओं को नज़र आती और इनकी आवाज़ सुनी जाती तो ये कब के इस हालात से उबर गए होते,लोग बताते हैं कि जहां आप पानी देख रहे हैं उससे तो हमलोग हो कर गुजरते ही हैं इसके दोनो ओर हमलोगों का घर भी है,लेकिन आज कई सालों से हम सभी चाह कर भी घर के बाहर नहीं बैठ पाते हैं क्योंकि उस पानी से हो कर गुजरने वाले गाड़ियों से छींटे हमें भींगों देते हैं,साथ ही इससे उपजने वाले मच्छर हमें लगातार बीमारी के आगोश में भेजते रहते हैं,लेकिन हम लाचार लोग क्या करें इसी विषम हालात में ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं,क्योंकि इस परेशानी से उबारने वाले को हमारा यह हालात कहां नज़र आ रहा है।
काश अधिकारी और नेताओं की सफेदी भी दाग़दार होती : – खरसोता गांव के वो गरीब जो इस कीचड़ युक्त पानी के पास रहा करते हैं उनके वो कपड़े जो हर रोज़ कीचड़ और पानी से सन जाया करते हैं,उसके बाद उनके पास पहनने के लिए कुछ नहीं बचता लेकिन वो बेचारे करें भी तो क्या करें क्योंकि वो इस हालात में रहने को अभ्यस्त हो चुके हैं,कारण की उन्हें मालूम है की उनके दिन बहुरने वाले नहीं हैं,अगर बहुरना होता तो कब का बहुर गया होता,ऐसे कठिन हालात में उन गांव वाले के साथ साथ हमारे जेहन में भी एक सवाल यही कौंधता है की जिस तरह उनके कपड़े कीचड़ और पानी से सन रहे हैं काश कभी इधर से गुजरते वक्त अधिकारी और नेताओं की सफेदी यानी लकदक कपड़े भी दागदार होते,लेकिन भला उन पर छींटे कैसे पड़ेंगे उन्हें तो यहां से कभी पैदल गुजरना नहीं है,क्योंकि वो तो लाखों की चमचमाती गाड़ियों से सरपट आगे निकल जाया करते हैं,हां उनकी सफेदी भले दाग़दार ना हो लेकिन जब उनकी गाड़ियां गुजरती हैं तो पास खड़े या वहां से गुजरते गरीबों के तन के एक मात्र कपड़े ज़रूर भींग जाया करते हैं,ऐसे में जिनके कंधों पर इस तरह की परेशानी को दूर करने की जिम्मेवारी है उन्हें तो गाड़ियों से गुजरने के क्रम में उक्त हालात नज़र आ ही नहीं रही है तो भला यह बदहाल हालात कैसे दूर हो।
क्योंकि इस ओर से उदासीन है पक्ष और विपक्ष : – यह विषम हालात इस कारण बना हुआ है प्रश्न यक्ष,क्योंकि इस ओर से उदासीन बना हुआ है पक्ष और विपक्ष,जी हां यह केवल एक मात्र पंक्ति नहीं बल्कि उन नेताओं के नियत की कोरी सच्चाई है जो यहां नुमाया हो रही है,आपको बताएं क्या अगर आप गढ़वा जिला से ताल्लुक रखते हैं तो बखूबी वाकिफ होंगे की जिले का यह खरसोता गांव उस विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र में आता है जहां सबसे अधिक राजनेता राजनीति किया करते हैं,पहले तो हम उन दो नेताओं की बात करेंगे चंद्रशेखर दुबे और रामचंद्र चंद्रवंशी जिनके द्वारा सबसे अधिक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया गया,उनके अनुसार विकास के कई आयाम भी गढ़े गए लेकिन इसके बावजूद भी खरसोता गांव की यह परेशानी दशकों से जड़वत है,उधर इस क्षेत्र के विपक्षी नेताओं की बात करें तो उनके द्वारा तो पूरे क्षेत्र को चमन बना दिए जाने का वायदा हर रोज़ किया जाता है लेकिन अफसोस काश उन्हें खरसोता का यह विषम हालात नज़र आ जाता क्योंकि वो विपक्ष में हैं और उनका निशाना सत्ता ही है ऐसे में सत्ता को विफल साबित करने के लिए इससे बड़ा विषय क्या हो सकता है,लेकिन उन्हें भी तो क्षेत्र में घूमना बड़ी और सीसा बंद गाड़ियों से ही है,ऐसे में उन्हें भला यह करुण परेशानी कैसे नज़र आयेगी।
अब देखना यह होगा की वर्तमान,पूर्व या आगामी चुनाव में ख़ुद को प्रत्याशी बताने वाले नेता या साथ ही प्रशासन,किसके द्वारा और कितना जल्द खरसोता के लोगों को इस विषम हालात से उबारा जाता है..?