98 वर्ष पुराने अस्पताल का केवल नाम ही होता रहा अपग्रेड, अस्पताल हो गया डीग्रेड

98 वर्ष पुराने अस्पताल का केवल नाम ही होता रहा अपग्रेड, अस्पताल हो गया डीग्रेड

न एक एमबीबीएस डॉक्टर, न जांच न दवाएं, भवन में न शौचालय, न पानी न बिजली

तीन करोड़ का भवन तुरंत हो गया जर्जर



दिवंगत आशुतोष रंजन

प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज, गढ़वा


गढ़वा जिला के प्रखंड मुख्यालय कांडी स्थित: डेढ़ लाख की आबादी के लिए इकलौते अस्पताल का 98 वर्षों से नाम तो अपग्रेड होता रहा। लेकिन अस्पताल की व्यवस्था एक बार भी अपग्रेड नहीं हुई। अपग्रेड की कौन कहे सच तो यह है कि दिनोंदिन यह अस्पताल डीग्रेड होता गया है। लेकिन तारीफ की बात है कि इसके नाम में बराबर तरक्की होती रही।

1927 में यहां खुला था यह अस्पताल :- प्रसंगवश कांडी के इतिहास की बात करें तो कांडी एक बेचिरागी गांव था। 1923 में सोन नदी में आई भीषण बाढ़ में वार्ड एंड इंकम्बर्ड इस्टेट सोनपुरा बह गया। 52 गली व 54 बाजार के लिए प्रसिद्ध सोनपुरा इस्टेट की राजधानी जल प्लावित हो गई। बाढ़ में तहस नहस हो चुके इस्टेट ने सोनपुरा से स्कूल, अस्पताल, बाजार, डाकघर सब लाकर कांडी में स्थापित किया। वहां के लोगों को भी यहीं लाकर बसाया। क्योंकि कांडी की टोपोग्राफी अनुकूल थी। यह इतनी ऊंचाई पर था कि बाढ़ के यहां पहुंचने की कभी संभावना ही नहीं थी। वहीं का अस्पताल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के राजकीय औषधालय के रूप में 1927 में कांडी में खुला। लेकिन तारीफ की बात है कि संसाधन के अभाव के बाद भी ब्रिटिश सरकार में इस अस्पताल में लोगों का इलाज होता था। उन्हें यहां दवाएं भी मिलती थीं। वयोवृद्ध लोगों ने बड़े फख्र से यह संस्मरण सुनाया है।

घोड़े पर चढ़कर दूर के गावों में इलाज करने जाते थे डॉक्टर :- आजादी के बाद भी जब कहीं सड़क नहीं थी। गाड़ियां नहीं चलती थीं। उस दौर में इस अस्पताल में डॉक्टर द्वारिका नाथ मिश्रा पोस्टेड थे। मरीजों के आने पर यहा़ं तो जो संभव था इलाज करते ही थे। जो रोगी आने लायक नहीं होता तो उसके इलाज के लिए घोड़े पर चढ़कर वे मरीज के घर 10 – 15 किमी दूर जाया करते थे। आज सभी संसाधन होने पर भी यह अस्पताल सर्वथा साधनहीन बना हुआ है।

फिर भी पांच बार अपग्रेड हो चुका है इसका नाम :- इस अस्पताल को लेकर वर्षों से एक कहावत यहां लोकोक्ति बन चुकी है कि नाम बड़ा पर दर्शन थोड़ा। लेकिन 12 – 14 साल से इसका दूर से दर्शन भी बड़ा हो गया है। क्योंकि इसका सवा तीन करोड़ का भवन जो बन गया है। अब चलते हैं मूल विषय पर। पहले यह राजकीय औषधालय के नाम से जाना जाता था। जिसका अंग्रेजों का बनाया एक भवन भी था। जो आज भी मौजूद है। उस वक्त अस्पताल के सामने डॉक्टर का क्वार्टर भी बना हुआ था। जिसमें डॉक्टर रहते थे। बाद में यह राज्य सरकार के अधीन चला गया। तब इसका नाम हो गया स्वास्थ्य उपकेंद्र कांडी। बहुत वर्षों तक इसी नाम से चलता रहा। फिर दूसरी बार अपग्रेड हुआ तो इसका नाम हो गया अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। लेकिन अस्पताल व इसकी फितरत में कोई बदलाव नहीं हुआ। कई दशक इसी नाम से काम चलता रहा। एक बार फिर इस अस्पताल की किस्मत ने पलटा खाया (मरीजों का नहीं)। तब इसका नाम हो गया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। लेकिन ढाक के वही तीन पात बना रहा। रोगी को रेफरल व सीएचसी मझिआंव रेफर किया जाता रहा। केवल इलाज के लिए ही नहीं जांच के लिए भी। लेकिन अस्पताल का नाम बदस्तूर अपग्रेड होता रहा। अभी हाल में कांडी अस्पताल के मेन गेट पर लिखा पाया गया कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कांडी। मतलब नाम के मामले में कांडी अस्पताल मझिआंव से किसी मायने में कम नहीं। वहां सीएचसी है तो इस बार की तरक्की में कांडी अस्पताल भी सीएचसी हो गया। भले आज के डेट में भी मरीजों को रेफर होकर मझिआंव ही जाना उनकी मजबूरी है।

सइयां भए सरकार फिर भी नहीं हुआ सुधार :- इस अस्पताल का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि यहां के जन प्रतिनिधि ही बीते पांच वर्षों तक झारखंड में स्वास्थ्य के सरकार रहे हैं। अपना वजीरे सेहत रहने के बाद भी न तो अस्पताल की सेहत में कोई सुधार हुआ और न क्षेत्र के मरीजों का ही सेहत सुधरा।

Tags

About Author

Ashutosh Ranjan

Follow Us On Social Media