क्या लोग नया नाम बोल पाएंगें.?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

ऐसे तो हम आप 26 जनवरी के रोज़ एक अलग उल्लास और उत्साह से लबरेज़ रहा करते हैं क्योंकि उस रोज़ संपूर्ण आजादी दिवस जो मना रहे होते हैं,लेकिन यह रोज़ झारखंड के गढ़वा के लिए एक अलग ऐतिहासिक क्षण ले कर आया,क्योंकि उस रोज़ यानी कल जिला मुख्यालय के मझिआंव मोड़ चौक पर सौ फुट की ऊंचाई पर देश का कौमी परचम यानी तिरंगा को स्थापित किया गया,जो एक ओर जहां दूर से नज़र आ रहा है वहीं मन को हर्षित भी कर रहा है,लोग इसकी चर्चा तो कर ही रहे हैं लेकिन कल शाम से जो चर्चा बलवती हो रही है आइए उसके बावत आपको बताते हैं।

गढ़वा में अब ऐसी चर्चा: – कल दिन में अपने शहर में यानी गढ़वा में तिरंगा झंडा स्थापित क्या हुआ शाम के धुंधलके से एक चर्चा होने लगी,उस चर्चा के विषयक बात करें तो लोग यह कहते सुने जा रहे हैं की अब झंडा लगने के बाद इस मझिआंव मोड़ चौक का नाम वही रहेगा या बदलेगा,अगर बदलेगा तो उसका नया नामकरण क्या होगा,वो अब किस नाम से जाना जाएगा,जहां सवाल के साथ लोग उक्त चर्चा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर लोग कह रहे हैं की अब इसे झंडा चौक,तिरंगा चौक,आजाद चौक,कलाम चौक,अटल चौक,सुभाष चौक आदि में से किसी एक नाम से इसका नामकरण किया जाए।

क्या लोग नया नाम बोल पाएंगें:- चर्चा कर रहे हैं लोग,बिल्कुल चर्चा करनी चाहिए,चर्चा से ही कई छोटे बड़े विकासीय कार्य मूर्तरूप लेते देखे गए हैं,ऐसे में हो सकता है कल शाम से हो रही यह इस नई चर्चा का पटाक्षेप एक नए नामकरण के साथ हो जाए,हम क्या हर कोई चाहेगा की जब वहां ऐसा तिरंगा झंडा स्थापित कर ही दिया गया तो उस चौक का नए नाम से नामकरण भी हो जाए,लेकिन हम यहां पर बस इतना ही कहना चाहते हैं की आप हम सभी कोई रांची आते जाते रहते हैं,जब रांची जाते हैं तो अगर कुछ काम हो तो ठीक नहीं हो तो भी एक बार फिरायालाल चौक ज़रूर जाते हैं,क्या आपने कभी गौर किया है की उस चौक पर एक शहीद की प्रतिमा स्थापित है,शायद आपने गौर नहीं किया होगा,और किया भी होगा तो नजरों और यादों से ओझल हो गया होगा,उस चौक पर परमवीर चक्र प्राप्त शहीद अल्बर्ट एक्का की प्रतिमा स्थापित है,और साथ ही बताऊं की उनके नाम से ही उस चौक का अल्बर्ट एक्का चौंक नामकरण किया गया,लेकिन आप दिल पर हाथ रख कर पूरी ईमानदारी से कहिए की कितने बार आपने अल्बर्ट एक्का चौक कहा है,आप और हम,अधिकारी हों या राजनेता,अखबारी पत्रकार हों या किसी न्यूज चैनल वाले सबके ज़ुबान पर अगर पूरी तरह काबिज़ है तो फिरायालाल चौक,तभी मेरा कहना है की जिस चौक पर एक शहीद की स्थापित प्रतिमा पर एक दुकान भारी पड़ता हो,जिस चौक को लोग शहीद के नाम के बजाए एक दुकान के नाम से जानते और पुकारते हों तो भला इस मझिआंव मोड़ चौक को लोग कैसे नए नाम से पुकार पाएंगें.?