ज़रूरत है बदलाव की,ताकि हालात बदले: बिकास दुबे


आशुतोष रंजन
गढ़वा

कई गांव का दौरा करने एवं पास आए लोगों से मिलने और उनके साथ साथ गांव के हाल से वाकिफ़ होने के बाद आज Bindash न्यूज़ से बात करते हुए समाजसेवी सह विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र से भावी विधायक प्रत्याशी बिकास दुबे ने एक पंक्ति “नहीं बदले हालात अपने यहां के,बस केवल सत्ता बार बार बदली”, के साथ कहा की मैं बचपन से देखता और सुनते आ रहा हूं की बस इस बार सत्ता बदलने दीजिए,जहां एक ओर इलाक़े की दुर्दीनता दूर हो जाएगी वहीं दूसरी ओर बदहाल हालात में परिवर्तन भी हो जाएगा,लेकिन कभी सत्ता और चेहरे बदले पर हालात नहीं बदले,आज वर्तमान गुजरते वक्त में भी इलाक़े का हाल वही है जो गुजरे समय में था,कहा की या तो मैं किसी गांव में जा रहा हूं या गांव के लोग मेरे पास आ रहे हैं,सब जगह बस एक ही व्यथा है और उनका बस एक ही सवाल है की हमारे बदहाल हालात में कब सुधार होगा,हमारे गांव की स्थिति कब सुधरेगी,कब हमलोग भी कह पाएंगें की अब हमारे गांव में भी सभी सुविधाएं मौजूद हैं,क्योंकि पूर्वज तो आस जोहते जोहते चले गए,अब हमलोगों का भी वक्त गुजरता जा रहा है,लेकिन हालात जस का तस बना हुआ है,बिकास दुबे ने कहा की जब जब लोगों की बातों को सुन और हालात को नज़र कर रहा हूं तो मन बहुत व्यथित हो रहा है,एक हुक सा उठता है की आख़िर लोगों को क्यों ठगा जा रहा है,दशकों पहले लोग जहां थे,गांव का विकास जहां था आज वहीं जड़वत है,सिंचाई के माकूल साधन बिना सोना उगलने वाले खेत बंजर पड़े हैं,पीने के शुद्ध पानी पिए बिना बीमार होने की नियति बनी हुई है,कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी लोग एक अदद सड़क की आस जोहते हुए पगडंडी से गुजरने को विवश हैं,कभी मेरा भी पक्के का मकान होगा ऐसा दिवास्वप्न देखते हुए कई परिवार मिट्टी के छोटे,जर्जर और कभी भी ध्वस्त हो जाने वाले नाम के घर में रहने को मजबूर हैं तो उधर बेरोजगारी के आलम में दो निवाले की आस में पढ़े लिखे ग्रामीण युवक सुदूर प्रदेशों की ख़ाक छान रहे हैं जहां उनके पाले में रोटी की जगह मौत आ रही है,विडंबना तो इस बात का है की ऐसे विषम हालात में रह रहे लोगों को देखने,उनसे उनका हाल पूछने वाले उनके जनप्रतिनिधि उनसे हमेशा के लिए दूर हैं,ऐसे में मैं सवाल पूछता हूं की क्या अब बदलाव की ज़रूरत नहीं है ?,ताकि हालात बदले,अब सोचना और हमारे सवाल का ज़वाब आपको देना है।