एनडीआरफ की टीम ने किया 40 लोगों का रेस्क्यू
आशुतोष रंजन
गढ़वा
हमलोग तो पत्रकार हैं ख़बर संकलन के लिए वहां पहुंच क़रीब से उस हालात को कवर करते हैं तो उस स्थिति का वर्णन करते हैं और आप उसे अपने टीवी स्क्रीन या मोबाइल में देख बोल पड़ते हैं कि अरे बाप रे ऐसी स्थिति,लेकिन जरा अंदाज़ा लगाइए जो उसके केवल क़रीब नहीं बल्कि उससे घिर जाता होगा तो उसके उस वक्त के मनोभाव को शब्दों में बयां करना मुश्किल है,हम बात यहां नदी में आने वाले बाढ़ और उसमें फंस जाने वालों की कर रहे हैं,आप तो वाक़िफ हो ही चुके हैं कि देर शाम सोन नदी में पानी का बढ़ना शुरू हुआ और फ़िर बाढ़ का स्वरूप ले लिया,उसी बाढ़ में एक दो और दस बारह नहीं बल्कि दो प्रदेशों के लगभग चालीस लोग फंस गए,वो कैसे उस बाढ़ के जद्द में आए और फ़िर उनकी ज़िंदगी कैसे महफूज़ रही आइए आपको बताते हैं।
डीला वाले हर साल देखते हैं सोन नदी की बाढ़ लीला : – नदी किनारे सभ्यता विकसित हुई थी इसे तो हम आप जानते हैं लेकिन क्या इससे वाक़िफ हैं की नदी के मध्य में भी लोग जीवन बसर किया करते हैं,जी हां आपको बताएं कि सोन नदी के मध्य में कई परिवार रहा करते हैं,वो जहां रहते हैं उसे डीला कहा जाता है,वो वहां केवल अपने परिवार के साथ नहीं बल्कि अपने साथ दर्जनों की संख्या में पालतू पशुओं को भी रखा करते हैं,जानने वाले बताते हैं कि वहां गांव जैसा माहौल होता है जहां बाज़ार से ले कर स्कूल तक संचालित होता है,बारिश के पहले तक तो उनकी ज़िंदगी सामान्य रहती है लेकिन जैसे ही बरसात की शुरुआत होती है उनके पेशानी पर बल आ जाता है क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि किसी रोज़ किसी भी वक्त वो बाढ़ के जद्द में आ सकते हैं लेकिन फ़िर भी वहीं मौजूद रहना उनकी विवशता होती है क्योंकि हर साल कोशी की विभीषिका में सबकुछ बर्बाद होने के बाद भी बिहार के लोग घर छोड़ कर नहीं जाते हैं ठीक उसी तरह सोन के इस डीले में रहने वाले लोग भी वहां से निकलना नहीं चाहते और अंततः वो आने वाले बाढ़ से घिर जाते हैं,जैसा कि कल हुआ जब शाम में नदी का पानी बढ़ना शुरू हुआ तो उन्हें आभास हुआ कि वो बस कुछ ही देर में बाढ़ की चपेट में आ जायेंगे,और आख़िरकार वो बाढ़ की जद्द में आ जाते हैं,तब आनन फानन में वो हर बार की तरह अपने घर की छत पर चले जाते हैं और वहीं से मोबाइल फोन के ज़रिए ख़ुद के बाढ़ में फंसे होने की जानकारी बाहर के गांव में लोगों को देते हैं तब लोगों द्वारा इसकी सूचना गढ़वा जिला प्रशासन को दी जाती है,सूचना मिलते ही जिला उपायुक्त शेखर जमुआर और आरक्षी अधीक्षक दीपक पांडेय अपने अधीनस्थ अधिकारियों की टीम के साथ जिले के लोहरगाड़ा गांव पहुंचते हैं और पूरी जानकारी लेते हैं साथ ही अधिकारियों द्वारा एनडीआरफ टीम से बात करने के साथ साथ नदी के उस तरफ़ यानी रोहतास जिला प्रशासन से बात करते हुए बचाव करने का अनुरोध की जाती है,उधर रोहतास प्रशासन भी रेस होती है और एनडीआरफ टीम द्वारा उक्त डीले में फंसे दोनों तरफ़ के यानी लोहरगाड़ा और मेरौनी गांव सहित नदी उस पार यानी बिहार के कुल मिला कर चालीस लोगों का रेस्क्यू किया जाता है,लेकिन सवाल उठता है कि डीले के लोग हर साल नदी में आने वाली बाढ़ की लीला को देखते एवं उसके जद्द में आते हैं पर फ़िर भी वहीं रहना क्यों चाहते हैं यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका माकूल जवाब वही दे सकते हैं।