ना जाने किसके रिमोट से ऑन ऑफ़ हो रहे भाजपा जिलाध्यक्ष…?

ना जाने किसके रिमोट से ऑन ऑफ़ हो रहे भाजपा जिलाध्यक्ष…?

ख़ैर कुछ भी हो,भाजपा का स्थाई कार्यालय होना बड़ी बात है

आशुतोष रंजन

गढ़वा 

 

राज्य के अन्य जिलों की बात तो मै नहीं करूंगा पर अगर गढ़वा की बात करें तो पिछले कई सालों से इसकी चर्चा होती रही है कि जिले के भाजपा जिलाध्यक्ष किसी ना किसी राजनेता के पॉकेट के रहे हैं,जब ऐसी बात पहले से होती रही है तो भला वर्तमान गुजरते वक्त में कैसे नहीं होती,लेकिन इस बार जिलाध्यक्ष का नाम किसी से ना जोड़ते हुए बल्कि यह कहते हुए चर्चा की जा रही है कि ना जाने किसके रिमोट से वो ऑन ऑफ़ हो रहे हैं भाजपा के जिलाध्यक्ष,यह प्रश्न अनुतरित हालात में यक्ष ही बना हुआ है।

ना जाने किस रिमोट से ऑन ऑफ हो रहे भाजपा जिलाध्यक्ष : – राजनीति में आंख से ज़्यादा कान को महत्व दिया जाता है,कहने का मतलब की राजनीति करने वाले राजनेता ख़ुद की आंखों से सदृष्य देखने और देख कर उसे समझने के बजाए उसके बारे में कान से सुन कर यक़ीन करना ज़्यादा मुनासिब समझते हैं,ऐसा करना उनकी राजनीति की सेहत के लिए भले नुकसानदायक सिद्ध होता हो पर उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता और वो अपने आदत से बाज़ नहीं आते,तभी तो गढ़वा के भाजपा जिलाध्यक्ष के बारे में पूर्व में भी यही कहा जाता था कि वो किसी के पॉकेट के हैं,वो फलाने के इशारे पर जिम्मेवारी निभाते हैं,अब वर्तमान जिलाध्यक्ष के बारे में तो यहां तक कह दिया जा रहा है कि ना जाने वो किसके रिमोट से ऑन ऑफ हो रहे हैं..?

प्रश्न है यक्ष,क्या चुनावी कुरुक्षेत्र में पार्टी को जीत दिला पाएंगे जिलाध्यक्ष : – प्रखंड से सीधे जिला की राजनीति में लाए गए ठाकुर महतो को पार्टी संगठन द्वारा भले जिलाध्यक्ष का कमान सौंप दिया गया पर वो जिला की राजनीति के साथ साथ संगठन की धार को मजबूत करने में कितना कारगर सिद्ध हो रहे हैं यह तो पार्टी के एक कार्यकर्ता के साथ साथ जिले के राजनेता भी बखूबी अहसास कर रहे होंगे,लेकिन वर्तमान गुजरता वक्त चुनाव का है तो ऐसे में हर कोई कुछ भी बोलने से परहेज़ कर रहा है,लेकिन सूत्रों की मानें तो अंदरखाने में अनवरत चर्चा हो रही है कि वो किसी भी दृष्टिकोण से फिट नहीं बैठ रहे हैं,एक लाइन में यह कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वो बिना सेना के सेनापति बन जंग लड़ने को आमादा हैं,ऐसे में उनके और उनकी पार्टी के हिस्से शह आएगी या मात इसे समझने में शायद दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं है,क्योंकि जिलाध्यक्ष बने कितने माह गुज़र जाने के बाद भी अब तलक जिला कमिटी का विस्तार नहीं हो सका है,इसी लिहाज़ से यह कहना लाज़िमी है कि बिना सेना के सेनापति किस काम का,उधर राजनीति दृष्टिकोण से देखें तो राज्य में विधानसभा का चुनाव काफ़ी क़रीब है,उसमें भी गढ़वा विधानसभा में खोई हुई सत्ता को पाने की एक बड़ी चुनौती है,चुनाव लड़ने वाले संभावित प्रत्याशी द्वारा तो पूरे दम खम के साथ क्षेत्र में युद्धस्तर पर जनसंपर्क के साथ साथ मतदाताओं को अपने पाले में करने की जुगत की जा रही है,लेकिन फिर बात वहीं आ कर रुक जाती है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी में संगठन का काफ़ी महत्व होता है,उसमें भी वो अगर भाजपा हो तो क्या कहना जिसकी बुनियाद ही संगठन है,क्योंकि सशक्त संगठन के बल बूते ही भाजपा आज केंद्र से ले कर कई राज्यों में सत्ता पर काबिज़ है,ऐसे में गढ़वा के साथ साथ राज्य में भी भाजपा सत्तासीन हो इसकी कवायद में पार्टी पूरी तन्मयता के साथ जुटी हुई है,लेकिन कसक इस बात का है कि गढ़वा में चुनावी कुरुक्षेत्र की यह लड़ाई को जितना वर्तमान जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में कितना आसान होगा यह तो आने वाला परिणाम ही बताएगा।

ख़ैर कुछ भी हो,पार्टी का स्थाई कार्यालय का होना ही बड़ी बात है : – ऐसे तो गढ़वा में किसी भी राजनीतिक पार्टी का अपना स्थाई जिला कार्यालय नहीं है,लेकिन एक बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित भाजपा का अपना कार्यालय का नहीं होना चर्चा का विषय था,पर देर ही सही पार्टी का आज से अपना एक भव्य और सुव्यवस्थित कार्यालय हो गया,जहां पार्टी संगठन की बैठक के साथ साथ अन्य सांगठनिक कार्यक्रम बिना किसी व्यवधान के संपन्न होंगे,लेकिन कहा जाता है कि घर बड़ा होने से व्यक्ति और उसकी मानसिकता में बदलाव नहीं होता।

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Ashutosh Ranjan

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