कहते तो हैं की मैं राजनीति से बहुत दूर हूं


आशुतोष रंजन
गढ़वा

सामाजिक जीवन में समाजसेवा के ज़रिए अच्छी खासी पैठ बना लेने के बाद बहुतों के दिल में चुनाव लड़ने की चाहत बलवती हो जाती है,इसी को ध्यान में रखते हुए उनके बारे में भी कभी कभी चर्चा हो जाती है की क्या वो भी राजनीति में आयेंगे,क्या वो चुनाव लड़ने के लिए ही समाजसेवा कर रहे हैं,पर चर्चाओं को सुनने के बाद नहीं बल्कि अपने समाजसेवा के शुरुआत रोज़ से ही उनके द्वारा एक ही बात को बार बार दुहराया जाता है की मैं राजनीति और चुनाव से बहुत दूर हूं,मैं बात यहां सालों पहले झारखंड के गढ़वा में कपड़ा बैंक,चावल बैंक,सत्तू और पुस्तक बैंक की शुरुआत कर गरीब असहाय का सहारा बनने वाले शौकत खान की कर रहे हैं,कोई भी पर्व त्योहार हो जहां ख़ास की बात को परे रखें तो हम जैसे साधारण लोग भी कभी कभी बढ़िया दुकान में पहुंच कपड़े की खरीददारी करते हैं लेकिन गरीब और लाचारों के लिए शौकत खान ही एकमात्र सहारा हैं,जहां पहुंचने पर उनके द्वारा उन्हें कपड़ा चावल और अन्य सामग्री उपलब्ध कराया जाता है जिससे वो पर्व त्योहार मनाते हैं,उनके इसी बड़े समाजसेवा को नज़र करने के बाद ही चर्चा होती है की जहां बिना स्वार्थ का कोई भी व्यक्ति किसी को कुछ नहीं दिया करता है तो आख़िर इतने सालों से शौकत खान क्यों समाजसेवा में अनवरत जुटे हुए हैं विधानसभा तो नहीं लेकिन उनके बारे में लोग चर्चा करते हुए यही कहा करते हैं की हो न हो वो गढ़वा नगर परिषद का चुनाव ज़रूर लड़ेंगे,इस चर्चा को उस वक्त से तब और बल मिल गया है जब उनके द्वारा अपने फेसबुक पर नगर परिषद चुनाव को ले कर प्रकाशित अखबार के ख़बर को पोस्ट किया गया है जिसमें राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से कहा गया है की आगामी छह माह में चुनाव करा लेंगे,अखबारी कटिंग को पोस्ट करते हुए वो भले यह लिखे हों की जल्दी चुनाव हो क्योंकि एक वोटर के तौर पर वो वोट देने के लिए तैयार हैं,लेकिन इस पोस्ट के बाद चर्चा तो यही हो रही है की हमेशा ख़ुद को चुनाव से परे बताने वाले शौकत खान के अंतर्मन में क्या चुनाव लड़ने की इच्छा जागृत हो रही है,मेरे अनुसार ऐसा तो हो नहीं सकता क्योंकि उनके अभिभावक कभी नहीं चाहते की उनके घर का कोई भी सदस्य राजनीति में जाए,लेकिन किसी भी कारण ऐसा होता है और शौकत खान सच में राजनीति में आ कर नगर परिषद का चुनाव लड़ते हैं तो कई प्रत्याशियों का बना बनाया समीकरण निश्चित रूप से धरा का धरा रह जाएगा।