गढ़वा के नरगीर आश्रम में पूज्य संत श्री बालस्वामी प्रपन्नाचार्य सुना रहे दिव्य रामकथा


आशुतोष रंजन
गढ़वा

नरगिर आश्रम में रामकथा सुना रहे अयोध्या के पूज्य संत श्री बालस्वामी प्रपन्नाचार्य ने भगवान राम के बाल चरित्र एवं राम विवाह का सुन्दर एवं सारगर्भित वर्णन किया,भगवान सदाशिव ने केवल सती के शरीर का ही त्याग नहीं किया वरन् श्रीराम की सेवा के लिए स्वयं के शरीर का भी त्याग कर दिया,वानररूप हनुमान बनकर भगवान शंकर ने श्रीराम व उनके परिवार की सेवा केवल उस वक्त ही नहीं बल्कि आज भी कर रहे हैं और भविष्य में भी अनन्तकाल तक करते रहेंगे।

रामलला के दर्शन के लिए भगवान शिव को भी अवध की गलियों में घूमना पड़ा था : देवों के देव महादेव कागभुशुण्डि के साथ बहुत समय तक अयोध्या की गलियों में घूम-घूमकर आनन्द लूटते रहे,एक बार वो कागभुशुण्डि को बालक बनाकर और स्वयं त्रिकालदर्शी वृद्ध ज्योतिषी का वेष धारण कर शिशुओं का फलादेश बताने के बहाने अयोध्या के रनिवास में प्रवेश कर गए,क्योंकि उनकी चाहत यही थी की वो अपने आराध्य प्रभु राम के बाल्यूरूप का दर्शन करें,और जब उन्हें दर्शन हुआ तो वो उनकी शिशु क्रीड़ा देखकर परमानन्द में डूब गए,उधर माता कौशल्या ने जैसे ही शिशु राम को ज्योतिषी की गोद में बिठाया तो शंकरजी का रोम-रोम पुलकित हो उठा,प्रपन्नाचार्य ने अपने भजनों के माध्यम से कहा कि अपने जीवन मे सुकृत अर्जित करना चाहिए,जो सत्कर्म अनिष्ट से हमारी रक्षा करता है,विषम परिस्थितियों मे सत्कर्म एक कवच की तरह कार्य करता है,मनुष्य को हमेशा सत्कर्म की ओर प्रवृत होना चाहिए,विश्वामित्र अपने शिष्यों के साथ राजा दशरथ के पास पहुंचते हैं तथा उनसे राम लक्ष्मण को मांगते हैं,राजा दशरथ पहले तो इन्कार करते हैं,लेकिन बाद में गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के हाथ में सौंप देते हैं,उधर राम लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में चले जाते हैं,जहां पर विश्वामित्र राम को बताते हैं कि एक राक्षसी ताड़का उनके हर यज्ञ में विघ्न डालती है इसलिए उसका विनाश करना आवश्यक है,इसके बाद ताड़का के दोनों भाई मारीच और सुबाहु के साथ भगवान राम का युद्ध होता है,इस युद्ध में भगवान का बाण लगने से मारीच सौ योजन दूर जाकर गिरता है तथा सुबाहु मृत्यु को प्राप्त होता है,अहिल्या की सुन्दरता पर स्वयं इंद्र देव मोहित होकर प्रेमवासना कामना के साथ अहिल्या से मिलने पृथ्वी लोक आये,लेकिन गौतम ऋषि के होते यह संभव नहीं था,तब इंद्र एवं चन्द्र देव ने एक युक्ति निकाली,महर्षि गौतम ब्रह्म काल में गंगा स्नान करते थे,इसी बात का लाभ उठाते हुये इंद्र और चंद्र ने अपनी मायावी विद्या का प्रयोग किया और चंद्र ने अर्धरात्रि को मुर्गे की बांग दी जिससे महर्षि गौतम भ्रमित हो गये और अर्ध रात्रि को ब्रह्म काल समझ गंगा तट स्नान के लिये निकल पड़े,महर्षि के जाते ही इंद्र ने महर्षि गौतम का वेश धारण कर कुटिया में प्रवेश किया और चंद्र ने बाहर रहकर कुटिया की पहरेदारी की,जब गौतम गंगा घाट पहुँचे, तब उन्हें संदेह हुआ,तब गंगा मैया ने प्रकट होकर गौतम ऋषि को बताया कि यह इंद्र का रचा माया जाल है,वो अपनी गलत नियत लिये अहिल्या के साथ कु कृत्य की लालसा से पृथ्वी लोक पर आए हैं,इतना सुनते ही गौतम ऋषि क्रोध से भर गये और तेजी से कुटिया की तरफ लौटे,उन्होंने चंद्रदेव को पहरेदारी करते देखा तो पहले उन्हें शाप दिया की आप पर हमेशा राहू की कु दृष्टि रहेगी,और उस पर अपना कमंडल मारा तब ही से चांद पर दाग है,और इन्द्र को हजारों भग धारण करने के साथ साथ अपूजित होने का शाप दिया,सीता के पिता जनक ने यह घोषणा की थी कि जो कोई शिव धनुष पर बाण का संधान कर लेगा,उसके साथ सीता का विवाह कर दिया जाएगा,मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था,इसलिए हर साल इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है,भगवान राम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता प्रकृति शक्ति की प्रतीक हैं,ऐसे में चेतना और प्रकृति का मिलन होने से ये दिन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है,उधर आज की कथा में राम विवाह के मौक़े पर बच्चों के द्वारा सुंदर झांकी के साथ साथ गढ़देवी मन्दिर से बारात निकाली गई,दशरथ जी के तरफ से द्वारकानाथ पाण्डेय,दिलीप पाठक,राजन पांडेय,चंदन जायसवाल,अवधेश कुशवाहा,मनीष कमलापुरी आदि तथा जनक जी के तरफ से दिलीप श्रीवास्तव,श्रीपति पाण्डेय,अमित पाठक,नितेश कुमार,दीनानाथ बघेल,गुड्डू हरि आदि समधी के भूमिका मे नजर आए,पुष्प वृष्टि द्वारा झांकी तथा नाच गान कर रहे बारातियों का स्वागत किया गया तथा पूरी हलवा का प्रसाद भी वितरण किया गया।