जो रह गया था अधूरा,उसे करूंगा पूरा
आशुतोष रंजन
गढ़वा
आम ज़िंदगी में भी अगर हम आप किसी का दिल से साथ देते हैं और वक्त आने पर साथ देना तो दूर जब वो एक ओर जहां आपसे दूरी बना लेता है तो दिल में एक कसक सी होती है,यह तो आम ज़िंदगी की बात हुई,उधर राजनीतिक जीवन भी इससे ना तो जुदा है बल्कि यहां तो ऐसा होने पर मन में गहरा शिकवा होने के साथ साथ गहरी दुश्मनी तक की कई कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हैं,कई बड़े राजनेताओं के नाम अंकित हैं लेकिन एक नेता ऐसा भी है जिसके गुज़रे 2019 के परिणाम के बाद से ही एक पंक्ति दुहराया जा रहा है की “शिकवा नहीं किसी से,किसी से गिला नहीं,नहीं था क़िस्मत में,तभी तो मिला नहीं ” यानी उनके द्वारा ना तो उन नेताओं से कोई शिकवा है जिनके द्वारा उनके कार्यकाल में लाभ ले कर समय पर केवल साथ ही नहीं छोड़ा गया बल्कि उन्हें सत्ता से हटाने के लिए विरोधी की मदद भी की गई,और ना ही क्षेत्र की जनता से कोई शिकायत है,वो सीधे रूप में दो बात कहते हैं,पहला यह की ज़रूर मुझसे कोई गलती हुई होगी,साथ ही शायद मेरी क़िस्मत में नहीं था,हम बात यहां गढ़वा विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक एवं आगामी चुनाव के सबसे मज़बूत प्रत्याशी सत्येंद्र नाथ तिवारी की कर रहे हैं,जो उन नेताओं की श्रेणी में शुमार नहीं होते हैं जिनके द्वारा अपने क्षेत्र की जनता को ही दोषवार ठहराया जाता है,बल्कि इनके द्वारा तो कहा जाता है की मैं अपने क्षेत्र की जनता को भला गलत कैसे कह दूं,यह वही जनता हैं न जिसके द्वारा किसी को एक बार जीता लेने के बाद पछताना पड़ रहा है और आगे फिर नहीं जिताने का संकल्प लिया जा रहा है,और यह वही गढ़वा की जनता है जिसके द्वारा मुझे लगातार दूसरी बार भी अपना जनप्रतिनिधि चुना गया,मैं इनका ऋणी हूं,इनके इस अमूल्य ऋण को चुका पाना तो असंभव है,लेकिन अपने कार्यकाल के दरम्यान मेरी कोशिश रही की बदहाल गढ़वा के हालात को बदलूं और मैंने किया भी,जिस गढ़वा विधानसभा क्षेत्र में लोगों को चलने के लिए पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता था,गांव देहात में तो किसी के बीमार हो जाने पर ना तो उनके घर तक एंबुलेंस ही पहुंच पाता था और ना ही वो समय रहते बीमार को ले कर मुख्य सड़क तक पहुंच पाते थे,नतीजा होता था की उन्हें अपने बीमार मरीज़ के लिए भगवान से मौत की दुआ मांगनी पड़ती थी,इस करुण पीड़ा को दिल से महसूस करते हुए मैने हर गांव में सड़क का निर्माण कराया,आवास की बात करें तो लोग किसी तरह खपड़ैल जिसे भी ठीक से घर भी नहीं कह सकते हैं उसमें रहने को मजबूर थे,जिन्हें पक्का आवास मुहैया कराने का काम किया,स्कूल का भवन था तो शिक्षक नहीं होते थे,कहीं शिक्षक थे तो भवन नहीं था,ऐसे हालात को नज़र करने के बाद शिक्षण व्यवस्था को दुरुस्त किया ताकि हमारे नौनिहालों का शैक्षणिक भविष्य सुरक्षित हो सके,सिंचाई व्यवस्था के लिए क्षेत्र में नहर का निर्माण कराया,जिससे आज लोग कई फ़सल उपजा कर खेती के ज़रिए बेहतर जीवन जी रहे हैं,क्या गांव का स्वास्थ्य केंद्र और क्या जिला मुख्यालय का अस्पताल सभी जगह लोगों को समुचित इलाजीय सुविधा मयस्सर हो इसे ले कर मैं अनवरत प्रयासरत रहा,तब जा कर स्वास्थ्य व्यवस्था के हालात में सुधार हुआ,वो कहते हैं की अपने क्षेत्र को संवारने में मेरे द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ा गया,उसके बाद भी हार जाने पर मुझे ना तो तनिक भी कष्ट हुआ और ना ही किसी से शिकवा ही है क्योंकि मुझे यकीन ही नहीं बल्कि अंतरात्मा से पूर्ण विश्वास है की जिसके द्वारा मुझे सत्ता से हटाया गया,उसके द्वारा ही एक बार फिर से वापस लाया जाएगा क्योंकि मुझे इल्म है तो उन्हें भी अहसास है की कुछ ही मैं कर पाया हूं,अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है,विकास का तो मैं ट्रेलर ही दिखाया हूं,समूल क्षेत्र को विकसित कर अभी पूरी फिल्म दिखाना तो बाक़ी है।