पास के गावों के काफी संख्या में लोग पक्के कच्चे मकान व झोंपड़ी बना कर परिवार व पशुओं के साथ रहते हैं डीला में
बाढ़ के खतरे को लेकर डीसी ने अविलंब वहां से पशुओं के साथ हट जाने की दी चेतावनी
दिवंगत आशुतोष रंजन
प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज़, गढ़वा
गढ़वा जिला की उत्तरी सीमा पर सोन नदी के डीला में खेती एवं पशुपालन करने वाले लोगों से भारी बरसात एवं संभावित बाढ़ के खतरे को देखते हुए जिला के उपायुक्त ने नदी के डीला में से पशुओं के साथ हट जाने का निर्देश दिया है। मालूम हो कि सोन नदी के डीला (बाढ़ के साथ मिट्टी बहकर आने से बना हुआ खेत) में सैकड़ो की संख्या में लोग खेती किया करते हैं। इसके साथ ही वहीं पर पशुपालन भी करते हैं। ग्रामीण सूत्रों की मानें तो गांव के उपजाऊ खेतों से डीला पर काफी उन्नत खेती होती है। जिसका परिणाम है कि एक बड़ी आबादी सालों भर डीला पर ही रहती एवं खेती करती है। गढ़वा जिला के उत्तरी सीमा पर स्थित सोन नदी बिहार एवं झारखंड को आपस में बांटती है। जिला के उत्तरी सीमा पर खरौंधी, केतार एवं कांडी प्रखंड के दर्जनों गांव अवस्थित हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार खरौंधी प्रखंड के सोन तटीय गांव के लोग सोन के डीला में खेती नहीं करते हैं। बहुत संभव है कि वहां पर नदी में डीला नुमा खेत बन ही नहीं पाया हो। लेकिन केतार प्रखंड के लोहरगाड़ा एवं नावाडीह के बड़ी संख्या में लोग डीला में खेती किया करते हैं। पहले तो यहां 50 परिवार रहते एवं खेती-बाड़ी करते थे। लेकिन अब उनकी संख्या कुछ कम हो गई है। बावजूद इसके दर्जनों की संख्या में लोग एवं उनके परिवार यहीं पर रहकर खेती-बाड़ी करते हैं। यहां 25 एकड़ से अधिक जमीन में काफी अच्छी एवं उपजाऊ खेती होती है। यहां धान, गेहूं, अरहर, चना, प्याज, लहसुन एवं सब्जियों की अच्छी पैदावार ली जाती है। इस तरह की पैदावार गांव के बने बनाए खेतों में नहीं हो पाती है। सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है कि सोन नदी के डीला में लगभग बिना खाद पानी के ही अच्छी खेती हो जाती है। जिसका परिणाम है कि डीला में पक्के मकान का निर्माण करके लोग रहने लगे हैं। लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। पिछले ही साल लोहरगड़ा के 40 की संख्या में लोग सोन की बाढ़ में बुरी तरह से फंस गए थे। वह लोग एक पक्के मकान के छत पर चढ़कर जान बचाते हुए मोबाइल से झारखंड व बिहार दोनों तरफ लोगों से बचाने की गुहार लगाई थी। काफी मशक्कत के बाद बिहार से आई एनडीआरएफ की टीम ने उन्हें रेस्क्यू किया था। इस खबर से पूरे देश में हलचल मच गई थी। उल्लेखनीय है कि बीते कल 21 जून को सोन एवं कोयल तटीय इलाके में घूम कर जिला के उपायुक्त दिनेश कुमार यादव एवं पुलिस अधीक्षक अमन कुमार ने स्थिति की समीक्षा की है एवं लोगों को नदी में से पशुओं के साथ हट जाने की चेतावनी दी है। इसके लिए उन्होंने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया है। केतार अंचल के अंचलाधिकारी ने एक नोटिस जारी करके लोहर गाड़ा, नावाडीह आदि गांव के लोगों से डीला में से पूरे मानसून के लिए पशुओं के साथ हट जाने की चेतावनी दी है। इधर कांडी प्रखंड के श्रीनगर, डुमरसोता, सोनपुरा, बरवाडीह, सुंडीपुर कई गांवों में सोन नदी के लंबे चौड़े भाग में डीला का निर्माण हो गया है। जिसमें सैकड़ो लोग अच्छी खेती करते एवं वहीं पर रहते हैं। कांडी प्रखंड के डूमरसोता गांव के सोन नदी में अड़ंगा बाबा घाट के सामने सैकड़ो एकड़ जमीन में रबी फसल, प्याज, सब्जी, सरसों, कुर्थी आदि की उन्नत खेती की जाती है। इनमें विजय चौधरी, रामलाल चौधरी, परीखा चौधरी, नंदू राम, नंदलाल मेहता, प्रमिला देवी, आनंद मेहता, कइली देवी, रघुवर चौधरी, लीलावती देवी सहित दर्जनों लोग खेती किया करते हैं। इधर प्रखंड के सोनपुरा एवं बरवाडीह गांव के समीप करीब 500 एकड़ के डीला में अरहर, कुर्थी, सब्जी आदि की खेती की जाती है। यहां पर लोगों ने घर एवं झोपड़ी बनाकर पशुओं के साथ रहना एवं मोटर लगाकर सिंचाई की व्यवस्था भी कर रखी है। काफी संख्या में लोगों ने गांव से बांस बल्ली गाडकर लाइन खींच लिया है। वहीं कई लोग डीजल पंप सेट से भी सिंचाई करते हैं। यहां धान गेहूं आदि की भी काफी उन्नत खेती की जाती है। बताते चलें कि इस वर्ष 10 – 12 एकड़ में कोंहड़ा की फसल लगाई गई थी। जो एक ट्रक में भरकर बाहर के व्यापारी खरीद कर ₹40000 में बनारस ले गए थे। इस डीला में खेती करने वालों में नरेश राम, कृष्णा राम, मीरा सिंह, सुरेश राम, विजय पासवान, मीनू पासवान, गोपाल बरई आदि का नाम शामिल है। जबकि सोन एवं कोयल नदी के संगम पर अवस्थित सुंडीपुर गांव के निकट दोनों नदियों को मिलाकर 100 एकड़ के डील में काफी उन्नत खेती की जाती है। यहां पर धान, गेहूं, मक्का, अरहर, प्याज, लहसुन, राई की बिना खाद पानी के काफी अच्छी पैदावार होती है। पिछले सीजन में एक-एक किसान ने 40 से 50 क्विंटल गेहूं पैदा किया है। सोन के डील में लाइन खींच कर लोगों ने मोटर भी लगा लिया है। यहां खेती करने वालों में नंदू चौधरी, अखिलेश्वर चौधरी, लालमोहन चौधरी, सत्येंद्र चौधरी, हीरा चौधरी, प्रभु चौधरी, नथुनी चौधरी, उपेंद्र चौधरी, कामेश्वर चौधरी, सत्येंद्र चौधरी बी, चंद्रदेव राम, शालिग्राम आदि के नाम शामिल हैं। मालूम हो कि सुंडीपुर में है झारखंड का सबसे लंबा उच्च स्तरीय सड़क पुल अवस्थित है। डीला में खेती करने वालों ने यहां आने-जाने एवं भोजन पहुंचाने की जुगाड़ टेक्नोलॉजी से अच्छी व्यवस्था बना ली है। कनई के साथ बिना छिला हुआ बांस पुल के साथ खड़ा कर दिया है। जो सीढ़ी का काम करता है। इसके साथ ही पुल की रेलिंग से बांधकर एक रस्सी लटका दी है। जिसमें बांधकर भोजन लटका दिया जाता है। डीला में रहने वाले अपना भोजन प्राप्त कर लेते हैं। भोजन करने के बाद वह खाली बर्तन लाकर रस्सी के साथ बांध देते हैं। जो घर के सदस्य ऊपर खींच लेते हैं। इस तरह पूरे सिस्टम के साथ डीला में रहते एवं खेती करते हैं। लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। मालूम हो की 2 साल पहले सुंडीपुर के इसी डीला में से 300 पशु बाढ़ में बह गए थे। यहां पर काला गाड़ा गांव में सोन नदी में बनी हुई एक झोपड़ी देखकर डीसी दिनेश कुमार यादव ने कांडी के सीओ राकेश सहाय एवं थाना प्रभारी अविनाश राज को नदी में से बाढ़ के खतरे को देखते हुए लोगों को हटाए जाने का निर्देश दिया है।

