21वीं सदी के भारत में भी लोग लकड़ी की डंडी पर पत्तियां व पन्नी टांगकर बिताते हैं जाड़ा गरमी व बरसात

21वीं सदी के भारत में भी लोग लकड़ी की डंडी पर पत्तियां व पन्नी टांगकर बिताते हैं जाड़ा गरमी व बरसात

तीन दशकों से इसी तरह जीते मरते हैं हरिगावां मोड़ के मुसहर

यहां रहने पर भी होता है इनपर मुकदमा

आजतक इन्हें न तो राशन कार्ड मिला न आवास न ही मईंयां सम्मान



दिवंगत आशुतोष रंजन

प्रियरंजन सिन्हा
बिंदास न्यूज, गढ़वा


यह है 21वीं सदी का भारत। जहां झारखंड के गढ़वा जिलांतर्गत कांडी प्रखंड क्षेत्र के हरिगावां मोड़ पर खुले आकाश के नीचे 25 – 30 वर्षों से जीते मरते अति दलित जाति मुसहर के दर्जन भर परिवारों को देखिए। कांडी गढ़वा मुख्य सड़क के किनारे हरिगांवां मोड़ पर ये सभी बाल बच्चों के साथ रहते हैं। लेकिन आज तक इन परिवारों के सिर पर सरकार एक अदद छप्पर तक उपलब्ध नहीं करा सकी। आज भी ये सब किसी भी मौसम जाड़ा गर्मी बरसात में खुले आकाश के नीचे रहने के लिए लाचार हैं। लकड़ी के डंडों पर टंगी पेड़ की पत्तियों व प्लास्टिक ना तो धूप रोक पाता है और ना लू के थपेड़े। गरजती घटा कड़कती बिजली व बरसती बूंदों को शरीर पर झेलने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। उनके पास ना कोई जमीन है और ना तो घर। इस खाली पड़ी जमीन पर किसी प्रकार मड़ई झोपड़ी लगाकर रहते हैं। टूटी फूटी मड़इया से बरसा हुआ सारा पानी अंदर टपकता है। यही स्थिति चिल चिल्लाती धूप के मौसम में इन परिवारों को झेलना पड़ता है। यह लोग भीख मांग कर आज भी अपने परिवार का पेट पालते हैं और घुमंतू जीवन जीते हैं। यह करीब 3 दशकों से यहां रहते हैं। लेकिन अभी तक उनका नाम वोटर लिस्ट में भी नहीं है। जबकि लगातार घूमते रहने वाले बंजारों का भी एक ही रात सब जगह गणना करके उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल किया जाता है। इन लोगों ने बताया कि कई साल पहले कांडी बीडीओ गुलाम समदानी के समय बरसात शुरू होने के पहले हम लोगों को प्लास्टिक दिया जाता था। जिसे लकड़ियों पर टांग कर मड़ई बनाकर बाल बच्चों के साथ गुजारा करते थे। उनके जाने के बाद वह मिलना भी बंद हो गया। वे मीडिया के माध्यम से उनके लिए भी कुछ करने की गुहार लगाते हैं। इन्हीं मुसहर परिवारों की दुलारी कुंवर ने कहा कि उन्हें भी मकान की जरूरत है। उसके पति बैजनाथ मुसहर 15 साल पहले गुजर गए। उसे 4 साल से विधवा पेंशन मिलता है। लेकिन बाकी किसी को कुछ नहीं मिलता। यहां तक की यहां रहने वाले किसी परिवार को अभी तक राशन कार्ड नहीं मिला है। बहु प्रचारित मुख्यमंत्री मंईंयां सम्मान योजना का भी किसी को लाभ नहीं मिलता। जबकि यहां रहने वाली चंद्रावती देवी 40 वर्ष, छठनी देवी 30 वर्ष, पूजा देवी 35 वर्ष, शोभा देवी 30 वर्ष एवं उषा देवी 32 वर्ष मईंयां सम्मान योजना के योग्य पात्र हैं। दुलारी कुंवर ने बताया कि फिलहाल यहां पर मुशहरों के छह परिवार रहते हैं। जिनमें राजेंद्र मुसहर पत्नी पूजा देवी एवं चार बच्चे, सकेंदर मुसहर मंजू देवी एवं बच्चे, सोनू मुसहर उषा देवी 5 बच्चे, विनोद मुसहर चंद्रावती देवी चार बच्चे, सिकंदर मुसहर शोभा देवी एक बच्ची शामिल है। कहा कि चार-पांच साल पहले उन लोगों का आधार कार्ड बना है। कहा कि गढ़वा में एक साहब आए थे जिन्होंने उन लोगों की सुधी ली थी। दुलारी का संकेत रमेश घोलप डीसी की ओर था। जिन्होंने गढ़वा जिला के मुसहरों को सुविधा प्रदान करने के लिए एक मुहिम चलाई थी। लेकिन उस वक्त भी हरिगावां मोड पर रहने वाले इन मुसहर परिवारों का केवल आधार कार्ड ही बन सका। राजस्व कर्मचारी ने उसी समय जमीन की मापी जोखी की थी। लेकिन उससे आगे कोई काम नहीं हुआ। उन लोगों को अभी तक राशन कार्ड भी नहीं मिला। जिसका नतीजा है कि भीख मांग कर भोजन चलाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। भीख मिली तो भोजन मिला। यदि भीख नहीं मिली तो पानी पीकर उपवास रह जाना पड़ता है। दुलारी कुंवर ने बताया कि यहां रहने के जुर्म में वन विभाग ने उन लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया था। जिस कारण उन्हें केस भी लड़ना पड़ा। बाद में उन्हें बताया गया कि केस फाइनल हो गया। अब पता नहीं कि क्या हुआ। उनके बच्चे यूं ही भटकते भीख मांगते रहते हैं। यदि उनका राशन कार्ड बन गया होता तो उसके आधार पर आयुष्मान कार्ड भी बन जाता। वे आज भी घोर गरीबी के कारण बीमारी में इलाज भी होता है या नहीं जानते। झाड़ फूंक टोना टोटका जड़ी बूटी पर ही उनकी जिंदगी निर्भर है।

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Ashutosh Ranjan

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