मने सोचने वाली बात है


आशुतोष रंजन
गढ़वा

डॉक्टरों का हड़ताल पर रहना,मरीजों का परेशान होना,कभी अस्पताल के गेट से देख कर गुज़र जाना तो कभी डॉक्टरों पास बैठ कर बातचीत करना,हड़ताल से लौटने की मनुहार करना,डॉक्टरों का अपने एक ही बार पर अडिग रहते हुए लौटने से इनकार करना,मतलब समझिए की गुज़रे चार रोज़ से यही प्रक्रिया अनवरत जारी है,एकदम अजीब हाल है भाई,एक ओर डॉक्टर जिन नेताओं पर आरोप लगाए हैं उनकी गिरफ्तारी की मांग पर अडिग हैं,उनका कहना है की जब तक उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी तब तक वो हड़ताल से वापस नहीं लौटेंगे,तो उधर प्रशासन हड़ताल ख़त्म कराने को आमादा है,बार बार प्रशासनिक अधिकारी अस्पताल पहुंच हड़ताली डाक्टरों से वार्ता कर रहे हैं,लेकिन बार बार की बातचीत बस वहीं आ कर रुक रही है की आप कार्रवाई कीजिए हम फ़ौरन हड़ताल ख़त्म कर काम शुरू कर देंगें,लेकिन प्रशासनिक अधिकारी उसी कहावत को एकदम से चरितार्थ कर रहे हैं की हम पंचायती बेशक मान रहे हैं,लेकिन खुटा वहीं गाड़ेंगें,यानी की डॉक्टर साहब हम आपलोगों की सभी बातों को स्वीकार रहे हैं पर उस कार्रवाई वाली बात पर कुछ नहीं बोल सकते,अब सवाल उठता है की काहे भाई,आप डॉक्टर को यह अहसास दिला रहे हैं की आपकी जिम्मेवारी है की आप मरीज़ की सेवा करें,सेवा ही आपका धर्म है,लेकिन साहब यह परिभाषा तो आप पर भी लागू होता है,क्योंकि आपकी नौकरी को भी सरकारी सेवा ही कहा जाता है,अब आप ही बताइए प्राथमिकी के बाद कार्रवाई करने की जिम्मेवारी तो आपकी भी बनती है,मैं एक ओर की नहीं बल्कि दोनो ओर से की गई प्राथमिकी की बात कर रहा हूं,हां यह बात अलग है की मामले का अनुसंधान भी एक पार्ट है,पर आप कहिए तो सही की आख़िर कब तलक कार्रवाई कीजिएगा.? और साहब जो भी करना है जल्दी कीजिए,काहे की इस हड़ताल से जिले का आवाम कितना हलकान है,शायद मुझे यह बताने की जरूरत नहीं है।