क्या हमारी यही नियति है..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

लाखों लोगों के हलक को तर करने के साथ उनकी प्यास बुझाने वाली नदी आज ख़ुद प्यासी है,लोग दो बूंद पानी के लिए दर-ब-दर भटकने को मजबूर हैं,उधर कई पहल निरर्थक है,आइये पढ़िए दशकों से पानी पानी करते एक बड़ी आबादी की बेबसी को परिलक्षित करती एक ख़ास रिपोर्ट-

“सब ताल-तलैया सूखने को चले,हर घाट गगरिया प्यासी है,खिलने थे जिस चेहरे को,उस पर छाई उदासी है”,जी हां यह कोई जुमला नहीं बल्कि पानी के परिदृश्य में गढ़वा की कोरी सच्चाई है,जिस सच्चाई को आप सदृश्य देखिये की किस तरह नदी पूरी तरह सुख चुकी है,काफी जद्दोजहद के बाद एक बाल्टी पानी निकालते लोग भी आपको नज़र आ जायेंगें,पूछने पर लोग कहते हैं की यह कोई नयी परेशानी नहीं है बल्कि कई सालों से उसके साथ साथ हजारों लोग इस विषम परिस्थिति से दो चार हो रहे हैं,जीवन से ले कर मरण तक सबको इसी तरह नदी में पानी के लिए ख़ाक छाननी पड़ती है।

काहे का लाइफ लाइन: – उधर घरों में पीने के लिए पानी ले जाने के लिए लोगों को नदी में चुआड़ी से पानी निकालते किसी भी वक्त देखा जा सकता है,गढ़वा के लिए इस दानरो नदी को लाइफलाइन कहा जाता है,लेकिन विडंबना है कि आज खुद उक्त नदी पानी के एक बूंद को तरस रहा है,हालात से दो चार होते उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंच चुके एक स्थानीय जानकार व्यक्ति कहते हैं कि नदी का समय से पहले सुख जाना और सबको पानी के लिए भटकना यह हालात कई दशकों से बना हुआ है,इस साल के बाबत कहते हैं कि इस वर्ष तो नदी मार्च कौन कहे बल्कि गुजरे फरवरी माह में ही सुख चला,लेकिन पूर्व से ले कर अब तलक गढ़वा के लोगों को पानी समुचित मिले इसकी माकूल व्यवस्था नहीं कि गयी।

इस कारण सुख जाती है अपनी दानरो: – क्यों सुख जाती है समय पूर्व नदी इस विषय पर नदी विशेषज्ञ कहते हैं कि ससमय बारिश का नहीं होना और नदी से बालू का छरण होना पानी की कमी का प्रमुख कारण बन रहा है,उधर नदी में पानी ख़त्म होने और वैकल्पिक व्यवस्था के बाबत पूछे जाने पर विभागीय अधिकारी कहते हैं कि सारी स्थिति पर प्रशासन नजर बनाए हुए है,पूरे जिले में खराब पड़े चापानलों को दुरुस्त किया जा रहा है,अब तक सैकड़ो चापानल बनाये जा चुके हैं,और अनवरत मरम्मत कार्य जारी है,लोगों को पानी की परेशानी नहीं होने दी जाएगी इसे ले कर प्रशासन कटिबद्ध है।

एक तरफ समय से पहले हर साल सुख कर पानी के लिए लोगों को दर ब दर भटकाती नदी,दूसरी ओर नलके तक पानी पहुंच जाने का आस जोहते लोग,ऐसे में लोगों के सूखते हलक से एक कसक के साथ यही निकलता है कि “यहां पल पल पानी पानी करते सुख रही है हलक हमारी,आ रही बस बेचारगी अपने हिस्से,कसक इस बात की है की,इस करुण हालात के बाद भी,दशकों से सुनाए जा रहे हमें छलकते नीर के किस्से।”