ससुराल में पहुना की चली गई जान


आशुतोष रंजन
गढ़वा

अपनी शादी हुए ग्यारह साल हो गए लेकिन मैं ससुराल बहुत कम जाता हूं जिसके वही कारण हैं जो आपके जीवन में भी गुज़रा होगा,पर शायद यह उसे समझ में नहीं आया तभी तो उसकी मौत ससुराल में ही हो गई,किस कारण से किसकी मौत ससुराल में हुई आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताता हूं।

इसीलिए हम ससुराल कम जाते हैं: – पत्रकारिता की पेशा से जुड़े होने के कारण जिला मुख्यालय के साथ साथ सुदूर प्रखंडों में भी अपना आना जाना होता है,लेकिन उसी क्रम में अगर श्री बंशीधर नगर में जाना होता है तो अपना काम पूरा करने में शाम भले हो जाए लेकिन उसी क्षेत्र में ससुराल होने के बावजूद नहीं जाता हूं,क्योंकि कहा जाता है की बिना बेहद ज़रूरी काम ना हो तो बार बार ससुराल नहीं जाना चाहिए,बुजुर्गों की कही बातों का दिल से अनुसरण करते हुए मैं भी काम कर के वापस मुख्यालय यानी घर को लौट आता हूं पर ससुराल नहीं जाता हूं,ससुराल के साथ साथ घर में भी यानी पत्नी से शिकवा शिकायतें सुननी पड़ती है पर सबकुछ बर्दाश्त कर लेता हूं पर बार बार ससुराल नहीं जाता हूं,पता नहीं आप लोग क्या किया करते हैं।

ससुराल में ही पहुना की चली गई जान: – सुबह जिसे मिला सम्मान,रात में उसकी चली गई जान”,जी हां यह कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि वो सच्चाई है जो आज नुमाया हुआ,आपको बताएं की जिला के कांडी थाना क्षेत्र के गाड़ा खुर्द निवासी श्रवण कुमार अपने ससुराल पलामू जिला के कादल गांव गया हुआ था,सुबह से देर शाम तक तो सबकुछ ठीक रहा,ससुराल में जैसा सबका वक्त गुजरता है उसका भी गुजरा,रात में सबके साथ खाना खा कर गर्मी के मौसम के अनुसार वो भी छत पर सोया,बस यही उसके लिए काल बन गया क्योंकि रात में वो पेशाब करने उठा और नींद के हालत में छत से गिर पड़ा,गंभीर हालत में उसे इलाज़ वास्ते अस्पताल लाया गया जहां इलाज़ से पहले ही डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया,तभी हमने लिखा की ससुराल में पहुना की चली गई जान

मैं तो सावधानी बरतता हूं: – मेरा यह कहना नहीं है की ससुराल ना जाएं,मुझे जब भी मौक़ा मिलता है तो ज़रूर जाता हूं,क्योंकि कभी भी कितने दिनों बाद भी ससुराल जाने के बाद ठीक वैसा ही महसूस होता है जैसा सेहरा बांध कर पहुंचने के बाद अहसास हुआ था,लेकिन हां यहां यह ज़रूर कहना चाहूंगा की ससुराल बेशक जाएं पर कुछ सावधानी ज़रूर बरतें हो मैं बरतता हूं,कहने का मतलब की छत के बजाए कमरे में या बाहर समतल मैदान में सोएं,साथ ही जब पेशाब करने की तलब लगे तो नींद की खुमारी में छत के ऊपर से ही शुरू हो जाने के बजाए बाथरूम का इस्तेमाल करें,अगर बाथरूम ना हो तो नींद से जगने के बाद थोड़ी देर रुक कर और चेहरा धो कर यानी नींद से पूरा जग कर ही छत से उतरें,नहीं तो श्रवण जैसा जहां दिन में मिलेगा सम्मान,वहीं चली जाएगी आपकी जान।