गुटबाज़ी बना हुआ है प्रश्न यक्ष,क्या ख़त्म करने में सफ़ल होंगे जिलाध्यक्ष..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

उधर हेमंत सोरेन के जेल जाने की चर्चा भले एक गांव से ले कर देश स्तर तक हो रही है,लेकिन हम बात अगर इसी राज्य यानी झारखंड के गढ़वा की करें तो यहां ठाकुर महतो की चर्चा बलवती हो रही है,आख़िर ठाकुर महतो कौन हैं और चर्चा होने की वजह क्या है,आइए आपको हम वही बताते हैं जो सुनने को मिल रहा है।

ठाकुर महतो की बहुत चर्चा है भाई : – अगर आप गढ़वा जिला के रहने वाले हैं या बाहर रह कर भी यहां से ताल्लुक रखते हैं तो आप ठाकुर महतो के बारे में जान ही गए होंगे,अगर अभी तक भी नहीं जान पाए हैं तो आपको बता दूं कि ठाकुर महतो जिले के भंडरिया इलाके के रहने वाले हैं जिन्हें गढ़वा जिला का भाजपा अध्यक्ष बनाया गया है ओमप्रकाश केशरी के बाद किसी को तो इस पद पर आसीन होना ही था लेकिन शायद उतनी चर्चा नहीं होती जितनी बात और चर्चा ठाकुर महतो के अध्यक्ष बनने के बाद हो रही है,लेकिन सवाल उठता है की जिला मुख्यालय से बहुत दूर निवास करने वाले व्यक्ति जिस पर पार्टी संगठन को काफ़ी पहले नज़र करना चाहिए था,खैर देर से ही सही जब उन्हें जिलाध्यक्ष बनाया गया तो अचानक वो इतने चर्चा में कैसे आ गए,तो लोगों की बात सुनने के बाद जहां तक मुझे आभास हो रहा है उसके दो कारण हैं।

चर्चा का पहला कारण : – अपने झारखंड में वर्तमान में जेएमएम गठबंधन की सरकार है,जिसे हम पांच और छह तारीख से पहले पूर्ण सरकार नहीं कह सकते हैं,और भाजपा विपक्ष में है,पर भाजपा जद्दोजहद में जुटी हुई है की अगली बार हम सत्ता पर आसीन हो जाएं,हम बात यहां और का नहीं कर के केवल गढ़वा के परिप्रेक्ष्य में ही बात करें तो भाजपा में संगठन को काफ़ी महत्व दिया जाता है,ऐसे में आप बेशक सोच सकते हैं की जिलाध्यक्ष का पद भी मायने रखता होगा,क्योंकि चुनाव लडने वाले राजनेता की चाहत होती है की उनके मन माफिक व्यक्ति ही जिलाध्यक्ष बने,इस निमित वो काफ़ी मेहनत भी किया करते हैं जहां तक उनकी पहुंच होती है वो कोई कसर नहीं छोड़ते,लेकिन कभी उनके पाले में गेंद आता है तो कभी उनके पहुंच से बाहर होता है,ठाकुर महतो के जिलाध्यक्ष बनाए जाने के बाद बस पहली चर्चा यही हो रही है की चुनावी राजनीति से जुड़े राजनेताओं ने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा गया होगा की ठाकुर महतो जिलाध्यक्ष बन जायेंगे,क्योंकि जो चर्चा है उसके अनुसार आपको बताएं की ठाकुर महतो दूसरे खेमे के बताए जा रहे हैं,जिस कारण बस अभी से यही चिंता साल रही है की जब जिलाध्यक्ष की ज़रूरत होगी शायद वो काम ना आएं,भाजपा में ऐसा होता तो नहीं है,लेकिन चुनावी राजनीति करने वाले राजनेताओं का चिंतित होना तो स्वाभाविक है।

चर्चा का दूसरा कारण : – पहला कारण तो आपने पढ़ा,अब दूसरा कारण ऐसे बताऊं की गुटबाज़ी बना हुआ है प्रश्न यक्ष,क्या इसे ख़त्म करने में सफ़ल होंगे जिलाध्यक्ष,सभी चर्चाओं में प्रमुख चर्चा यही है,क्योंकि राजनीति में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप और वाद विवाद चलता रहता है लेकिन गढ़वा वो जिला है जहां भाजपा नेताओं के बीच ही आरोप प्रत्यारोप का दौर ज़ारी रहता है,जब भी गढ़वा भाजपा में पेवस्त खेमेबाजी और गुटबाज़ी की चर्चा करता हूं तो सबसे पहले एक बात लिखता हूं की यहां नेता भाजपा के नहीं बल्कि उनकी अपनी अपनी भाजपा है,कहने का मतलब की यहां के भाजपा नेता कई खेमों में बंटे हुए हैं,एक खेमा दूसरे को पसंद नहीं करता तो दूसरा तीसरे को देखना गंवारा नहीं करता,साथ ही कभी अगर पार्टी के बड़े नेता के कार्यक्रम में सभी एक साथ मंच पर आ भी गए तो बात करना तो दूर लोग एक दूसरे को देखते भी नहीं,यानी वो एक दल के होने के कारण उतना देर साथ रहते हैं पर दिल से जुदा होते हैं,ऐसे में सवाल उठता है की कल जब नए जिलाध्यक्ष ठाकुर महतो के सम्मान में एक समारोह आयोजित किया गया तो वहां जिपाध्यक्ष ने सीधे रूप में कहा की हम सभी को एक साथ हो कर चुनावी अभियान में जुट जाना है क्योंकि जहां एक ओर आगामी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना है तो वहीं दूसरी ओर झारखंड की सत्ता को भी पाना है,लेकिन सबकुछ जानते हुए भी अध्यक्ष महोदय ना जाने क्यों यह नहीं बोले की आप सभी आपसी खेमेबाजी और गुटबाज़ी को ख़त्म कर एक हो जाएं ताकि जिस चुनावी लक्ष्य को साधने के अभियान में हम सभी को जुटना है उसे हम साध लें,साथ ही यह भी कह देना चाहिए था की इसी गुटबाज़ी के कारण ही हमें गढ़वा सीट गंवाना पड़ा,लेकिन अभी भी वक्त है आपसी शिकवा शिकायत को भूल सभी एक हो जाएं और सत्ता पाएं।

लेकिन यहां पर मैं ज़रूर कहना चाहूंगा की अध्यक्ष महोदय सभी को एक करने की कोशिश बहुतेरे हुए पर अब तक तो उसमें कामयाबी हासिल नहीं हुई,अब देखना यह होगा कि आप कितना सफ़ल होते हैं..?