गढ़वा पुलिस तो बहुत संजीदा है,फिर ऐसा क्यों..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

सियाचिन ग्लेशियर का नाम सुनने या टीवी पर उसे देखने के बाद ही ऐसा महसूस होता है की यहां हज़ारों किलोमीटर दूर अपना शरीर जम ना जाए तो सोचिए देश का जो जवान उसी ग्लेशियर में तैनात रह कर देश के दुश्मनों से हम सभी को महफूज़ रखे हुए है उसे कैसा महसूस होता होगा,हो सकता है उसे आप अहसास कर लें लेकिन काश उसका इल्म पुलिसवालों को होता,काश उसके दर्द का वर्दी वालों को अहसास होता तो आज एक सियाचिन में ड्यूटी करने वाले आर्मी के जवान को झारखंड मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना पर नहीं बैठना पड़ता,आख़िर क्या है पूरा मामला,आइए आपको इस ख़ास ख़बर के ज़रिए बताते हैं।

सीएम आवास के बाहर क्यों बैठा है आर्मी का जवान.?: आप बेशक जानना चाह रहे होंगें की सियाचिन ग्लेशियर जैसे विषम और दुरूह जगह पर चौबीसों घंटे तैनात रह कर देश की अस्मिता बचाए रखने वाले जवान के साथ ऐसा क्या गुजरा की उसे मुख्यमंत्री आवास के बाहर बैठ कर रोना पड़ रहा है,तो आपको बताने के साथ साथ तस्वीर के ज़रिए दिखाऊं की वर्दी में बैठा यह वही आर्मी का जवान रामकेश्वर यादव है जो गढ़वा जिला का रहने वाला है,ज़मीन विवाद और स्थानीय पुलिस द्वारा कुछ नहीं पहल करने को ले कर वो मुख्यमंत्री के पास अपनी फरियाद ले कर पहुंचा है,रांची में न्यूज़ चैनल द फॉलोअप को दिए अपने इंटरव्यू में उसने बताया की उसके गांव में पहले से ज़मीन का विवाद चल रहा है,वो विवाद उन पूर्व नक्सली नेताओं से है जो अब पुलिस के मुखबिर बन गए हैं,इस लिहाज़ से पुलिस उनकी बातों को ज्यादा तवज्जो देती है और हमारे घरवालों की गुहार पर ध्यान नहीं देती,उसके अनुसार उक्त मामला गढ़वा शहर थाना से जुड़ा है,घरवालों द्वारा सूचना दिए जाने के बाद वो भी छुट्टी ले कर इस आस के साथ घर लौटा की एक वर्दी वाले की बात पुलिस ज़रूर सुनेगी,पर उसकी सोच से इत्तर हुआ,एक ओर जहां उसकी एक ना सुनी गई तो वहीं दूसरी ओर विवाद के दूसरे पक्ष यानी उन पूर्व नक्सलियों द्वारा जान से मारने की भी धमकी दी जा रही है,आलम है की परिवार के साथ वो भागा फिर रहा है,पूछे जाने पर की क्या विभागीय पत्र आपने पुलिस को नहीं भेजवाया,तो उसके द्वारा बताया गया की वो भी आया है पर शहर थाना पुलिस द्वारा एक नहीं सुनी जा रही है,ऐसा कह कर वो फफक फफक कर रो पड़ा,उसके अनुसार अब वो देश सेवा छोड़ना चाह रहा है,यानी नौकरी छोड़ना चाह रहा है,क्योंकि देश सेवा करने का उसे सिला मिल गया,इससे बेहतर दिन और क्या होगा जब एक वर्दी वाले की पुकार वर्दी वालों द्वारा नहीं सुनी जा रही है।

फिर ऐसा क्यों.?: राज्य की गढ़वा पुलिस को काफ़ी संजीदा होने का गौरव प्राप्त है,क्योंकि कुशल नेतृत्व वाले अपने कप्तान अंजनी कुमार झा के निर्देशन में एक टीम वर्क के रूप में काम करते हुए बेहतर सफ़लता हासिल हो रही है,लेकिन अक्सर जब बात शहर थाना की आती है तो फिर वही मोर के पैर वाली कहावत सामने आ जाती है,जहां तक इस मामले का सवाल है तो उसे सुलझाने में पुलिस ज़रूर जुटी होगी,अब आर्मी और पुलिस के काम करने के तरीक़े ज़रा जुदा होता है,यहां बॉर्डर जैसा दुश्मन को देखते ही गोली मारने का आदेश नहीं होता,यहां एक अनुसंधान के तहत मामले का निष्पादन होता है,सो पुलिस अपना काम कर रही होगी,बहुत जल्द अन्य मामलों की तरह इसका भी पटाक्षेप होगा,लेकिन फिर वही बात की शहर थाना.? देखिए कब तलक और क्या होता है।