अपनी ही पार्टी के नेता की हत्या हुई है,फिर भी..?


आशुतोष रंजन
गढ़वा

किसी गांव कस्बे में हो रहा छोटा कार्यक्रम हो या प्रखंड,जिला या राज्य मुख्यालय में आयोजित होने वाला बड़ा आयोजन,हर जगह हुक्मरान से ले कर सरकार के नुमाइंदे विकास की गिनती गिनाने के साथ साथ यह कहना भी नहीं भूलते की राज्य में अमन चैन स्थापित करना हमारा मुख्य मक़सद है,सुन कर केवल विपक्ष को नहीं बल्कि हर आम आवाम को भी बड़ी हंसी आती है क्योंकि सत्ता में आने के इतने साल बाद तो राज्य में अमन और सुकून बहाल नहीं हो सका,क्या ऐसा कह कर पांच साल के बाद भी समय मांगने का इरादा लगता है,क्योंकि क्या गांव,क्या शहर और क्या राजधानी हर जगह हत्या जैसी जघन्य वारदात घटित हो रही है,उदाहरण के रूप में ताज़ा घटना आप गढ़वा का ही देखिए जहां आज से पांच रोज़ पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा के ही केंद्रीय स्तर के नेता चिनिया थाना क्षेत्र निवासी अयूब अंसारी की हत्या हो गई,सबको अमन चैन से जीवन बसर कराने का दंभ भरने वाली उक्त सरकार जो पंचायत से लेकर राज्य तक सत्ता में है जहां एक ओर अपने पार्टी के नेता को महफूज़ नहीं रख सकी तो वहीं दूसरी ओर हत्या के पांच रोज़ बाद भी हत्यारे गिरफ्त से बाहर हैं,आलम है की आक्रोशित लोगों को गिरफ्तारी की मांग को ले कर सड़क पर उतरना पड़ रहा है,इसे कहते हैं नायाब बेहतर व्यवस्था,यहां एक बात और कहना बेहद ज़रूरी ही है की हुक्मरान और उनके नुमाइंदे वक्त वक्त पर सरकार सहित खुद को बेहद संवेदनशील कहने में कोई गुरेज नहीं करते,लेकिन ज़रा आप ही सोचिए राज्य के साथ साथ गढ़वा के इस घटना के बाद क्या आप संवेदनशील कहेंगे या संवेदनहीन..?, आप ही बताइए।