रघुवर दास की बात तो आपको बहुत बुरी लगी थी


आशुतोष रंजन
गढ़वा

ख़बर के केंद्र में जाने से पहले आज एक बार फिर मुझे मां की कही गई वो बात याद आ रही है की तुलसी का पत्ता यानी ( ब्राह्मण ) छोटा हो या बड़ा वो सदा पूजनीय होता है,बाबू कभी उनका अनादर मत करना,इस आशय को हम तो समझे लेकिन राजनीति करने वालों को कौन समझाए और ख़ास कर वैसे राजनीतिज्ञों को जो विशेष को खुश करने की राजनीति किया करते हैं,तभी तो आज एक राजनीतिक दल द्वारा एक ब्राह्मण का व्यक्तिगत नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से अनादर किया गया,आप समझे,कुछ लोग तो समझ गए होंगें लेकिन बहुत लोग मुझे गाली ही दे रहे होंगें की क्या पहेली लिखता रहता है,लेकिन बताऊं की मेरी यह लेखनी आपको पहेली भले लग रही हो पर एक बड़ी पहेली को हल करने का माद्दा रखने वाले के साथ ऐसा व्यवहार उस राजनीतिक पार्टी को और गर्त में ले जाएगा ऐसा कहा जा रहा है,अब रही बात ख़बर के ज़रिए शीर्षक को स्पष्ट करने की,तो आइए आपको बताता हूं।

रघुवर दास की बात तो आपको बहुत बुरी लगी थी: – मुझे याद है तो आपको भी बेशक याद होगा क्योंकि वो बात आपको बहुत बुरी लगी थी,कुछ ऐसा नागवार गुजरा था की आप बेहद आक्रोशित हो गए थे,कुछ साल पहले उस रोज़ गढ़वा जिला मुख्यालय में अवस्थित उत्सव गार्डेन में भाजपा का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था जिसमें बतौर मुख्य अतिथि के रूप में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शिरकत किया था,उनके द्वारा अपने संबोधन के दरम्यान पलामू गढ़वा के ब्राह्मणों के बारे में कुछ बोला गया था जिसे सुनने के बाद आप सभी बेहद नाराज़ हो गए थे और कई तरह से आपके द्वारा आक्रोश भी ज़ाहिर किया गया था,लेकिन आज जब आपसे ही जुड़े एक ब्राह्मण नेता को चंद लम्हों का सम्मान दे कर फिर अपमान किया गया,कुछ ही देर का आदर दे कर अनादर किया गया,क्या ऐसा कृत्य आपको सुहा रहा है,क्या यह आपको नागवार नहीं गुज़र रहा,क्या इससे आप आक्रोशित नहीं हो रहे.?

क्या ब्राह्मण अब भी नाराज़ नहीं होंगें :- ख़बर के केंद्र में आते हुए आपको बताएं की कभी देश की बड़ी राजनीतिक पार्टी कही जाने वाली और आज अपने इसी कृत्य के कारण गर्त में पहुंच चुकी कांग्रेस को फिर से समेटने और उसे एक बार फिर से उसी पुराने ट्रैक पर वापस लाने के लिए हाथ पैर मार रहे पार्टी संगठन द्वारा अपने निर्णय को डेढ़ रोज़ में बदल देना किस तरह की राजनीति को परिभाषित कर रहा है यह शायद खुल कर बताने की जरूरत नहीं है,आपको बताऊं की पार्टी संगठन द्वारा डेढ़ रोज़ पहले राज्य में जिलाध्यक्ष की एक सूची जारी की गई,हम बात गढ़वा की कर रहे हैं तो यहां पार्टी की मजबूती के लिए सालों से संघर्ष कर रहे श्रीकांत तिवारी को जिलाध्यक्ष बनाया गया,संघर्ष के बाद जब आपको एक मुकाम मिलता है तो कितनी खुशी होती है इसे एक संघर्ष करने वाला ही महसूस कर सकता है,लेकिन श्रीकांत तिवारी के साथ साथ उनके लोगों की खुशी उस वक्त क्षणभंगुर साबित जब कल देर शाम एक और सूची जारी होती है जिसमें उन्हें दूध में गिरी मक्खी के मानिंद निकाल कर बाहर करते हुए किसी और को अध्यक्ष बना दिया गया,सूत्र बता रहे हैं की कांग्रेस के इस कृत्य से लोगों में काफ़ी नाराजगी है और साथ ही यहां पर एक बार फिर से पूछना लाज़िमी है की रघुवर दास के उस बात को ले कर नाराजगी ज़ाहिर करने वाले ब्राह्मण क्या इस बात से नाराज़ नहीं होंगें.?