इलाजिय व्यवस्था का है हाल यही,भवन है पर अस्पताल नहीं


आशुतोष रंजन
गढ़वा

केवल सोचनीय ही नहीं बल्कि पूरी तरह से हास्यास्पद बात है,जिस राज्य में लोग भगवान से यही आरजू करते हैं की वो बीमार ना हों,क्योंकि एक ओर जहां माकूल सड़क नहीं है जिससे गुजर कर वो अस्पताल तक पहुंच जाएं,और अगर किसी तरह पहुंच भी गए तो उक्त अस्पताल में ऐसी इलाजिय व्यवस्था नहीं है जहां उनकी मर्ज ठीक हो जाए,क्योंकि या तो मरीज के परिजनों के हाथो मे रेफर का कागज़ आता है या पोस्टमार्टम रिपोर्ट,अब ऐसे विषम हालात में बताइए की जहां सुदूर गांव से अस्पताल तक आने के लिए मरीजों को एक अदद एंबुलेंस नहीं मिलता वहां एयर एंबुलेंस की बात करना बेमानी ही नहीं बल्कि गरीबों के साथ पूरी तरह बेईमानी है।

सरकार ने जगाया ज़मीर को: – आपने आज अख़बार में प्रकाशित ख़बर को भी पढ़ा होगा और न्यूज चैनलों में प्रसारित ख़बर को देखा होगा,आपने नज़र किया होगा की राज्य में सत्तासीन सरकार द्वारा मरीजों के लिए एयर एंबुलेंस की सुविधा शुरू की जा रही है,मैं भी इस पहल की सहृदय सराहना कर रहा हूं पर ज़रा सोचिए जिस राज्य में सैकड़ो ऐसे भवन हैं जो बनाए तो अस्पताल के लिए गए थे पर अफ़सोस अब तलक वो अस्पताल के पूर्ण स्वरूप में नहीं आ सका,कारण की वहां डॉक्टर की बात कौन करे एएनएम की भी मौजूदगी नहीं रहती,ऐसे में आप कल्पना कीजिए जब हम आप गांव,प्रखंड और जिला के अस्पताल से प्राथमिक उपचार करा राज्य मुख्यालय तक पहुंचने की स्थिति में होंगें तब तो एयर एंबुलेंस का उपयोग कर पाएंगे,लेकिन इलाज़ के ऐसे करुण हालात में क्या राज्य मुख्यालय तक पहुंचना आसान है.?,यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब इस कलियुग में नहीं मिल सकता,क्योंकि वर्तमान गुजरता वक्त युधिष्ठिर वाला सतयुग नहीं है,इस हालात के लिए हम केवल वर्तमान सरकार को दोषी नहीं ठहरा रहे,बल्कि अब तलक राज्य में जितनी भी सरकारें सत्तासीन हुईं किसी के द्वारा इस दिशा में नेक नियति के साथ ईमानदार पहल नहीं की गई,ऐसे में यहां के मरीजों के लिए ज़िंदगी से ज्यादा मौत की दुआ मांगना ही नियति बनी हुई है,अब आप यहां बताइए गांव और प्रखंड से ले कर जिला मुख्यालय में अवस्थित अस्पतालों को इलाजिय सुविधा से परिपूर्ण करने के बजाए एयर एंबुलेंस की सुविधा बहाल करना हास्यास्पद नहीं है तो और क्या है,ऐसे में क्या लोगों का यह कहना गलत है की “खुश करने के लिए अमीर को,सरकार ने जगाया अपने ज़मीर को।”