“ए हो मंगरू अब का करब, अबकी केकर छान उजड़ब”

व्यंग्यकार राजीव भारद्वाज की कलम से…
गढ़वा

मंगरू कोई साधारण प्राणी नही है और इस दुनिया में अकेला भी नही है। हर गली,हर मोहल्ले,हर जिले,हर राज्य और हर देश में मंगरू अपने जगह पर व्याप्त है। मंगरू बड़ा ही मृदभाषी,सौम्य, सुशिल और कोमल हृदय का स्वामी होता है। मंगरू के अंदर चिपकू नामक पदार्थ भरा होता है जो समयानुकूल कहीं भी चिपक सकता है।

धत्त निकाल दिया: – मंगरू जैसे लोग जब जन्म लेते हैं तो नर्स को भी दबी ज़बान से बोलते होंगे, धत निकाल दिया।

बॉस का भी होता है भरोसेमंद सेवक: – मंगरू किसी भी कार्यालय में बॉस का भरोसेमंद सेवक होता है,बॉस के मुंह से पा….. निकलते ही पान लाकर अपनी सेवा का उत्कृष्टता दिखाता है भले ही बॉस पानी कहना चाह रहे हों।

कलियुग का संजय भी होता है मंगरू: – मंगरू कलियुग का संजय भी होता है,उसकी दिव्य दृष्टि बॉस के समूचे क्रियाकलापों पर होता है। जब भी कोई धृतराष्ट्र उसे मिलता है तो वो बॉस के महाभारत का पूरा वृतांत उन्हें सुनाकर अपनी श्रेष्ठता को साबित करता है। लेकिन बॉस के सामने अनेक मंगरू होते हैं,कभी कभी और कई प्रकार के केस में तो बॉस मंगरू से भी बड़े मंगरू साबित हुए हैं।

वो योजना भी बनाता है: – मंगरू का पसंदीदा पेय चाय होता है, चाय पीते पीते वो कार्ययोजना बना लेता है की किसका छान उजाड़ना है।

यहां भी उनकी भीड़ होती है: – आज कल लोकल नेता,प्रसिद्ध जनप्रतिनिधि,मंत्री आदि के पास मंगरुओं की भीड़ मधुमक्खी की भांति मौजूद होती है।

चालीसा भी करते हैं तैयार: – सब मंगरू अलग अलग,अपने नेता जी के पास उनके कसीदे में प्रतिदिन चालीसा का निर्माण करते हैं और बड़े भावविभोर होकर अपने श्रीमुख से उवाचते हैं। जब वो चालीसा का पाठन कर रहे होते हैं तो नेता जी के कोमल हृदय में घर भी बसा रहे होते हैं।

उनकी प्रस्तुति भावनात्मक भी होती है: – और यहीं से प्रारंभ होता है उनकी विशेषज्ञता छान उजाड़ने वाली। जानते हैं नेता जी! आप जो काम किए न,इस से जनता श्री राम से तुलना करने लगा आपका। आप राम राज्य ला दिए कलयुग में। नेता जी एक बार सोचे ” साला हम अभी तो कुछ किए ही नही! लेकिन मंगरू द्वारा प्रस्तुति इतनी भावनात्मक थी, और नेता जी कान के बड़े कच्चे तथा गुस्सैल स्वभाव के थे सो उन्हे अच्छा लगा। मंगरू को मिठाई खिलाइए,भुखल होंगे।

वो सत्तापक्ष के पास और विपक्ष के पास भी होते हैं: – मंगरू सत्ता पक्ष के पास भी हैं और विपक्ष के पास भी। सत्ता पक्ष वाले मंगरू दिन पर दिन अपने नेता के वोट में बढ़ोतरी की बात करते पाए गए हैं,भले ही नेता जी का अगले चुनाव में जमानत जब्त हो जाए, लेकिन मंगरू के जमानत में खजाने इसके इसी गुण के आधार पर भरते जाता है।

विपक्ष का मंगरू बड़ा शानदार होता है: – विपक्ष का मंगरू बड़ा शानदार होता है,इनमे मच्छर वाली विशेषज्ञता भी होती है। ये अपने नेता का दौलत उसी प्रकार धीरे धीरे चूसते हैं जिस प्रकार मच्छर हम सबों का खून।

वो बस इसलिए दोनो के पास होते हैं: – अब आइए असली मंगरू पर,ये वो हैं जो तीन महीना सत्ता पक्ष के पास और तीन महीना विपक्ष के पास रहते हैं,ये घुमंतू प्रवृति के होते हैं और एक जगह इनका मन लग ही नहीं सकता। ये विचारधारा से परे,धर्म से परे,सिद्धांत से परे होते हैं। इनका धर्म सिर्फ और सिर्फ रुपया होता है। ये किसी के लिए कुछ नही करते बस छान उजाड़ना और नामोनिशान मिटा देना ही इनका खासियत होता है।

बाक़ी सब फर्स्ट क्लास ही है भाई: – तो आइए इस मंदी के दौर में मंगरू बनते हैं और शुरू करते हैं छान उजाड़ना,चुनाव तक भले ही नेता जी का घर-द्वार बिक जाए,लेकिन हम सबों का बन तो जायेगा। चलिए बहुत जल्द मिलते हैं,बाकी सब फर्स्ट क्लास है।